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गड़बड़झाला: जांच में फर्जी दिव्यांग मिले 11 प्राथमिक शिक्षक, अलग-अलग जिलों में 2007 व 2008 में पाया बीटीसी प्रशिक्षण

 प्रदेश सरकार फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी हथियाने वालों पर हमलावर है। जांच में 11 प्राथमिक शिक्षक फर्जी दिव्यांग मिले हैं। उन्होंने न केवल दिव्यांग प्रमाणपत्र के सहारे बीटीसी का प्रशिक्षण लिया, बल्कि उसी आधार पर शिक्षक के रूप में चयनित होने में सफल रहे। इन सभी का बीटीसी प्रमाणपत्र शून्य (यानी रद) कर दिया गया है, अब उन्हें सेवा से भी बर्खास्त करने की तैयारी है। मेडिकल रिपोर्ट आने में साढ़े चार साल से अधिक समय लगा है।



प्रदेश के सात जिलों में चिन्हित यह शिक्षक पहले फर्जी दिव्यांग बनकर बीटीसी का दो वर्षीय प्रशिक्षण कोर्स पाने के लिए चयनित हुए, फिर उन्होंने वर्ष 2007 व 2008 में प्रशिक्षण सत्र में कोर्स पूरा करने के बाद शिक्षक भर्ती में दिव्यांग बनकर ही दावेदारी की। नियुक्ति पाने के बाद उनकी शिकायत हुइर्, लेकिन उस पर पर्दा पड़ा रहा। कुछ अभ्यर्थी इस फर्जीवाड़े के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे। शीर्ष कोर्ट ने उप्र राज्य बनाम र¨वद्र कुमार शर्मा व अन्य की विशेष अपील की सुनवाई करते हुए तीन फरवरी, 2016 को आदेश दिया कि इन अभ्यर्थियों की जांच मेडिकल बोर्ड गठित करके कराई जाए। शासन ने इसके अनुपालन में 13 मई, 2016 को मेडिकल बोर्ड गठित करने का आदेश दिया। यह काम अब साढ़े चार साल बाद पूरा हुआ और जिला चयन समिति ने 11 शिक्षकों के प्रशिक्षण प्रमाणपत्र को शून्य करने की संस्तुति की। परीक्षा नियामक प्राधिकारी सचिव अनिल भूषण चतुर्वेदी ने बताया कि सभी के बीटीसी प्रमाणपत्र शून्य कर दिए गए हैं। अब जल्द ही शिक्षकों पर बर्खास्तगी की कार्रवाई हो सकती है।

’>>अलग-अलग जिलों में 2007 व 2008 में पाया बीटीसी प्रशिक्षण

’>>मई 2016 में मेडिकल बोर्ड गठित रिपोर्ट मिलने पर प्रमाणपत्र शून्य

कई और लोगों पर भी की जाएगी कार्रवाई जल्द

विभिन्न जिलों से दिव्यांग बने करीब छह और प्रशिक्षण पाने वालों की रिपोर्ट आ गई है। जिला चयन समिति ने उनका प्रमाणपत्र भी शून्य करने की संस्तुति की गई है। सचिव का कहना है कि उनके प्रमाणपत्रों की जांच हो रही है, जल्द ही उन्हें भी शून्य करार दिया जाएगा।

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