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शिक्षामित्रों को बिना वेतन के हो गए तीन माह, अब पाई पाई को हुए मोहताज

आगरा। सुप्रीम कोर्ट से समायोजन रद्द हुए शिक्षामित्रों को 3 माह का समय गुजर गया है। कहते हैं, एक माह का सरकारी नौकरी वाले को वेतन न मिले, तो हालत खराब हो जाती है, लेकिन तीन माह से बिना वेतन के इन शिक्षामित्रों के आगे बड़ा संकट आ गया है। कर्ज लेकर घर चला रहे हैं।
कई शिक्षामित्रों के बच्चे जो सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे थे, उनकी कोचिंग छूट गई हैं। अब तो इन्हें कहीं से कर्ज भी नहीं मिल रहा है।
शिक्षामित्र के घर का लाइव
पत्रिका टीम रुनकता के गांव खड़वाई पहुंची। यहां शिक्षामित्र राम प्रकाश के घर बड़ा सन्नाटा पसरा हुआ था। राम प्रकाश घड़े से पानी निकाल रहे थे। पत्रिका टीम को देखा, तो वे उसके पास आ गए। पूछा कहां से आए हैं, पत्रकारा होने की जानकारी होने पर कमरे में बिठाया। पूछने से पहले ही बताने लगे, कि तीन माह में सबकुछ बदल गया है। बच्चों की पढ़ाई छूट गई हैं, अब प्राइवेट नौकरी की तलाश कर रहे हैं। घर का खर्च नहीं चल पा रहा है। उन्होंने बताया कि उनकी उम्र 50 वर्ष है। इस उम्र में अब दूसरी नौकरी कहां से मिलेगी। बच्चों की पढ़ाई भी पूरी नहीं हो सकी। नौकरी के कुछ वर्ष और मिल जाते तो बच्चे कहीं अच्छी जगह पर नौकरी में लग जाते, लेकिन अब तो ये उम्मीद भी टूटती जा रही है।
यहां कर्ज पर चल रही जिंदगी
रामप्रकाश के घर के बाद पत्रिका टीम इसी गांव की शिक्षामित्र विजया के घर पहुंची। विजया घर के आंगन में गेंहूं साफ कर रही थीं। उनके पति इन्द्रजीत मिले। उनसे बात हुई, तो सरकार को कोसने लगे। इन्द्रजीत ने कहा कि भाजपा सरकार से बहुत उम्मीद थी। आज भी सीएम योगी का वो वीडियो है, जिसमें उन्होंने हाईकोर्ट का फैसला आने के बाल सपा सरकार को घेरते हुए शिक्षामित्रों का भला करने की बात कही थी। सरकार ने शिक्षामित्रों के लिए कोई काम नहीं किया। उन्होंने बताया कि इससे अच्छा तो नौकरी नहीं मिलती, कम से कम व्यापार तो चलता रहता।
ये बोली महिला शिक्षामित्र
महिला शिक्षामित्र विजया ने बताया कि पति इन्द्रजीत नौकरी मिलने से पहले किराने की दुकान चलाते थे। नौकरी मिली तो स्कूल 80 किमी दूर मिला। पति को रोजाना स्कूल लाना ले जाना पड़ता था, जिसकी वजह से दुकान बंद कर दी। अब नौकरी तो हाथ से गई, व्यापार भी हाथ से चला गया। आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो गई है। कर्ज लेकर घर का खर्च चला रहे हैं।
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