देहरादून, [जेएनएन]: शिक्षकों की डिग्रियों की जांच कर
रही एसआइटी ने पांच और शिक्षकों के प्रमाण पत्र फर्जी पाए हैं। इनके खिलाफ
शिक्षा महानिदेशक को मुकदमे की संस्तुति की गई है। एसआइटी अब तक 48 फर्जी
डिग्रीधारी शिक्षकों के खिलाफ संस्तुति दे चुकी है।
इनमें से 13 से ज्यादा शिक्षक रिटायर भी हो चुके हैं। सरकार ने शिक्षा
विभाग में 2012 से 2016 के बीच फर्जी डिग्री और दस्तावेजों से नौकरी पाने
वाले शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई के लिए सीबीसीआइडी की एसआइटी गठित की थी।
इसकी जिम्मेदारी अपर पुलिस अधीक्षक श्वेता चौबे को सौंपी गई है। मामले में
एसआइटी ने जुलाई 2017 से जांच शुरू कर दी थी। एक साल के भीतर एसआइटी ने
करीब पांच हजार से ज्यादा शिक्षकों के प्रमाण पत्रों की जांच कराई।
एसआइटी प्रभारी एएसपी श्वेता चौबे ने बताया कि 300 से ज्यादा शिकायती
पत्रों को भी जांच में शामिल किया गया है। अब तक एसआइटी ने 48 शिक्षकों के
खिलाफ मुकदमे और विभागीय जांच की कार्रवाई को संस्तुति दी गई है। इनके
खिलाफ हुई कार्रवाई रीना रानी- निवासी शिवपुरी, लक्सर, हरिद्वार। आरोप है
कि फर्जी अस्थायी निवास प्रमाण पत्र के आधार पर रीना ने फरवरी 2016 में
राजकीय प्राथमिक विद्यालय चमडूगंरा, गंगोलीहाट, पिथौरागढ़ में नियुक्ति
पाई।
एसडीएम लक्सर ने उनके निवास प्रमाण पत्र के फर्जी होने की पुष्टि की है।
धीरज सिंह- सहायक अध्यापक प्राथमिक विद्यालय धीमरखेड़ा, काशीपुर। आरोप है
कि धीरज ने हाईस्कूल के प्रमाण पत्र पर फर्जी नाम दर्शाया है। उनके नाम से
जारी प्रमाण पत्र असल में सूर्यपाल सिंह के नाम दर्ज है। वह 1996 से शिक्षा
विभाग में तैनात हैं।
रामशरण- निवासी टांडा अफजल, मुरादाबाद। आरोप है कि रामशरण ने अभिलेखों
में अपनी जन्मतिथि आठ अगस्त 1957 दर्शाई है। जबकि, असली अभिलेखों में उनकी
जन्मतिथि आठ दिसंबर 1954 है। इंटर कॉलेज सूरजनगर जयनगर, मुरादाबाद ने उनके
प्रमाण पत्र में कूटरचना की पुष्टि की है। रामशरण 2017 में रिटायर भी हो
चुके हैं।
सुशील कुमार- राजकीय प्राथमिक विद्यालय बागोवाली, बहादराबाद में तैनात
हैं। आरोप है कि सुशील ने हाईस्कूल गुरुकुल वृंदावन मथुरा से व्यक्तिगत
छात्र के रूप में पास करने का उल्लेख है। मामले में संस्थान ने लिखित में
कहा कि उनका विद्यालय आवासीय आश्रम पद्धति पर आधारित है। प्रमाण पत्र पूरी
तरह से फर्जी है।मगन सिंह- राजकीय प्राथमिक विद्यालय टांडा हसनगढ़
भगवानपुर। आरोप है कि मगन सिंह शिक्षामित्र के रूप में तैनात थे। 2015 में
वह सहायक अध्यापक पद पर नियुक्त हुए। आरोप है कि 1976 में हाईस्कूल और 1978
में इंटर परीक्षा पास की। करीब 13 साल तक उन्होंने प्राइवेट काम किया।
इसके बाद 1991 में कुमाऊं विवि से बीएससी की डिग्री पास करना दिखाया गया
है। विवि ने उनकी डिग्री को फर्जी बताया है।