इलाहाबाद : यूपी बोर्ड की परीक्षा के दौरान इम्तिहान छोड़ने का रेकॉर्ड
बना। परिणाम के समय अफसरों को सफलता प्रतिशत सुधारने के लिए अतिरिक्त
प्रयास करना पड़ा। ये जतन इसलिए किए गए ताकि छात्रों में कुंठा के बजाए
पढ़ने की ललक बढ़े। प्रदेश सरकार जैसे-तैसे रिजल्ट दुरुस्त कराने में सफल
रही है, अब सबसे बड़ी चुनौती माध्यमिक कालेजों में पढ़ाई कराना है। इसके
लिए मुहिम शुरू करने की तैयारी है, ताकि अब परीक्षा छोड़ने व परिणाम
सुधारने की नौबत न आए।
योगी सरकार ने जिस तरह से बिना छात्र-छात्रओं को जेल भेजे नकल पर अंकुश
लगाया, उसी तर्ज पर शिक्षकों से पढ़वाने का खाका खींच रही है। इस दिशा में
आगे बढ़ने की शुरुआत हो चुकी है, नया सत्र शुरू होने के साथ ही नए
एनसीईआरटी पाठ्यक्रम की किताबें बाजार में उपलब्ध हो गई हैं और तय लक्ष्य
के हिसाब से अप्रैल में ही हाईस्कूल व इंटर का रिजल्ट भी आ गया है। अब
कैलेंडर के अनुरूप पढ़ाई कराने की तैयारी है। शिक्षक पढ़ा रहे हैं या नहीं
इसकी निगरानी परीक्षा के समय कालेजों में लगे सीसीटीवी कैमरों के जरिए
होगी। विभागीय अफसरों को निरीक्षण करने की जगह कार्यालय में ही किसी भी
कालेज का पठन-पाठन देख सकेंगे। कालेजों में हाजिरी के बायोमैटिक मशीनें
पहले से लगी हैं।
खराब रिजल्ट पर कसेगा शिकंजा : यूपी बोर्ड के रिजल्ट में इस बार प्रदेश के
98 राजकीय कालेज व आठ अशासकीय सहायता प्राप्त कालेज ऐसे रहे हैं, जिनका
परिणाम 20 फीसदी से भी कम रहा है। वहीं, इंटर में चार राजकीय व 42 अशासकीय
कालेजों का परिणाम बीस फीसदी से नीचे रहा।1जिन विषयों का परिणाम ठीक नहीं
रहा, उन शिक्षकों की जवाबदेही तय करने की तैयारी है। ऐसे शिक्षकों को नोटिस
देकर पूछताछ भी सकती है। ऐसे ही जिन 150 कथित कालेजों का रिजल्ट शून्य रहा
है, वहां शिक्षकों का प्रबंध करने व तैनात शिक्षकों से जवाब तलब करने की
योजना है।
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