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अध्यापकों की भर्ती को सरकारें देख रही हैं रोजगार की दृष्टि से: बालेश्वर

माननीय मुख्य मंत्री जी
उ प्र शासन, लखनऊ
मान्यवर ,
माननीय वित्त मंत्री ने कल केंद्र सरकार के बजट में शिक्षा के सुधार के लिए महत्वपूर्ण कदमों की घोषणा की है और आपकी सरकार ने भी प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की आवश्यकता पूरी करने के लिए बड़ी संख्या में अध्यापकों की भर्ती की कार्यवाही प्रारम्भ की है, शिक्षा के क्षेत्र में किये जा रहे इन प्रयासों से उत्साहित होकर मैंने आपको ये पत्र लिखने का साहस किया है।

उ प्र में प्राथमिक शिक्षा में अध्यापकों की भर्ती की जो प्रक्रिया अपनाई जा रही है, वह त्रुटिपूर्ण है, इसलिए प्रत्येक भर्ती के बाद भरे गए अध्यापकों/अध्यापिकाओं के पद थोड़े ही समय में रिक्त हो जाते हैं और बड़ी संख्या में विद्यालय शिक्षक विहीन हो जाते हैं, क्योंकि गैर जनपदों में नौकरी पाए अध्यापक राजनैतिक प्रभाव का इस्तेमाल करके अपने गृह जनपदों में स्थानांतरण कराने में सफल हो जाते हैं और वे विद्यालय फिर शिक्षक विहीन हो जाते हैं। ये सिलसिला अनेक वर्षों से निरन्तर चलता आ रहा है। कोई व्यक्ति अपने घर के पास नौकरी पाए ये मानवीय पक्ष है लेकिन गरीब, शोषित, पीड़ित, वंचित के बालक को भी स्कूलों में पढ़ाई मिले ये उससे भी बड़ा मानवीय पक्ष है। ये दोनों पक्ष विरोधाभाषी हैं। इसलिए सरकार को फैसला करना ही पड़ेगा कि वह अध्यापक के मानवीय पक्ष को तरजीह देती है या गरीबों को शिक्षित करने के मानवीय पक्ष को।
इस समस्या का एक ही कारण है कि अब तक सरकारें अध्यापकों की भर्ती को रोजगार प्रदान करने के उपलब्धि के रूप में इस्तेमाल करती रही हैं। अध्यापन भी एक रोजगार है लेकिन उससे ज्यादा एक विशिष्ट प्रकार का स्किल्ड काम है जिसका उद्देश्य समाज को आगे बढ़ाने का काम है। बच्चों को शिक्षक उपलब्ध हों ये आवश्यकता है लेकिन विद्यालयों की आवश्यकताओं के अनुसार कभी भर्ती नहीं की जाती है। शिक्षकों के बारे में बेसिक शिक्षा में मंत्री के रूप में काम करते मेरी एक समझ बनी थी। पहले नौकरी ,दूसरे घर के पास तैनाती और तीसरे पढ़ाना न पड़े ,ऐसी कोई व्यवस्था हो जाय। इसी लिए अध्यापन से इतर भवन निर्माण, बीआरसी, एनपीआरसी में तैनाती जैसी बहुत से कार्यों के लिए सिफारिशें खूब आती हैं।
अध्यापक स्वयं में एक प्रभावशाली होता है और वह जनप्रतिनिधि ( एमएलए, एमपी , जिला पंचायत सदस्य, जिला पंचायत अध्यक्ष, ग्राम प्रधान) को अपने पक्ष में करने में समर्थ होता है , दूसरे शिक्षक संघ बड़े प्रभावशाली और शक्तिशाली हो गए हैं। शिक्षा विभाग के उच्च पदस्थ अधिकारी शिक्षक संघों का उपयोग विभागीय मंत्री को उपकृत करने या उसे और सरकार को डराने के लिए करते हैं, इसलिए शिक्षक संघों को सदैव अधिकारियों का संरक्षण मिलता है। शिक्षक संघों ने सदैव शिक्षकों के हितों के लिए काम किया है लेकिन कभी शिक्षा के हित में या यों कहें कि उन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के हित के लिए कभी विचार नहीं किया है।
