लखनऊ। उत्तर प्रदेश में शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) की अनिवार्यता को लेकर शिक्षक संगठनों की नाराजगी लगातार बढ़ती जा रही है। विभिन्न शिक्षक संघों ने इसे अव्यवहारिक बताते हुए सरकार से नियमों में संशोधन या छूट देने की मांग की है।
शिक्षक संगठनों का कहना है कि जो शिक्षक पहले से वर्षों से सेवा में कार्यरत हैं, उन पर टीईटी की अनिवार्यता लागू करना अन्यायपूर्ण और सेवा शर्तों के विपरीत है। इससे हजारों शिक्षकों की नौकरी, पदोन्नति और सेवा सुरक्षा पर संकट खड़ा हो गया है।
2011 से पहले नियुक्त शिक्षकों को छूट की मांग
शिक्षक संघों की प्रमुख मांग है कि 29 जुलाई 2011 से पहले नियुक्त शिक्षकों को टीईटी अनिवार्यता से पूर्ण रूप से मुक्त किया जाए। उनका तर्क है कि उस समय टीईटी का कोई प्रावधान नहीं था और नियुक्ति तत्कालीन नियमों के अनुसार हुई थी।
अनुभव को दी जाए प्राथमिकता
संघों का कहना है कि वर्षों के शिक्षण अनुभव, प्रशिक्षण और सेवा रिकॉर्ड को टीईटी से अधिक महत्व दिया जाना चाहिए। एक परीक्षा के आधार पर अनुभवी शिक्षकों को अयोग्य ठहराना शिक्षा व्यवस्था के लिए नुकसानदायक है।
प्रदेश भर में विरोध प्रदर्शन
टीईटी अनिवार्यता के विरोध में प्रदेश के कई जिलों में
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ज्ञापन सौंपे जा रहे हैं
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धरना-प्रदर्शन किए जा रहे हैं
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सांसदों और जनप्रतिनिधियों से समर्थन मांगा जा रहा है
शिक्षक संघों ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगों पर शीघ्र निर्णय नहीं लिया गया, तो राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन किया जाएगा।
सरकार से पुनर्विचार की अपील
शिक्षक संगठनों ने सरकार से आग्रह किया है कि टीईटी अनिवार्यता के नियमों पर मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए पुनर्विचार किया जाए, ताकि हजारों शिक्षकों को अनावश्यक मानसिक और आर्थिक संकट से बचाया जा सके।