प्रयागराज से जुड़ी एक अहम खबर में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शिक्षकों के अधिकारों को लेकर बड़ा और स्पष्ट फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि 33 वर्षों तक शिक्षक के रूप में सेवा पूरी करने और सेवानिवृत्त होने के बाद नियुक्ति अनुमोदन वापस लेना पूरी तरह मनमाना और अवैध है।
क्या है पूरा मामला?
कुशीनगर जिले में कार्यरत शिक्षक शंभू राव ने बतौर अध्यापक 33 वर्षों की सेवा पूरी की और नियमानुसार सेवानिवृत्त हुए। इसके बाद एक शिकायत के आधार पर जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA), कुशीनगर ने उनका नियुक्ति अनुमोदन वापस लेने का आदेश पारित कर दिया।
इस आदेश को शिक्षक शंभू राव ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी।
हाईकोर्ट का स्पष्ट रुख
इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ, जिसमें
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न्यायमूर्ति अजित कुमार
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न्यायमूर्ति स्वरूपमा चतुर्वेदी
शामिल थीं, ने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के आदेश को मनमाना और कानून के विरुद्ध करार दिया।
कोर्ट ने साफ कहा कि:
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दशकों तक सेवा लेने के बाद
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सेवानिवृत्ति के उपरांत
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नियुक्ति अनुमोदन रद्द करना
कानूनी रूप से स्वीकार्य नहीं है।
शिक्षक को सभी सेवाजनित लाभ देने का आदेश
हाईकोर्ट ने शिक्षक शंभू राव को:
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💰 समस्त सेवाजनित परिलाभ
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📈 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित
देने का स्पष्ट आदेश दिया है।
प्रबंध समिति की विशेष अपील खारिज
यह मामला डॉ. राजेंद्र प्रसाद इंटर कॉलेज की प्रबंध समिति द्वारा दाखिल विशेष अपील से जुड़ा था, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया।
याची शंभू राव की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के.के. राव ने अदालत में प्रभावी बहस प्रस्तुत की।
शिक्षकों के लिए क्यों अहम है यह फैसला?
यह निर्णय उन हजारों शिक्षकों के लिए नजीर (precedent) बनेगा जिनके मामलों में:
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वर्षों बाद नियुक्ति पर सवाल उठाए जाते हैं
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सेवानिवृत्ति के बाद सेवा लाभ रोके जाते हैं
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शिकायतों के आधार पर पुराने अनुमोदन रद्द किए जाते हैं
कोर्ट का यह फैसला साफ संदेश देता है कि प्रशासनिक लापरवाही का खामियाजा शिक्षक नहीं भुगत सकता।
निष्कर्ष
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला शिक्षकों के अधिकारों की मजबूत रक्षा करता है। 33 साल तक सेवा लेने के बाद नियुक्ति को अवैध बताना न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि कानून के भी खिलाफ है। यह निर्णय भविष्य में ऐसे मामलों पर रोक लगाने में अहम भूमिका निभाएगा।