रेली। देश की सरकारों ने दिव्यांगों के लिए सरकारी खजाने दो खोल दिए हैं। लेकिन ये बात जमीनी हकीकत से कोसों दूर है। इसकी एक झलक देखने को मिली बरेली जिले में, जहां दिव्यांगों को शिक्षित करने के लिए 35 शिक्षक मौजूद हैं।
अखिलेश सरकार का दिव्यांगों के साथ मजाक, सप्ताह में एक दिन ही दी जाती है शिक्षा
फतेहगंज पश्चिम में तैनात इटीनरेंट टीचर श्रीराम यादव के अनुसार उन्हें फतेहगंज पश्चिम के स्कूलों में स्पेशल बच्चों को शिक्षा देने के लिए रखा गया है। वह वर्ष 2011 से फतेहगंज के स्कूलों में स्पेशल बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं| लेकिन उनके सामने यह समस्या है कि वह बच्चों को पढ़ाने की जगह दफ्तरी काम में व्यस्त रहते हैं। विभागीय अधिकारियों के अनुसार ही उन्हें काम करना पड़ता है। अधिकतर समय वह बच्चों के पढ़ाने की जगह जनसूचना में मांगी गई सूचना जुटाते हैं। श्रीराम यह भी बताते है कि फतेहगंज ब्लॉक में करीब 144 सरकारी स्कूल हैं, जहां करीब सौ स्पेशल बच्चे हैं जो ग्रामीणाचंलों में रहते हैं। लेकिन उनके लिए यहां पहुंचना भी मुश्किल होता है और काम के बोझ के चलते कभी-कभी पढ़ाना संभव होता है।
बरेली जिले में 2 हजार से अधिक प्राथमिक विद्यालय हैं। ऐसे में दिव्यांगों की संख्या सैकड़ों में होना स्वाभाविक है। सबसे खास बात यह भी है कि जब सरकार और प्रशासन जानता है कि स्पेशल बच्चों को शिक्षित करने के लिए समय और निरंतरता की आवश्यकता होती है तो ऐसे में दिव्यांगों की सुविधा में निजी स्वार्थ के लिए कटौती करना कितना ठीक है।
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फतेहगंज पश्चिम में तैनात इटीनरेंट टीचर श्रीराम यादव के अनुसार उन्हें फतेहगंज पश्चिम के स्कूलों में स्पेशल बच्चों को शिक्षा देने के लिए रखा गया है। वह वर्ष 2011 से फतेहगंज के स्कूलों में स्पेशल बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं| लेकिन उनके सामने यह समस्या है कि वह बच्चों को पढ़ाने की जगह दफ्तरी काम में व्यस्त रहते हैं। विभागीय अधिकारियों के अनुसार ही उन्हें काम करना पड़ता है। अधिकतर समय वह बच्चों के पढ़ाने की जगह जनसूचना में मांगी गई सूचना जुटाते हैं। श्रीराम यह भी बताते है कि फतेहगंज ब्लॉक में करीब 144 सरकारी स्कूल हैं, जहां करीब सौ स्पेशल बच्चे हैं जो ग्रामीणाचंलों में रहते हैं। लेकिन उनके लिए यहां पहुंचना भी मुश्किल होता है और काम के बोझ के चलते कभी-कभी पढ़ाना संभव होता है।
बरेली जिले में 2 हजार से अधिक प्राथमिक विद्यालय हैं। ऐसे में दिव्यांगों की संख्या सैकड़ों में होना स्वाभाविक है। सबसे खास बात यह भी है कि जब सरकार और प्रशासन जानता है कि स्पेशल बच्चों को शिक्षित करने के लिए समय और निरंतरता की आवश्यकता होती है तो ऐसे में दिव्यांगों की सुविधा में निजी स्वार्थ के लिए कटौती करना कितना ठीक है।
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