प्रत्येक विद्यालय में अध्यापक उपलब्ध हों,दूरदराज के गाँव मे भी अध्यापक पहुंचे इसके लिए या तो अध्यापक के घर के पास विद्यालय हो और या अध्यापक विद्यालय के पास अपना घर ले जाये।अब ये सम्भव है क्योंकि अब अध्यापक को जो वेतन मिलता है उस पर अपना घर चलाया जा सकता है और अगर ये वेतन कम है तो इसे बढ़ा देना चाहिए।
मैं इस पत्र के माध्यम से अध्यापकों के भर्ती के सम्बंध में निम्न सुझाव आपको प्रेषित करता हूँ-
1- अध्यापक के कैडर को जिले के बजाय ब्लाक स्तर का कैडर बना दिया जाय। पहले ये सम्भव नहीं था लेकिन अब सम्भव है क्योंकि ब्लाक स्तर पर शिक्षा विभाग का ढांचा है, अधिकारी भी है, भवन भी है और स्टाफ भी है।
2- अध्यापकों की भर्ती के लिए रिक्तियां ब्लाक अनुसार विज्ञापित हों और जो उन रिक्तियों के विरुद्ध पोस्टिंग पाने को इच्छुक हों, वही आवेदन करें।
3- जो जिस ब्लाक में पोस्टिंग पाए पूरे सेवाकाल में उसी ब्लाक में नौकरी करे। अंतर्जनपदीय स्थानांतरण के प्राविधान को समाप्त कर दिया जाय। ब्लाक मुख्यालय पर निवास बनाकर उक्त ब्लाक के किसी भी गांव में जाकर अध्यापन करना सामान्यत: सम्भव है।
वर्तमान में सरकार द्वारा संचालित प्राथमिक विद्यालयों में अधिकतर गरीब, अनुसूचित जाति, जन जाति और अल्प संख्यक परिवारों के बच्चे ही शिक्षा पाते हैं। वे इसलिए इन विद्यालयों में आते हैं क्योंकि उनके पास अन्य कोई विकल्प नहीं हैं। अगर ये व्यवस्था असफल हुई तो ये बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाएंगे। दुनिया चांद पर पहुंच गई है और मंगल पर पहुंचने की तैयारी है और हम अपने प्रदेश के गरीब, पिछड़े, वंचित और अल्पसंख्यक समाज के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा भी न दे पावें , ये एक अभिशाप होगा। ज्ञान विज्ञान के इस युग मे तो हर बच्चे को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा पाने का अधिकार उसका मौलिक अधिकार होना चाहिए। निजी विद्यालयों के सिर पर शिक्षा के अधिकार का दम भरना आत्म प्रवंचना है। प्रत्येक विद्यालय में बच्चों के अनुपात में शिक्षक हों, वे बच्चों को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा देना सुनिश्चित करें और शिक्षक का वार्षिक मूल्यांकन केवल बच्चों को दी गई शिक्षा के आधार पर हो,तब सरकार का सबको शिक्षा का संकल्प सिद्धि तक पहुंचेगा।
अत: मेरा आपसे विनम्र अनुरोध है कि प्रदेश में अध्यापकों की भर्ती के लिए मेरे सुझावों पर सहानुभूति पूर्वक विचार करें। इन सुझाव पर एक समय में ( वर्ष 2000 में सीमेंट, इलाहाबाद में आयोजित कार्यशाला में) शिक्षा विभाग के अधिकारियों, शिक्षा विदों और शिक्षक संघ के विचार विमर्श के बाद सहमति बनी थी।
भवदीय: बालेश्वर त्यागी
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