शिक्षा मित्रों की dbtc का आदेश , समझ नहीं आता है कि जब परमिशन दे ही दी है तो याचियों का रिजल्ट घोषित करने को क्यों नहीं कहा , वो भी बिना किसी वजह या ncte से बिना किसी clearification के ?14/01/2011 जब परमिशन मांगी थी ।
26/10/2015 ncte की चिट्ठी का सच आपको अमिताभ अग्निहोत्री जी के शो में बताया था ।
09/04/2016 को संजय सिन्हा जी के द्वारा इनके dbtc को 1995 के किसी शासनादेश के तहत वैलिड माना और btc regular वालों को न्यौता दिया कि उसे चैलेंज करिये ।
25/06/2016 अम्बेडकर नगर के बीएसए की वजह से जनरल आदेश हुआ ।
पूर्ण पीठ माननीय उच्च न्यायालय के अनुसार पेंच :-
क्या ये अनट्रेंड टीचर्स हैं जैसा एकल पीठ कह रही है नीचे दिए हुए आदेश में ? तथ्य छिपाए गए क्या पैर्विकारों के अधिवक्ता अक्षम रहे पूर्ण पीठ के आदेश की फाइन्डिन्ग्स दिखाने में ?
तिलकधारी के अधिवक्ता का आदेश लिखाते वक्त कोर्ट में न होना या यूँ कहें कि प्रभावी पैरवी का आभाव रहा कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश इलाहाबाद उच्च न्यायालय को लिखते लिखते कि ट्रेनिंग misguide करके ली गई है फिर भी let it be और उसके बाद उस पर कोई एक्शन न लेना खैर ।
अब देखना ये होगा कि btc वाले किस प्रकार प्रभावी पैरवी करते है वैसे तो मुद्दा अब माननीय सर्वोच्च न्यायालय में है लेकिन ncte को उसके ही हलफनामे से और पूर्ण पीठ के आदेश की फाइंडिंग से ही इन्हें संविदा कर्मी घोषित कराना अनिवार्य होगा , इसके अलावा 1995 का शासनादेश स्वतः ही गौण हो जाता है क्योंकि नियुक्तियां आरटीई एक्ट 2009 के प्रावधान (अपेंडिक्स 9) के पश्चात की है।
फिलहाल एकल पीठ के आदेश में dbtc और टेट उत्तीर्ण का रिजल्ट न घोषित करने को कहकर जस्टिस उपाध्याय जी हिंट दे गए हैं ।
फिलहाल पैर्विकारों के अधिवक्ता ncte को फंसायें तो बेहतर है बाकी माननीय सर्वोच्च न्यायालय में ही देखा जाएगा क्योंकि उच्च न्यायालय का लचीला रुख न्याय कम डेट अधिक देता है।
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26/10/2015 ncte की चिट्ठी का सच आपको अमिताभ अग्निहोत्री जी के शो में बताया था ।
09/04/2016 को संजय सिन्हा जी के द्वारा इनके dbtc को 1995 के किसी शासनादेश के तहत वैलिड माना और btc regular वालों को न्यौता दिया कि उसे चैलेंज करिये ।
25/06/2016 अम्बेडकर नगर के बीएसए की वजह से जनरल आदेश हुआ ।
पूर्ण पीठ माननीय उच्च न्यायालय के अनुसार पेंच :-
क्या ये अनट्रेंड टीचर्स हैं जैसा एकल पीठ कह रही है नीचे दिए हुए आदेश में ? तथ्य छिपाए गए क्या पैर्विकारों के अधिवक्ता अक्षम रहे पूर्ण पीठ के आदेश की फाइन्डिन्ग्स दिखाने में ?
तिलकधारी के अधिवक्ता का आदेश लिखाते वक्त कोर्ट में न होना या यूँ कहें कि प्रभावी पैरवी का आभाव रहा कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश इलाहाबाद उच्च न्यायालय को लिखते लिखते कि ट्रेनिंग misguide करके ली गई है फिर भी let it be और उसके बाद उस पर कोई एक्शन न लेना खैर ।
अब देखना ये होगा कि btc वाले किस प्रकार प्रभावी पैरवी करते है वैसे तो मुद्दा अब माननीय सर्वोच्च न्यायालय में है लेकिन ncte को उसके ही हलफनामे से और पूर्ण पीठ के आदेश की फाइंडिंग से ही इन्हें संविदा कर्मी घोषित कराना अनिवार्य होगा , इसके अलावा 1995 का शासनादेश स्वतः ही गौण हो जाता है क्योंकि नियुक्तियां आरटीई एक्ट 2009 के प्रावधान (अपेंडिक्स 9) के पश्चात की है।
फिलहाल एकल पीठ के आदेश में dbtc और टेट उत्तीर्ण का रिजल्ट न घोषित करने को कहकर जस्टिस उपाध्याय जी हिंट दे गए हैं ।
फिलहाल पैर्विकारों के अधिवक्ता ncte को फंसायें तो बेहतर है बाकी माननीय सर्वोच्च न्यायालय में ही देखा जाएगा क्योंकि उच्च न्यायालय का लचीला रुख न्याय कम डेट अधिक देता है।
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