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इलाहाबाद हाई कोर्ट का बड़ा फैसला: अंशकालिक अनुदेशकों का अनुभव प्रधानाध्यापक भर्ती में मान्य नहीं

 प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि सीनियर बेसिक स्कूलों में नियुक्त अंशकालिक अनुदेशकों का कार्यानुभव ‘प्रधानाध्यापक’ पद पर नियुक्ति के लिए आवश्यक पांच वर्ष के शिक्षण अनुभव में शामिल नहीं किया जा सकता

कोर्ट ने कहा कि शिक्षण अनुभव का अर्थ नियमित शिक्षण संवर्ग में प्राप्त अनुभव से है, न कि अंशकालिक या संविदा आधारित शिक्षण अनुभव से।

याचिका खारिज, सरकारी परिपत्र सही ठहराया

न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की एकलपीठ ने कुमारी डिंपल सिंह और 13 अन्य द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।
याचिका में तीन नवंबर 2025 के उस सरकारी परिपत्र को चुनौती दी गई थी, जिसमें प्रधानाध्यापक पद के लिए अनुभव प्रमाणपत्र के रूप में केवल:

  • सहायक अध्यापक

  • प्रधानाध्यापक

के पद पर कार्य अनुभव को ही मान्य किया गया था।

याचियों का क्या था तर्क?

याचियों का कहना था कि वे वर्ष 2013 से कला और कार्य शिक्षा जैसे विषयों में अंशकालिक अनुदेशक के रूप में कार्यरत हैं।
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि वे प्रधानाध्यापक भर्ती की लिखित परीक्षा उत्तीर्ण कर चुके हैं, इसलिए उनके अंशकालिक शिक्षण अनुभव को भी “शिक्षण अनुभव” में शामिल किया जाना चाहिए।

कोर्ट ने क्यों किया अंशकालिक अनुभव को अस्वीकार?

हाई कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि:

  • अंशकालिक अनुदेशकों की नियुक्ति संविदा के आधार पर होती है

  • उनकी नियुक्ति छात्र संख्या 100 से अधिक होने पर ही की जाती है

  • उनकी शैक्षिक योग्यता, नियुक्ति प्रक्रिया और कर्तव्य नियमित सहायक अध्यापकों से पूरी तरह अलग हैं

इसलिए अंशकालिक अनुदेशकों का अनुभव, नियमित शिक्षण संवर्ग का अनुभव नहीं माना जा सकता।

नियमों का हवाला देते हुए कोर्ट की टिप्पणी

कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त बेसिक स्कूल (जूनियर हाईस्कूल) (अध्यापकों की भर्ती और सेवा की शर्तें) नियमावली, 1978 के नियम 4(2) का हवाला देते हुए कहा कि:

“प्रधानाध्यापक पद के लिए पांच वर्ष का शिक्षण अनुभव अनिवार्य है, जिसका अर्थ पूर्णकालिक और नियमित सेवा से है, न कि किसी आकस्मिक या अंशकालिक क्षमता में किया गया कार्य।”

“खेल के बीच नियम बदले गए” वाला तर्क भी खारिज

याचियों ने यह भी तर्क दिया कि चयन प्रक्रिया के बीच में अनुभव का प्रारूप बदलकर ‘खेल के बीच नियम’ बदल दिए गए हैं।
इस पर कोर्ट ने कहा कि:

  • 19 फरवरी 2021 के मूल सरकारी आदेश में ही

  • सहायक अध्यापक के रूप में पांच वर्ष के अनुभव की अनिवार्यता स्पष्ट रूप से दर्ज थी

इसलिए नियमों में कोई बदलाव नहीं किया गया है।

प्रधानाध्यापक पद पर नियमित अनुभव क्यों जरूरी?

कोर्ट ने कहा कि प्रधानाध्यापक का पद केवल शिक्षण ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक और शैक्षिक नेतृत्व का पद है, जिसके लिए:

  • नियमित सेवा का अनुभव

  • विद्यालय प्रशासन का व्यावहारिक ज्ञान

  • शैक्षिक नेतृत्व की समझ

अत्यंत आवश्यक है।

क्या है इस फैसले का असर?

इस फैसले से स्पष्ट हो गया है कि:

  • अंशकालिक अनुदेशक प्रधानाध्यापक भर्ती में अनुभव का दावा नहीं कर सकते

  • केवल नियमित सहायक अध्यापक या प्रधानाध्यापक का अनुभव ही मान्य होगा

  • भविष्य की भर्तियों में भी यही नियम लागू रहेगा

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