न्यूज चैनल पर "उ प्र की बेसिक शिक्षा का गिरता स्तर" पर चर्चा चली जिसमें
अनेक विद्वान लोगों ने भाग लिया और अपने अपने तर्क दिये। इस सम्बन्ध में
टीवी पर बैठे लोगों से मैं एक प्रश्न करना चाहता हूँ कि आपमें से किसका
बच्चा है जो केवल क्लास में ही पड़ता है और घर पर किताब उठाकर न देखता हो
और बिना अभिभावक अथवा ट्यूटर के मेधावी बन गया हो।
आज बेसिक शिक्षा बदहाल तब दिखाई पड़ती है जब इसकी तुलना कान्वेंट स्कूल से की जाती है जबकि कान्वेंट व परिषदीय विद्यालयों में पड़ने वाले बच्चे की प्रष्ठभूमि में कोई नहीं जाना चाहता है।
कान्वेंट स्कूल में बच्चे के प्रवेश से पूर्व बच्चे के माता पिता की योग्यता का test होता है। फिर बच्चे का टेस्ट होता है। प्रवेश के पश्चात अभिभावक मोटी मोटी रकम फीस व किताबों में खर्च करता है बच्चे को विद्यालय से आने जाने वाले वाहन पर भी मोटी रकम खर्च करता है। अभिभावकों के शिक्षित होने के कारण इतनी मोती रकम खर्च करने के उद्देश्य को वो शिक्षित अभिभावक भलीभांति जानते है और उनका पहला उद्देश्य मात्र अपने बच्चे की शिक्षा होती है।
शिक्षित व समृद्ध अभिभावक प्रतिदिन सुबह को अपने बच्चे को स्कूल की वैन आने से पूर्व समय से उठाकर पढाते है उसके पश्चात् नहलाकर uniform पहनाते है माँ बड़े प्यार से लंच बॉक्स तैयार करके उसके बैग में रखती है और घर से बाहर सड़क पर खड़े होकर वैन आने का इंतजार करते है जब बच्चा वैन में बैठ कर स्कूल चला जाता है उसके बाद माँ बाप की अपनी निजी जिंदगी के काम शुरू होते हैं।
बच्चे की छुट्टी के पश्चात् माँ बाप उसको रिसीव करने के लिए चिन्तित होते है और व्यापारी अपना व्यापार नौकरपेशा अपनी ड्यूटी से समय निकालकर बच्चे को रिसीव करता है।
बच्चा घर आने के बाद निर्धारित टाइम टेबिल के अनुसार टीवी देखता एवं खेलता है उसके पश्चात् माँ पिता स्वयं अथवा ट्यूटर बच्चे को लेकर बैठते है और स्कूल में कराये काम का 4 गुना काम होम वर्क के रूप में पूरा कराते है। यहाँ तक कि बच्चा सोने से पहले भी याद (learn) करता है।
छोटे छोटे बच्चों को स्कूल से प्रोजेक्ट के नाम पर ऐसे ऐसे काम मिलते जो छात्र तो कर ही नहीं सकता माता पिता को भी करने में पसीने छुट जाते हैं उसको तैयार करने में बाज़ार की खाक छाननी पड़ती है।
प्रति माह होनी वाली पेरेंट्स मीटिंग में चाहे व्यापार बंद करना पड़े अथवा नौकरपेशा को CL लेनी पड़े लेकिन मीटिंग में भाग लेकर अपने बच्चे से जुडी जानकारी लेते है।
कहने का अभिप्राय है कि उक्त अभिभावक वो है जो शिक्षित व समृद्ध हैं और अपने बच्चे को ही अपना भविष्य व पूँजी मानकर अपनी खुद की इच्छाओं से ज्यादा मेहनत अपने बच्चे पर करते हैं।
इसका दूसरा रूप सरकारी स्कूल में पड़ने वाले छात्र व उसके अभिभावक है। इन स्कूल में आने वाले 80% बच्चों के अभिभावकों को बच्चे के एड्मिसन से कोई मतलब ही नहीं है अध्यापक स्वयं गली अथवा गाँव में जाकर बच्चों को खोजकर उनका प्रवेश स्कूल में करता है जिसको प्रतिदिन अथवा समय से विद्यालय भेजने के प्रति उसके माता पिता को कोई मतलब नहीं होता है बल्कि जब बच्चे को कोई काम घर पर नहीं होता है तब बच्चा स्कूल की ओर रुख करता है इससे भी बड़ा एक और कारण कि ये ऐसे माता पिता है जिन्हें बच्चे की शिक्षा से पहले अपनी रोजी रोटी कमानी होती है आज कक्षा 5 से लेकर 8 तक का बच्चा 100 से लेकर150 रु रोज कमाता है इन गरीब बच्चों के माँ बाप आज इन बच्चों से पहले कमाई करवाना पसन्द करते है और समय बचे तो स्कुल भेजना होता है।
ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी स्कुल का छात्र जब सुबह उठता है तो पहले घर के पालतू पशुओं के चारे की व्यवस्था करता है उसके पश्चात खेती या मजदूरी का काम देखता है और जब कोई काम नहीं होता तो खाली समय में स्कूल आता है उस दिन स्कूल में जो पड़कर जाता है उसे घर पर देखने वाले न अभिभावक हैं न ट्यूटर है।अर्थात जहाँ CONVENT स्कूल के छात्र के हाथ में 24घंटे में से लगभग 10 घंटे किताब होती है बहीं सरकारी स्कूल के छात्र के हाथ में हसिया या खुरपी होती है। एक ओर वो अभिभावक है जिसे उसका बच्चा ही सब कुछ है एक ओर वो है जिसे अपने भूखे पेट को भरने के लिए रोजी रोटी ही सब कुछ है।
पत्रकारों का कहना है कि कक्षा 2 के बच्चे को नाम लिखना नहीं आता ।मैं कहता हूँ कि कक्षा 2 यानि कान्वेंट का नर्सरी ,क्या नर्सरी का बच्चा अपना नाम लिख सकता है मुफ्त भोजन के चक्कर में न समझ अभिभावक 3-3 साल के बच्चे की उम्र अधिक बताकर कक्षा 1 में प्रवेश दिला देते हैं यानि 3साल पहले। जबकि कान्वेंट में PLAY,NURSARY,JUNIOR KG,SENIOR KG उसके बाद कक्षा1 में बच्चा आता है।आज परिषदीय स्कूल का कक्षा 4 के छात्र की आयु CONVENT वाले कक्षा 1 के छात्र के बराबर है।
सरकारी नौकरी - Government of India Jobs Originally published for http://e-sarkarinaukriblog.blogspot.com/ Submit & verify Email for Latest Free Jobs Alerts Subscribe
आज बेसिक शिक्षा बदहाल तब दिखाई पड़ती है जब इसकी तुलना कान्वेंट स्कूल से की जाती है जबकि कान्वेंट व परिषदीय विद्यालयों में पड़ने वाले बच्चे की प्रष्ठभूमि में कोई नहीं जाना चाहता है।
कान्वेंट स्कूल में बच्चे के प्रवेश से पूर्व बच्चे के माता पिता की योग्यता का test होता है। फिर बच्चे का टेस्ट होता है। प्रवेश के पश्चात अभिभावक मोटी मोटी रकम फीस व किताबों में खर्च करता है बच्चे को विद्यालय से आने जाने वाले वाहन पर भी मोटी रकम खर्च करता है। अभिभावकों के शिक्षित होने के कारण इतनी मोती रकम खर्च करने के उद्देश्य को वो शिक्षित अभिभावक भलीभांति जानते है और उनका पहला उद्देश्य मात्र अपने बच्चे की शिक्षा होती है।
शिक्षित व समृद्ध अभिभावक प्रतिदिन सुबह को अपने बच्चे को स्कूल की वैन आने से पूर्व समय से उठाकर पढाते है उसके पश्चात् नहलाकर uniform पहनाते है माँ बड़े प्यार से लंच बॉक्स तैयार करके उसके बैग में रखती है और घर से बाहर सड़क पर खड़े होकर वैन आने का इंतजार करते है जब बच्चा वैन में बैठ कर स्कूल चला जाता है उसके बाद माँ बाप की अपनी निजी जिंदगी के काम शुरू होते हैं।
बच्चे की छुट्टी के पश्चात् माँ बाप उसको रिसीव करने के लिए चिन्तित होते है और व्यापारी अपना व्यापार नौकरपेशा अपनी ड्यूटी से समय निकालकर बच्चे को रिसीव करता है।
