सफ़ेदा मामले पर सफ़ेदा expert की राय : 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती Latest News

सफ़ेदा मामले पर यह पोस्ट सिर्फ उन मित्रों के लिए, जिन्होंने 4-6 सवालों के उत्तरों में सफ़ेदा का प्रयोग किया है और फिलहाल शंकाग्रस्त होने के कारण मुझसे मेरी राय जानना चाहते हैं।
मेरी राय पर राय देने के इच्छुक विपरीत विचार वाले विशेषज्ञ दूर रहें।
निर्देश संख्या 7 में स्पष्ट किया गया है कि लॉग टेबल, कैलकुलेटर, स्लाइड रूल, मोबाइल फोन, डिजिटल डायरी या अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के इस्तेमाल की स्थिति में आप अयोग्य हो सकते हैं।
इसमें सफ़ेदा, इरेज़र, ब्लेड का कोई ज़िक्र नहीं है।
निर्देश संख्या 12 में स्पष्ट है कि यदि आप निर्देशों का पालन नहीं करते हैं तो क्या हो सकता है?
हो सकता है कि आप काले बॉलपेन का प्रयोग न करें, या सफ़ेदा, ब्लेड या इरेज़र का प्रयोग करें या गोला अच्छे से काला न करें तो कंप्यूटर द्वारा मूल्यांकन कठिन हो जाये और आपको जो नुकसान होगा, यानि अगर आपके उत्तर का मूल्याङ्कन आपके द्वारा इन निर्देशों के पालन न करने से उत्पन्न कठिनाई के कारण न हो पाये, तो आप उसके लिए दावा नहीं कर सकते।
एक बात और, अगर सफ़ेदा लगा होने के बावजूद मशीनी मूल्याङ्कन सही से हो जाता है तो आपके उस नम्बर के लिए मिलने वाले अंक पर भी कम से कम निर्देशों का कोई नकारात्मक प्रभाव पड़ता नहीं दिखता।
यदि निर्देशों में "Reasons of Disqualifications" स्पष्ट हैं तो फिर उसमे अन्यान्य कारणों को अलग से शामिल करना, बताना या मानना भला क्यों Arbitrary नहीं माना जायेगा।
अगर इसे सही माना जाए तो क्या जरूरत थी निर्देशों में लिखने की कि "निर्देशों का पालन न करने से मशीन द्वारा उत्तरपुस्तिका के मूल्याङ्कन में कठिनाई हो सकती है और होने वाले नुकसान के जिम्मेदार आप स्वयं होंगे।"?
क्यों नहीं लिखा गया कि "निर्देशों का पालन न करने वाला अभ्यर्थी अयोग्य घोषित हो जायेगा।"?
ग़नीमत है कि इस प्रकरण का फैसला न नेताओं को करना है और न फैसला वोटिंग से होना है।
इसलिए मित्रों, चिंता नहीं करें, सजग रहें, देखें कि एकलपीठ के आदेश पर सरकार क्या करती है और यदि कोई विपरीत परिस्थिति बनती भी है तो कोर्ट में क़ायदे से अपना पक्ष रखें।
यह निर्देशों से ही स्पष्ट है कि सफ़ेदा का प्रयोग करने से जो नुकसान संभावित हैं, वे मूल्याङ्कन के दौरान मशीन ही पैदा कर सकती है, न कि परीक्षा संस्था या कोर्ट, बशर्ते आपने पूरी कॉपी ही न सफ़ेद कर डाली हो।
बाक़ी रही सिंगल बेंच के आदेश की बात तो क्या पिछले साढ़े तीन सालों में एकल पीठों की हक़ीक़त जान नहीं ली है !
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