68500 पदों पर नियुक्ति के लिए अथॉरिटी नहीं तो सरकार ने कैसे तय की गाइड लाइन?

सहायक अध्यापक भर्ती में सरकार की गाइड लाइन को हाई कोर्ट में चुनौती
चीफ जस्टिस की बेंच कर रही सुनवाई, राज्य सरकार से जानकारी तलब

योगी सरकार की पहली शिक्षक भर्ती पर विवादों का साया मंडराने लगा है। प्राइमरी स्कूलों में रिक्त 68500 पदों पर नियुक्ति के लिए सरकार की तरफ से तय की गाइड लाइन को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दे दी गयी है। याचिका में कहा गया है कि सरकार गाइड लाइन तय करने का अधिकार ही नहीं रखती है। कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा तय की गयी गाइड लाइन एवं संशोधित नियमों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर राज्य सरकार से जानकारी तलब की है। याचिका पर सुनवाई 1 फरवरी को भी होगी.
सरकार का फैसला कानूनन गलत
यह आदेश चीफ जस्टिस डीबी भोसले तथा जस्टिस सुनीत कुमार की खंडपीठ ने विद्याचरण शुक्ल की याचिका पर दिया है। याची के वरिष्ठ अधिवक्ता एचएन सिंह का कहना है कि अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 की धारा- 23 के तहत केन्द्र सरकार की अधिसूचना से गठित एकेडमिक अथारिटी को ही योग्यता व गाइड लाइन तय करने का अधिकार है। राज्य सरकार को गाइड लाइन बनाने व न्यूनतम या आवश्यक अर्हता तय करने का अधिकार नहीं है। राज्य सरकार ने बिना अधिकार के अर्हता के गाइड लाइन तय की है, जो कानूनन गलत है। एनसीटीई द्वारा निर्धारित गाइड लाइन व न्यूनतम अर्हता का पालन सभी राज्यों को करना अनिवार्य है।
शिक्षा मित्रों को अवसर ही नहीं मिलेगा

याची का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने न्यूनतम अर्हता न रखने के कारण शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक पद पर समायोजन रद करते हुए लगातार दो वर्षो में टीईटी परीक्षा पास करने का समय दिया है। राज्य सरकार के भर्ती विज्ञापन से शिक्षा मित्रों को सुप्रीम कोर्ट से मिले अवसर अर्थहीन हो जाएंगे। याची का यह भी कहना है कि जिलेवार योग्यता निर्धारण करना भी गलत है। ऐसे में राज्य सरकार द्वारा एनसीटीई की गाइड लाइन के विपरीत गाइड लाइन तय करने को रद किया जाए। कोर्ट ने सरकारी अधिवक्ता से याचिका में उठाए गए मुद्दों पर सरकार से जानकारी लेने को कहा है.
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