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शासन के आदेश पर शिक्षामित्रों ने पैनी की अपनी नजरें

भले ही शिक्षामित्र स्कूलों में जाकर शिक्षण कार्य कर रहे हैं, लेकिन अभी भी उनका मन परेशान है। उनकी निगाहें शासन के आदेश पर हैं। वे शासन से सकारात्मक पहल की उम्मीद लगाए बैठे हैं। समायोजन रद्द होने से शिक्षामित्रों के भविष्य पर संकट के बादल छा गए हैं।
उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा आदेश भी होगा, जो उनकी सालों की मेहनत व स्कूलों में निष्ठा के साथ किए गए अध्यापन कार्य का ऐसा सिला देना। भविष्य को बचाने के लिए शिक्षामित्रों ने सात दिन तक धरना प्रदर्शन भी किया था। प्रदेश सरकार के उनके हित में निर्णय लिए जाने की बात के आश्वासन के बाद शिक्षामित्रों ने धरना प्रदर्शन भले की स्थगित कर दिया है, लेकिन उनकी चिंता बरकरार बनी हुई है। यह चिंता तभी दूर होगी, जब प्रदेश सरकार उनके हित को ध्यान में रखते हुए कोई सकारात्मक आदेश जारी करे। हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा भी होगा। अब तो प्रदेश सरकार से ही उम्मीद हैं। हमारे आने वाले कल को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री महोदय को निर्णय लेना चाहिए। सोनल उपाध्याय काफी लम्बे इंतजार के बाद गाड़ी पटरी पर आई थी, न जाने किस की नजर लग गई। अब तो प्रदेश सरकार से ही आस है। जब तक कोई आदेश जारी नहीं होता, तब तक चिंता दूर नहीं होगी। उमा परमार। जब तक प्रदेश सरकार का कोई निर्णय नहीं आता, तब तक शिक्षक पद के हिसाब से ही वेतन का भुगतान होना चाहिए। इस से शिक्षामित्र साथियों को काफी राहत मिलेगी। बृजेश वशिष्ठ, अध्यक्ष शिक्षामित्र संघ। शिक्षामित्र के पद पर तैनात इसीलिए हुए थे कि भविष्य अच्छा रहेगा और ऐसा हुआ भी, लेकिन समायोजन रद्द होने से अंधेरा सा छा गया है। अब प्रदेश सरकार के आदेश पर निगाहें टिकी हैं। विनय भारद्वाज।

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