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शिक्षामित्रों को कोर्ट से एक बार फिर मिली निराशा: शिक्षामित्रों की मांग पर विचार करने से सुप्रीम कोर्ट का इन्कार, कोर्ट ने उनकी सारी दलीलें की खारिज

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के शिक्षा मित्रों को एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट से निराशा मिली है। कोर्ट ने उनकी सेवानिवृति और पेंशन लाभ दिये जाने की मांग पर विचार करने से को इन्कार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि याचिका समयपूर्व दाखिल की गई है।


न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ व न्यायमूर्ति अमिताव राय की पीठ ने चार शिक्षा मित्रों की ओर से दाखिल याचिका पर विचार करने से साफ इन्कार करते हुए याचिका को डिसमिस एस विद्ड्रान करार दिया। इससे पहले याचिकाकर्ताओं के वकील ने कोर्ट से अनुरोध किया कि वह सरकार को आदेश दे कि अगर याचिकाकर्ता शिक्षामित्र दो साल के भीतर जरूरी योग्यता हासिल कर नियमित नियुक्ति पा लेते हैं तो उनकी शिक्षामित्र के तौर पर की गई नौकरी को भी सेवा अवधि में जोड़ा जाए और उन्हें सेवानिवृति के अन्य लाभ व पेंशन लाभ दिये जाएं। ये लाभ उन लोगों को दिया जाए जो 23 अगस्त 2010 से पहले शिक्षा मित्र या सहायक शिक्षक के तौर पर काम कर रहे हैं।

वकील का यह भी कहना था कि सुप्रीम कोर्ट ने जरूरी अर्हता हासिल करने के लिए दो साल का वक्त दिया है। इस दौरान उन्हें समान कार्य समान वेतन के सिद्धांत के मुताबिक वेतनमान दिया जाए। कोर्ट ने उनकी दलीलें खारिज करते हुए कहा कि यह याचिका प्री मेच्योर है। अभी याचिकाकर्ताओं को परीक्षा पास करनी है, ये स्थिति उसके बाद की है। अभी इस मामले पर विचार नहीं हो सकता।

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