इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत बीएड डिग्रीधारक सहायक अध्यापकों को बड़ी राहत देते हुए उनके खिलाफ किसी भी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई पर फिलहाल रोक लगा दी है। न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि याची शिक्षकों को अस्थायी रूप से ब्रिज कोर्स के लिए आवेदन करने की अनुमति दी जाए।
यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव सिंह की एकल पीठ ने पंकज शर्मा एवं 24 अन्य शिक्षकों द्वारा दायर याचिका पर पारित किया।
📜 किस शासनादेश को दी गई चुनौती?
यह मामला राज्य सरकार द्वारा जारी—
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📅 6 अक्टूबर 2025 के शासनादेश
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📅 13 दिसंबर 2025 के आदेश
से संबंधित है, जिनमें प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत बीएड डिग्रीधारक सहायक अध्यापकों को 6 माह के ब्रिज कोर्स में अनिवार्य रूप से नामांकन करने का निर्देश दिया गया था।
शासनादेश में यह भी स्पष्ट किया गया था कि
यदि कोई शिक्षक ब्रिज कोर्स के लिए आवेदन नहीं करता है, तो उसकी सेवा समाप्त की जा सकती है।
🧑🏫 शिक्षकों की दलील
याचियों की ओर से अदालत में दलील दी गई कि—
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उन्होंने पहले ही
राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) की अधिसूचना के अनुरूप
राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (NIOS) से
छह माह का ब्रिज कोर्स सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। -
यह प्रशिक्षण पहले से ही वैध योग्यता के रूप में मान्य है।
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ऐसे में दोबारा ब्रिज कोर्स करने के लिए बाध्य करना
मनमाना, अनुचित और कानून के विपरीत है।
🏛️ राज्य सरकार का पक्ष
राज्य सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि—
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उक्त शासनादेश
सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुपालन में जारी किया गया है। -
विभाग सभी शिक्षकों पर समान रूप से नियम लागू कर रहा है।
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ब्रिज कोर्स को सभी बीएड डिग्रीधारक सहायक अध्यापकों के लिए अनिवार्य किया गया है।
⚖️ हाई कोर्ट का अंतरिम आदेश
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद हाई कोर्ट ने—
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याची शिक्षकों को अंतरिम राहत प्रदान की
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राज्य सरकार को निर्देश दिया कि
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उन्हें अस्थायी रूप से ब्रिज कोर्स हेतु आवेदन करने दिया जाए
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जब तक अंतिम निर्णय न हो, तब तक
कोई दंडात्मक कार्रवाई न की जाए
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🔍 क्यों अहम है यह फैसला?
यह आदेश हजारों बीएड डिग्रीधारक प्राथमिक शिक्षकों के लिए राहतभरा माना जा रहा है, क्योंकि इससे—
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तत्काल सेवा समाप्ति का खतरा टल गया
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ब्रिज कोर्स को लेकर कानूनी स्थिति स्पष्ट होने का रास्ता खुला
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सरकार की नीति पर न्यायिक समीक्षा संभव हुई