सुप्रीम कोर्ट ने सूचना के अधिकार के तहत छात्र को उसकी परीक्षा की
उत्तर पुस्तिका दिखाये जाने के हक पर एक बार फिर अपनी मुहर लगाई है।
कोर्ट
ने उत्तर पुस्तिका दिखाने की यूपीपीसीएस (ज्युडिशियल) यानी न्यायिक सेवा के
छात्र की मांग स्वीकार करते हुए यूपी पब्लिक सर्विस कमीशन (यूपीपीएससी) को
निर्देश दिया है कि वह चार सप्ताह के भीतर छात्र को उसकी उत्तर पुस्तिका
दिखाए। कोर्ट ने कहा कि छात्र को उत्तर पुस्तिका दिखाने की इजाजत देने से न
तो जनहित प्रभावित होता है और न ही सरकार के कामकाज पर किसी तरह का असर
पड़ता है। 1छात्र के हक में यह फैसला न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर व
न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने यूपीपीसीएस (ज्यूडिशियल) छात्र मृदुल
मिश्र की याचिका स्वीकार करते हुए सुनाया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट से निराश
होने के बाद मृदुल मिश्र ने वकील मीनेश दुबे के जरिये सुप्रीम कोर्ट में
याचिका दाखिल कर सूचना के अधिकार कानून के तहत परीक्षा की उत्तर पुस्तिका
दिखाने की मांग की थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि छात्र को उत्तर पुस्तिका
देखने का हक नहीं है। 1सुप्रीम कोर्ट ने सूचना के अधिकार कानून की धारा
8(1)(ई) की व्याख्या करते हुए अपने पूर्व फैसलों का हवाला दिया है। इसमें
छात्र के उत्तर पुस्तिका देखने के हक पर मुहर लगाई गई थी। सीबीएससी बनाम
आदित्य बंधोपाध्याय फैसले का जिक्र करते हुए कोर्ट ने कहा कि उस फैसले में
कहा जा चुका है कि परीक्षा कराने वाली संस्था भरोसे के रिश्ते के तहत उत्तर
पुस्तिका दिखाने से नहीं रोक सकती। परीक्षार्थी उत्तर पुस्तिका देखने का
अधिकारी है। कोर्ट ने मिश्र की याचिका निपटाते हुए कहा कि छात्र को उत्तर
पुस्तिका देखने की इजाजत देने में किसी तरह का जनहित शामिल नहीं है और न ही
इससे सरकार के कामकाज की गुणवत्ता पर कोई असर पड़ता है। कोर्ट ने कहा कि
इसमें सिर्फ गोपनीयता और संवेदनशील सूचना के प्रकट होने का मुद्दा शामिल हो
सकता है लेकिन आदित्य बंधोपाध्याय के फैसले में उसका स्पष्ट तौर पर जिक्र
किया गया है। उस फैसले में कहा जा चुका है कि गोपनीयता बनाए रखने के लिए
कापी जांचने वाले परीक्षक की पहचान नहीं बताई जाएगी। उसकी पहचान गोपनीय रखी
जाएगी। कोर्ट ने कहा कि छात्र उत्तर पुस्तिका देखने का अधिकारी है। कोर्ट
ने यूपीपीएससी को चार सप्ताह मे समय और दिन तय करके छात्र को बताने को कहा
है ताकि वह उस दिन आकर वह उत्तर पुस्तिका देख सके।
