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शिक्षा मित्रों का पुनर्जन्म या सरकार की लाचारी

माधौगंज।हरदोई 25 अगस्त शिक्षा मित्र से शिक्षक बने   लोगों का पुनर्जन्म फिर शिक्षा मित्र के रूप में हो गया है।प्रदेश सरकार ने शिक्षक पद से हटाये गये शिक्षा मित्रों को पुनः उनके मूल पद पर बहाल करके उनके दुखते घाव पर मरहम लगाने की कोशिश की गयी है।
यह फैसला प्रदेश सरकार को तब लेना पड़ा जबकि शिक्षा मित्रों ने स्कूल छोड़कर लखनऊ में तमाम बंदिशों के बावजूद लोगों का जीना हराम कर दिया। प्रदेश सरकार ने अदालती मार से पीड़ित शिक्षा मित्रों का वेतन तैतिस सौ से बढ़ाकर तीन गुना दस हजार रूपये कर दिया गया था।हालाँकि सरकार के इस फैसले से आंदोलित शिक्षा मित्र से शिक्षक बने लोग पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं और समान कार्य और समान वेतन की माँग पर अड़े हैं।सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह इससे ज्यादा कुछ नहीं कर सकती है।सरकार ने पात्रता रखने वाले शिक्षा मित्रों के शिक्षक बनने की राह बंद नहीं की है बल्कि सहूलियत देने की बात कही है।उच्च न्यायालय के बाद सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद चौबे से छब्बे बने शिक्षा मित्रों को पुनः दूबे बना दिया है।सरकार के इस फैसले से तमाम शिक्षा मित्रों को राहत मिली है उनके अंधकार पूर्ण भविष्य में एक रोशनी दिखने लगी है।शिक्षा मित्रों की पैदाइश ही राजनीति से हुयी थी और राजनीति ने ही उन्हें बिना पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण किये ही शिक्षक बना दिया था।राजनीति का ही परिणाम था कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद उनका भविष्य ही अंधकार में पड़ गया था।समायोजित करते समय ही शिक्षा मित्र का पद अखिलेश सरकार ने समाप्त कर दिया था।सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के विपरीत इन्हें शिक्षक बनाना आसान नहीं था ऐसी परिस्थितियों में इनके सामने रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया था।अदालत के फैसले के बाद इनका वेतन नहीं बन पा रहा था।सरकार ने तमाम शिक्षक पद से बर्खास्त शिक्षा मित्रों को भुखमरी से बचा लिया है।जो शिक्षक बनना चाहते हैं उन्हें शिक्षक बनने की पात्रता तो प्राप्त करनी ही चाहिए।वैसे हमारा मतलब न्यायालय के फैसले पर टिप्पणी करने का नहीं है फिर भी इतना तो कहना पड़ेगा कि इस देश व प्रदेश में अनुभव को सदा महत्व मिलता रहा है।      शिक्षामित्र बनते समय जिसे थोड़ा भी ज्ञान था वह ज्ञान इतने लम्बे अनुभव के बाद सहायक असिस्टेंट बनने लायक तो हो ही गया है।हम मानते हैं कि शिक्षा मित्रों की तैनाती वैकल्पिक व्यवस्था के तहत हुयी थी लेकिन उनसे कार्य तो शिक्षक वाला ही लिया गया।क्या इतने वर्षों के लम्बे अनुभव के बाद वह सहायक शिक्षक बनने लायक नहीं हो पाये हैं ? कहा भी गया है कि-“करत करत अभ्यास के जड़मत होत सुजान”।यहाँ तो जड़मत एक भी नहीं हैं सभी पढ़े लिखे हैं और मैरिट के आधार पर चुनकर इन्हें शिक्षा मित्र बनाया गया था।राजनीति से पैदा शिक्षा मित्र राजनीति में ही बलिदान हो गये।कुशल यह है कि सरकार ने इन्हें फुटपाथ पर आने से फिलहाल तो बचा ही लिया है।शिक्षा मित्र भी हमारे आपके बीच के अपने घर परिवार के हैं इनके साथ अन्याय का मतलब हमारे साथ अन्याय के समान हैं।आन्दोलित शिक्षा मित्रों को अपने आंदोलन में बदलाव लाकर उसे अपने विद्यालय से संचालित करना होगा क्योंकि वे यह न भूलें कि स्कूलों में पढ़ने आने वाले बच्चे भी उन्हीं के घर परिवार समाज से जुड़े हैं।उन्हें लड़खड़ाये शैक्षिक सत्र को तत्काल पुनर्जीवित करना होगा और योगी जी के समक्ष उन्हें धरना प्रदर्शन की जगह योगी हठ आन्दोलन अपने अपने कर्तव्यों उत्तरदायित्वों का निर्वहन करते हुये करना चाहिए।योग हठ के सामने योगी जी को मजबूर होकर अनुभव को आधार मानकर सहायक शिक्षक बनाना ही पड़ेगा।यह पक्का है कि स्कूलों तस्वीर अगर बदल जाती है तो उनकी तकदीर भी योगी जी बदल सकते हैं ऐसा मेरा व्यक्तिगत अहसास है।मेरा योगी हठ आन्दोलन का मतलब तय समय से ज्यादा समय तक शिक्षा देने से है।योगी त्यागी की सरकार में कुछ तो त्याग करके उन्हें आकर्षित तो करना ही होगा।घर बैठे दस हजार बहुत नहीं तो बहुत कम भी नहीं है।कहा भी गया है कि-“सांई इतना दीजिए जामें कुटुम्ब समाय

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