लखनऊ : न उगलते बन रहा है और न निगलते...। सरकार
शिक्षामित्रों के साथ पूरी तरह से है लेकिन उन्हें पगार नहीं दे सकती।
दीवाली जैसा बड़ा त्योहार सामने है और शिक्षामित्र न्यायालय के आदेश के
चलते वेतन से दूर है। वहीं वोट बैंक की राजनीति के चलते इन्हें सिर-माथे पर
रखने वाली सरकार इतनी बेबस है कि वेतन देने का आदेश नहीं दे सकती।
बात सिर्फ वेतन न मिलने की नहीं है, बल्कि भविष्य की
अनिश्चितता भी सामने है। सरकार तय कर चुकी है कि सुप्रीम कोर्ट मंे विशेष
अनुज्ञा याचिका दायर की जाएगी लेकिन फैसला आने तक शिक्षामित्रों को वेतन
मिलेगा या नहीं, ये भी अब न्यायालय ही तय करेगा। शिक्षामित्रों की आस कायम
है लेकिन कई जिलों से शिक्षामित्रों के हृदयघात और बीमार पड़ने की खबरें भी
हैं।
नियमों में फंसेगा मामला-राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद
(एनसीटीई) ने भी संकेत दे दिए हैं कि वह न्यायालय में अपना पक्ष रखेगी।
एनसीटीई के नियमों में साफ है कि नई नियुक्ति में अध्यापक पात्रता परीक्षा
की छूट नहीं दी जा सकती। पहले से सेवारत शिक्षकों को इसकी छूट है लेकिन
राज्य सरकार ने शिक्षामित्रों को नई नियुक्ति दी है। मामला यहां फंस सकता
है। इसके अलावा इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में समायोजन रद्द करने के कई और
बिन्दु भी हैं। 12 सितम्बर को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1.30 लाख
शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द कर दिया है और इसे अवैध करार दिया है।
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