इलाहाबाद : उप्र लोकसेवा आयोग में भर्तियों की जांच कर रहे सीबीआइ
अफसरों को एपीएस (अपर निजी सचिव) भर्ती 2010 में भी पूर्व अध्यक्ष डा. अनिल
यादव और उनके नेतृत्व वाली परीक्षा समिति की मनमानी का बड़ा सुबूत मिला
है।
इस समिति ने कई अभ्यर्थियों से बैक डेट में प्रमाणपत्र लगवाए। इसका
प्रस्ताव भी समिति ने पारित किया था। 1 सीबीआइ ने आयोग में कार्यरत एक ऐसे
एपीएस से पूछताछ की जो इससे पहले राजकीय डिग्री कालेज में लेक्चरर था। इतनी
बड़ी पे स्केल की नौकरी छोड़कर एपीएस बनने का कारण पूछने पर उसने
माता-पिता की बीमारी का हवाला दिया, जिसे सीबीआइ ने सही नहीं माना।1वहीं,
तीन ऐसे चयनित के बारे में जानकारी हुई जिनकी अर्हता के प्रमाणपत्र 2015
में लगवाए गए जबकि प्रारंभिक परीक्षा 2013 में हुई थी। एपीएस भर्ती 2010
में सीबीआइ को वे प्रमाणपत्र हाथ लगे, जिसे बैक डेट में जमा कराया गया था।
परीक्षा के असफल अभ्यर्थियों का आरोप था कि अधिकांश ऐसे अभ्यर्थियों के चयन
हुए हैं जिनके रिश्तेदार या बेहद करीबी लोग उप्र सचिवालय और उप्र लोकसेवा
आयोग में हैं। सीबीआइ ने जांच में यह शिकायत सही पाई है। टीम को वह
प्रस्ताव भी मिल गया है जिसमें पूर्व अध्यक्ष डा. अनिल यादव ने बैक डेट में
अर्हता के प्रमाणपत्र लेने की अनुमति का अनुमोदन किया था और समिति के
सदस्यों ने इस पर सहमति जताई थी।
