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किसी में हिम्मत नहीं थी कि फैसलों पर प्रतिवाद करे : 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती Latest News

राज्य ब्यूरो, इलाहाबाद : प्रतियोगी छात्रों की लंबी लड़ाई के बाद हटाए गए लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अनिल यादव की कार्यशैली तानाशाहों जैसी रही। आयोग में उनकी इच्छा सवरेपरि थी। उनके आदेश पर ही नियम बनते-बिगड़ते रहे। यहां तक कि सदस्यों के संवैधानिक अधिकार भी अनिल की मनमर्जी के आगे दबे नजर आते रहे।
किसी भी सदस्य में इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि किसी गलत फैसले का दबी जुबान भी प्रतिवाद कर सके।

अनिल यादव ने पद संभालते ही उन्होंने आयोग की परीक्षाओं में त्रिस्तरीय आरक्षण लागू किया और 2011 की प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम इसी आधार पर घोषित भी कर दिया। यह परिणाम जुलाई 2013 में घोषित हुआ था। प्रतियोगी छात्रों ने इस फैसले का जबर्दस्त विरोध किया और आंदोलन की आग पूरे प्रदेश में फैली। अंतत: हाईकोर्ट और सरकार के दबाव में यह फैसला वापस लेना पड़ा। आयोग को ऐसे किले में तब्दील कर दिया था जहां की गतिविधि का अंदाजा बाहर नहीं लगाया जा सकता था। सूचना अधिकार के कानून तक की धज्जियां उड़ीं। परीक्षाओं में किस जाति के अभ्यर्थी सफल हो रहे हैं, यह जानकारी तक गोपनीय कर दी गई। इसके लिए नियमों में बदलाव कर यह व्यवस्था बनाई गई कि परिणाम की घोषणा में जाति को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा। इससे भी बात नहीं बनी तो नियमों में और बदलाव करते हुए सिर्फ रोल नंबर और रजिस्ट्रेशन के आधार पर परिणामों की घोषणा की जाने लगी।

आयोग के सूत्रों के अनुसार अनिल यादव को अपने अधीनस्थ कार्य कर रहे कर्मचारियों तक पर भरोसा नहीं था। सिर्फ शक की बिना पर कई कर्मचारियों को प्रताड़ित किया गया। दफ्तर में भी लोग परस्पर बात करने में घबराते थे। सचिव से लेकर परीक्षा नियंत्रक तक किसी की भी हिम्मत नहीं थी कि वह मीडिया से सीधे बात कर सके।

अध्यक्ष को हटाने पर इविवि छात्रसंघ भवन पर खुशी का इजहार करते छात्र।
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