बच्चा घर आने के बाद निर्धारित टाइम टेबिल के अनुसार टीवी देखता एवं खेलता है उसके पश्चात् माँ पिता स्वयं अथवा ट्यूटर बच्चे को लेकर बैठते है और स्कूल में कराये काम का 4 गुना काम होम वर्क के रूप में पूरा कराते है। यहाँ तक कि बच्चा सोने से पहले भी याद (learn) करता है।
छोटे छोटे बच्चों को स्कूल से प्रोजेक्ट के नाम पर ऐसे ऐसे काम मिलते जो छात्र तो कर ही नहीं सकता माता पिता को भी करने में पसीने छुट जाते हैं उसको तैयार करने में बाज़ार की खाक छाननी पड़ती है।
प्रति माह होनी वाली पेरेंट्स मीटिंग में चाहे व्यापार बंद करना पड़े अथवा नौकरपेशा को CL लेनी पड़े लेकिन मीटिंग में भाग लेकर अपने बच्चे से जुडी जानकारी लेते है।
कहने का अभिप्राय है कि उक्त अभिभावक वो है जो शिक्षित व समृद्ध हैं और अपने बच्चे को ही अपना भविष्य व पूँजी मानकर अपनी खुद की इच्छाओं से ज्यादा मेहनत अपने बच्चे पर करते हैं।
इसका दूसरा रूप सरकारी स्कूल में पड़ने वाले छात्र व उसके अभिभावक है। इन स्कूल में आने वाले 80% बच्चों के अभिभावकों को बच्चे के एड्मिसन से कोई मतलब ही नहीं है अध्यापक स्वयं गली अथवा गाँव में जाकर बच्चों को खोजकर उनका प्रवेश स्कूल में करता है जिसको प्रतिदिन अथवा समय से विद्यालय भेजने के प्रति उसके माता पिता को कोई मतलब नहीं होता है बल्कि जब बच्चे को कोई काम घर पर नहीं होता है तब बच्चा स्कूल की ओर रुख करता है इससे भी बड़ा एक और कारण कि ये ऐसे माता पिता है जिन्हें बच्चे की शिक्षा से पहले अपनी रोजी रोटी कमानी होती है आज कक्षा 5 से लेकर 8 तक का बच्चा 100 से लेकर150 रु रोज कमाता है इन गरीब बच्चों के माँ बाप आज इन बच्चों से पहले कमाई करवाना पसन्द करते है और समय बचे तो स्कुल भेजना होता है।
ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी स्कुल का छात्र जब सुबह उठता है तो पहले घर के पालतू पशुओं के चारे की व्यवस्था करता है उसके पश्चात खेती या मजदूरी का काम देखता है और जब कोई काम नहीं होता तो खाली समय में स्कूल आता है उस दिन स्कूल में जो पड़कर जाता है उसे घर पर देखने वाले न अभिभावक हैं न ट्यूटर है।अर्थात जहाँ CONVENT स्कूल के छात्र के हाथ में 24घंटे में से लगभग 10 घंटे किताब होती है बहीं सरकारी स्कूल के छात्र के हाथ में हसिया या खुरपी होती है। एक ओर वो अभिभावक है जिसे उसका बच्चा ही सब कुछ है एक ओर वो है जिसे अपने भूखे पेट को भरने के लिए रोजी रोटी ही सब कुछ है।
पत्रकारों का कहना है कि कक्षा 2 के बच्चे को नाम लिखना नहीं आता ।मैं कहता हूँ कि कक्षा 2 यानि कान्वेंट का नर्सरी ,क्या नर्सरी का बच्चा अपना नाम लिख सकता है मुफ्त भोजन के चक्कर में न समझ अभिभावक 3-3 साल के बच्चे की उम्र अधिक बताकर कक्षा 1 में प्रवेश दिला देते हैं यानि 3साल पहले। जबकि कान्वेंट में PLAY,NURSARY,JUNIOR KG,SENIOR KG उसके बाद कक्षा1 में बच्चा आता है।आज परिषदीय स्कूल का कक्षा 4 के छात्र की आयु CONVENT वाले कक्षा 1 के छात्र के बराबर है।
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