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भर्तियों की सीबीआइ जांच का निर्णय किन तथ्यों पर, हाईकोर्ट ने सरकार को किया जवाब तलब

इलाहाबाद : उप्र लोकसेवा आयोग से पांच साल के दौरान हुई सभी भर्तियों की सीबीआइ जांच के आदेश पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि किन तथ्यों के आधार पर आयोग से हुई भर्तियों की सीबीआइ जांच कराने का निर्णय लिया गया।
साथ ही आयोग से भी पूछा है कि आयोग के क्या अध्यक्ष और सदस्य, सरकार की ओर से जांच कराने की अधिसूचना की वैधता को चुनौती दे सकते हैं? याचिका पर सुनवाई नौ जनवरी को होगी।1यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डीबी भोंसले तथा न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की खंडपीठ ने उप्र लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष अनिरुद्ध सिंह यादव व सदस्यों की तरफ से दाखिल याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है। याचिका में उप्र लोकसेवा आयोग की एक अप्रैल, 2012 से 31 मार्च, 2017 तक हुई सभी भर्तियों की सीबीआइ जांच कराने की अधिसूचना की वैधता को चुनौती दी है। केंद्र सरकार ने राज्य सरकार की संस्तुति पर एक अप्रैल, 2012 से 31 मार्च, 2017 तक की भर्तियों की सीबीआइ जांच कराने की अधिसूचना जारी की है। आयोग का कहना है कि संवैधानिक संस्था की जांच नहीं कराई जा सकती है।1याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता शशिनंदन का कहना है कि हाईकोर्ट भी संवैधानिक संस्था है। महानिबंधक के मार्फत याचिका दाखिल की जा सकती है। इसलिए आयोग को भी याचिका दाखिल करने का अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि क्या आयोग के अध्यक्ष याचिका दाखिल कर सकते हैं। कोर्ट ने राज्य सरकार से जानना चाहा है कि आयोग के क्रियाकलापों की जांच कराने का निर्णय किन तथ्यों के आधार पर लिया गया। अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता एके गोयल का कहना है कि आयोग के पूर्व अध्यक्ष अनिल यादव की नियुक्ति को हाईकोर्ट ने विधि विरुद्ध करार दिया था। उन पर चयन में धांधली करने का आरोप है।

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