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शिक्षामित्रों की व्यथा के कुछ अनसुलझे प्रश्न

शिक्षामित्र व्यथा कुछ अनसुलझे प्रश्न
1-Ncte एक तरफ कहती है sm सेवारत अध्यापक है इसलिए tet से छूट प्रदान की जाती है परंतु कोर्ट में ये बात कहने में मुकर जाती है क्योंकि तब संस्था की वैधानिकता पर एक प्रश्नचिन्ह लग जाता ये राजनीति sm के जीवन के साथ क्यो

2-सरकार ncte से 124000 की परमिशन लेकर ट्रेनिंग करवाती है जो सिर्फ अप्रशिक्षित सेवारत अध्यापक को दी जा सकती है परंतु ncte कोर्ट में ये कहकर मुकर जाती है कि राज्य सरकार ने तथ्यों को छुपाकर परमिशन ली थी क्या ये मजाक नही है शिक्षामित्र के जीवन के साथ क्योंकि 2001 से सरकारी स्कूलों में कार्य करने वाले शिक्षामित्रों का मानदेय किसी पड़ोसी देश से आता था या उत्तर प्रदेश भारत के बाहर का कोई हिस्सा है जो केंद्रीय संस्थाओ को इतना भी ज्ञान नही है। इसमें शिक्षामित्र का कोई रोल नही फिर भी सजा सिर्फ शिक्षामित्र को क्यों
3-सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय देते वक्त हिंदुस्तान का पूरा संविधान शिक्षामित्र के ऊपर लागू कर दिया और सरकारों ने ये कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया कि ये तो सुप्रीम कोर्ट का निर्णय है हम इसमे कुछ नही कर सकते परन्तु दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट के अन्य निर्णयों जैसे समान कार्य समान वेतन, अस्थायी कर्मचारियों के स्थायीकरण या फिर केंद्र सरकार द्वारा पारित कॉन्ट्रैक्ट लेबर एक्ट और न्यूनतम प्रशिक्षित मजदूरी आदि को शिक्षामित्रों के ऊपर लागू करने में आनाकानी का अर्थ क्या लगाया जाए यहां एक बार फिर शिक्षामित्र के साथ राजनीति क्यों
4-सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्णय देते वक्त ये कहा गया कि यह मामला 6 से 14 वर्ष के बच्चों की शिक्षा से जुड़ा है इसलिए शिक्षामित्रों के द्वारा शिक्षण कार्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ अन्याय है तो एक नया प्रश्न ये भी है कि वही शिक्षामित्र 10000 में शिक्षण कार्य करेगा तो शिक्षा की गुणवत्ता खराब नही होगी क्या या फिर शिक्षामित्र से भविष्य में शिक्षण कार्य नही लिया जाएगा और ये 10000 रुपये प्रति माह उनकी पूर्व की सेवाओं का प्रतिफल होगा  ये प्रश्न उन बुद्धिजीवियो से है जो अपनी ज्ञान की गंगा रोज शिक्षामित्रों के ऊपर बहा देते है या वो बुद्धिजीवी वर्ग ही बुद्धिहीन है
5-वर्तमान में शिक्षामित्र आंदोलन के समय ये कहा जाना कि सरकार ने उनका मानदेय 3500 से बढ़ाकर 10000 कर दिया तो एक प्रश्न ये भी है कि ये मानदेय बढ़ोत्तरी कई माह पहले हो चुकी है परंतु लागू आज तक नही हुई उसी तरह अनुदेशको का मानदेय भी बढ़कर 17000 हो चुका है परन्तु मिला आज तक नही इसकी जिम्मेदारी भी सरकार की है परंतु इस प्रश्न पर मौन है सभी नेता आखिर क्यों
6-शिक्षामित्र की सेवाएं 17 वर्ष पुरानी है परंतु आज तक किसी भी कर्मचारी सेवा नियमावली में शिक्षामित्र का नाम दर्ज नही है कोर्ट से हार का मुख्य कारण यही है परंतु शिक्षामित्रों की इस जायज मांग पर सरकारों की कोई प्रतिक्रिया नही क्या ये मांग असंवैधानिक है या शिक्षामित्रो के हित लिए कोई कानून इस देश के संविधान में नही है
7-सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय में कहा है कि शिक्षामित्र पूर्ववर्ती सपा सरकार के वोटर है इसलिए उनका समायोजन राजनीतिक फायदों के लिए गलत नियमो के तहत किया गया परंतु कोर्ट ने ये नही देखा कि ये अगर वोटर है तो इस देश के मूल नागरिक भी है इसलिए अगर कोर्ट चाहती तो शिक्षामित्रों की लंबी सेवा देखते हुए उनके स्थायी रोजगार की कोई व्यवस्था हेतु राज्य सरकार को निर्देशित कर सकती थी परंतु नही किया क्यों
8-शिक्षामित्रों ने किसी कानून या नियम को नही बनाया सिर्फ उनका पालन किया जो नियम या कानून सरकारों द्वारा उनके ऊपर लागू किये गए किन्तु सज़ा सिर्फ शिक्षामित्र को मिली क्या वो नेता या अधिकारी लेशमात्र भी दोषी नही थे जो उनको भी कोई सज़ा मिलती हरियाणा सरकार में ओम प्रकाश चौटाला को सज़ा परंतु up  में किसी भी अधिकारी तक को कोई दंड नही क्या यही न्यायव्यवस्था है

     कहने और लिखने को और भी बहुत कुछ है परंतु इन गूंगी बहरी सरकारों के आगे कहना भी अब बेमानी लगता है शिक्षामित्र आंदोलन से जुड़ी बातें और उनके अधिकारों पर अगली पोस्ट में लिखूंगा
अंतिम लाइन अगले जन्म मोहे शिक्षामित्र न कीजो
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