नई दिल्ली : हाई कोर्ट के आदेश के बाद बिहार में राज्य सरकार के
शिक्षकों के समान वेतनमान की बाट जोह रहे स्थानीय निकाय और पंचायत
अध्यापकों (नियोजित शिक्षक) के लिए थोड़ी निराशा की खबर है। सुप्रीम कोर्ट
ने फिलहाल मामले में यथास्थिति कायम रखने के आदेश दे दिए हैं।
हालांकि
कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश
दिया है कि वह तीन सदस्यीय विशेषज्ञ समिति गठित कर
नियोजित शिक्षकों को भी बराबरी का तर्कसंगत वेतनमान देने पर विचार करे।
बिहार सरकार विचार करने के बाद प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट में पेश करेगी।
कोर्ट मामले में 15 मार्च को फिर सुनवाई करेगा।
यह आदेश न्यायमूर्ति एके गोयल व यूयू ललित की पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश के
खिलाफ दाखिल बिहार सरकार की याचिका पर सुनवाई के बाद दिए। पटना हाईकोर्ट ने
गत वर्ष 31 अक्टूबर को नियोजित शिक्षकों को भी राज्य सरकार द्वारा भर्ती
नियमित शिक्षकों के समान वेतनमान देने का आदेश दिया था। सरकार ने फैसले को
सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। राज्य में करीब साढ़े तीन लाख नियोजित
शिक्षक हैं। शीर्ष अदालत में सुनवाई के दौरान बिहार सरकार के वकील मुकुल
रोहतगी और गोपाल सुब्रमण्यम ने हाई कोर्ट के आदेश का विरोध किया। कहा कि
इससे राज्य सरकार पर बहुत अधिक आर्थिक बोझ पड़ेगा। करीब 50 हजार करोड़
रुपये बकाया और 28 हजार करोड़ रुपये प्रति वर्ष वेतन के रूप मे देना होगा।
जबकि सूबाई सरकार का शिक्षा का कुल बजट 25 हजार करोड़ है। यह भी कहा कि
राज्य के जिन शिक्षकों के बराबर वेतन देने का हाई कोर्ट ने आदेश दिया है,
वह तो अब खत्म हो रहा कैडर है। उस कैडर में सिर्फ 70 हजार शिक्षक बचे हैं।
क्योंकि राज्य सरकार ने 2006 के बाद से नियमित भर्ती बंद कर दी है। 2006
में नए भर्ती नियम बने हैं, जिनके तहत नियोजित शिक्षकों की भर्ती होती है।
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को दिया निर्देश
तीन सदस्यीय समिति गठित कर प्रस्ताव पेश करने को कहा
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