Important Posts

Advertisement

A Failure Teacher की ये वायरल पोस्ट पढ़कर मन भर आता है

#AFailureTeacher की ये वायरल पोस्ट पढ़कर मन भर आता है
सरकारी स्कूल में पढ़ाना सिर्फ पढ़ाना भर नहीं होता. यह पढ़ना होता है हालात को, जिनमें हमारे बच्चे रह रहे हैं, जी रहे हैं. एक ही क्लास में एक को बीस तक पहाड़ा याद है, दूसरे को गिनती की समझ तक नही है. मानसिक स्तर पर देखा जाए तो हर कक्षा में कम से कम पांच ग्रुप बनेंगे.

बच्चों पर हाथ उठाना बिलकुल अच्छा नहीं लगता, चाहता हूं कि वो स्कूल से डरें नहीं, स्कूल को प्यार करें. मगर कैसे? मैं उनको गिनती सिखाने की कोशिश करता हूं, वो खिड़की से झूल रहे होते हैं. मैं वर्णमाला की पहचान कराना चाहता हूं वो पेंसिल से कटोरे पर संगीत की प्रैक्टिस में लगे हैं. मैं चाहता हूं वो फूल, पत्ती, तितली, बादल बनाएं पर कहां? न कागज़ है, न रंग है. रंग तो ख़ैर कहीं नहीं है.
”चबी चीक्स, डिम्पल चिन, रोज़ी लिप्स” यह सब परी कथा की बातें हैं. इनके कर्ली हेयर में सालों से तेल नहीं पड़ा, बुरी तरह उलझे हुए हैं. पिछले साल की यूनिफॉर्म में एक भी बटन सलामत नहीं है. इनकी आंखों में हल्का पीलापन है. कई बार ये कंजेक्टिवाइटिस का शिकार भी दिखती हैं. धान रोपने की वजह से पैर की उंगलियों में सड़न हो गई है. दर्द भी है. खेल-खेल में ये अक्सर चोटिल हो जाती हैं.
मैं उनके साथ सख्त होने की कोशिश करना चाहता हूं लेकिन असफ़ल रहता हूं. उनके साथ तो ज़िन्दगी ही इतनी सख़्त है. स्कूल का हैण्डपम्प एक गड्ढे में है, जिसमें बरसात का पानी भरा है. उस नल का पानी पीने का जी नहीं करता लेकिन उन बच्चों के बीच घर से ले जाई गई बोतल का पानी पीना मुझे भीतर तक अश्लील दिखने के अहसास से भर देता है.
जिस बच्चे को कॉपी न होने के कारण डपट कर पिता को बुला कर लाने को कहता हूं उसके पिता ही नही हैं. मैं सन्न हूं.
“मैडम बप्पा कहिन हैं पइसा होइ तब आधार कार्ड बनवाय देहैं.”
“बप्पा क्या काम करते हैं गोलू? मैं बेख्याली में पूछता हूं.
”का करैं? कमवै नाय लागत है…”
पिता इस समय खाली हाथ हैं. पैसे से भी और काम से भी.
कुछ बच्चे क्रूर शब्दों में कहूं तो मन्द बुद्धि हैं. ये अतिरिक्त ध्यान चाहते हैं. नही संभव हो पाता. ये प्यार की भाषा समझते हैं बस. इसलिए हर जगह पीछे-पीछे हैं. पढ़ाने में बाधा होती है तो कभी-कभी डांट देता हूं.
अपनी क्लास में जाओ!
ये रो पड़ते हैं. मैं शर्मिंदगी के अहसास से भर उठता हूं अपने जंगलीपन पर. इनको मनाता हूं. ये फिर पहले की तरह मेरे पीछे लग जाते हैं. ये अक्सर कॉपी-कलम नहीं लाते. मुझे कोफ़्त होती है. कैसे पढ़ाऊं? कैसे लिखना सिखाऊं? लेकिन अक्सर ये कच्चे-पक्के अमरूद लाते हैं मेरे लिए. कभी-कभी बेर भी. बड़ी मुश्किल से हासिल इन मौसमी फलों में से वो एक भी अपने लिए बचाना नहीं चाहते.
इनके आई.ए.एस, डॉक्टर या इंजीनियर बनने का ख़्वाब मैं किन आंखों से देखूं. हर रोज़ बस एक दुआ पढ़कर फूंकता हूं कि ईश्वर ऐसी मुसीबत में कभी न डाले कि तुम्हारी यह निश्छलता खो जाए. इतने ताकतवर बनो कि हर तकलीफ़ तुम्हारे आगे घुटने टेक दे. बस यही एक दुआ.
sponsored links:
ख़बरें अब तक - 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती - Today's Headlines

UPTET news