प्रयागराज। उत्तर प्रदेश में सरकारी शिक्षकों को लेकर एक नया आदेश सामने आया है, जिसने शिक्षा जगत में बहस छेड़ दी है। अब सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों को आवारा कुत्तों की गिनती और उनकी निगरानी की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है।
इस आदेश के बाद शिक्षक संगठनों और अभ्यर्थियों में भारी नाराजगी देखी जा रही है।
क्या है पूरा मामला?
बेसिक शिक्षा विभाग के निर्देश के अनुसार:
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सरकारी स्कूल परिसर और उसके आसपास मौजूद आवारा कुत्तों की संख्या दर्ज की जाएगी
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कुत्तों की मौजूदगी से होने वाले संभावित खतरे की रिपोर्ट तैयार की जाएगी
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यह जिम्मेदारी स्कूल के शिक्षकों और स्टाफ को निभानी होगी
इस कदम का उद्देश्य स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा बताया जा रहा है, क्योंकि हाल के महीनों में आवारा कुत्तों के हमलों की घटनाएं बढ़ी हैं।
शिक्षकों पर अतिरिक्त बोझ का आरोप
शिक्षक संगठनों का कहना है कि:
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शिक्षकों का मुख्य कार्य शिक्षण है
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गैर-शैक्षणिक कार्य लगातार बढ़ाए जा रहे हैं
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इससे पढ़ाई की गुणवत्ता प्रभावित होती है
शिक्षकों का यह भी कहना है कि:
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कुत्तों की गिनती और निगरानी स्थानीय प्रशासन या नगर निकाय का काम है
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शिक्षकों को इस तरह के कार्यों में लगाना अनुचित और अपमानजनक है
पहले भी मिल चुके हैं गैर-शैक्षणिक कार्य
यह पहला मौका नहीं है जब शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक जिम्मेदारियां दी गई हों। इससे पहले भी:
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चुनाव ड्यूटी
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सर्वे कार्य
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जनगणना
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विभिन्न सरकारी अभियानों की जिम्मेदारी
शिक्षकों को सौंपी जा चुकी है।
बच्चों की सुरक्षा बनाम शिक्षा व्यवस्था
प्रशासन का तर्क है कि:
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बच्चों की सुरक्षा सर्वोपरि है
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स्कूल परिसर में आवारा कुत्तों की मौजूदगी गंभीर खतरा बन सकती है
वहीं दूसरी ओर शिक्षक संगठनों का कहना है कि:
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सुरक्षा के लिए अलग स्थायी व्यवस्था होनी चाहिए
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शिक्षकों को हर समस्या का समाधान मान लेना सही नहीं है
क्या वापस लिया जाएगा आदेश?
फिलहाल इस आदेश को लेकर:
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शिक्षक संगठनों में असंतोष
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सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं
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आदेश में संशोधन या वापसी की मांग
तेज हो गई है। अब देखना होगा कि सरकार और शिक्षा विभाग इस पर क्या रुख अपनाते हैं।
निष्कर्ष
उत्तर प्रदेश में सरकारी शिक्षकों को कुत्तों की गिनती जैसे कार्य सौंपना एक बार फिर यह सवाल खड़ा करता है कि क्या शिक्षक केवल हर विभाग की कमी पूरी करने का माध्यम बनकर रह गए हैं। बच्चों की सुरक्षा जरूरी है, लेकिन इसके लिए शिक्षा व्यवस्था को कमजोर करना भी समाधान नहीं माना जा सकता।