आखिर ऐसी कौन सी आवश्यकता है कि हम अपना वकील खड़ा करने के लिए बाध्य हो रहे हैं-
1) कोर्ट के पिछले आर्डर के अनुसार 7 दिसम्बर को सुनवाई होनी है,यदि सुनवाई पूरी नहीं हो सकी तो 8 दिसम्बर को भी होगी।
2)इसका मतलब यह है कि ये फाइनल सुनवाई है।
3)इसलिए आवश्यक है कि पैरवी में कोई कसर न छोड़ी जाये।
आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी है कि हम अपना वकील खड़ा करें-
1)एस0के0 पाठक व गणेश दीक्षित दोनों पिछली सुनवाई से पूर्व अलग हुए, सुनवाई के समय एक हो गए।
2)एल0 नागेश्वर राव के नाम पर 6 लाख एकत्र किये जाने हेतु प्रयास शुरू हुए। पैसे इकट्ठे हुए। एल0 नागेश्वर राव केवल 5 मिनट के लिए कोर्ट में आये जिससे कि कोर्ट के आदेश में उनका नाम वकीलों की लिस्ट में शामिल हो जाये।
3)रोना रोया गया कि पैसे नहीं आ पाये। जबकि पहले के 12 लाख रुपये उनके पास बचे रखे थे।
4)उससे पूर्व कपिल सिब्बल के नाम पर पाठक व सुजीत ग्रुप ने धन एकत्र किया। सिब्बल नहीं खड़े हुए।
जरा विचार करें-
1)क्या ऐसे नेताओं पर ऑंखें मूंदकर भरोसा किया जा सकता है?
2)क्या इनके सहारे रहा जा सकता है?
3)हमारी लड़ाई आन्तिम पडाव पर है। ऐसे समय में क्या हमें उदासीन रहना चाहिए।
4)यदि सब यही सोच लें कि जिसे पैसे लगाना होगा लगाएगा ही तो कौन आएगा लगाने?
5)क्या हम अपने कैरियर के लिए इतना भी नहीं कर सकते हैं?
ताज़ा खबरें - प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
1) कोर्ट के पिछले आर्डर के अनुसार 7 दिसम्बर को सुनवाई होनी है,यदि सुनवाई पूरी नहीं हो सकी तो 8 दिसम्बर को भी होगी।
2)इसका मतलब यह है कि ये फाइनल सुनवाई है।
3)इसलिए आवश्यक है कि पैरवी में कोई कसर न छोड़ी जाये।
आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी है कि हम अपना वकील खड़ा करें-
1)एस0के0 पाठक व गणेश दीक्षित दोनों पिछली सुनवाई से पूर्व अलग हुए, सुनवाई के समय एक हो गए।
2)एल0 नागेश्वर राव के नाम पर 6 लाख एकत्र किये जाने हेतु प्रयास शुरू हुए। पैसे इकट्ठे हुए। एल0 नागेश्वर राव केवल 5 मिनट के लिए कोर्ट में आये जिससे कि कोर्ट के आदेश में उनका नाम वकीलों की लिस्ट में शामिल हो जाये।
3)रोना रोया गया कि पैसे नहीं आ पाये। जबकि पहले के 12 लाख रुपये उनके पास बचे रखे थे।
4)उससे पूर्व कपिल सिब्बल के नाम पर पाठक व सुजीत ग्रुप ने धन एकत्र किया। सिब्बल नहीं खड़े हुए।
जरा विचार करें-
1)क्या ऐसे नेताओं पर ऑंखें मूंदकर भरोसा किया जा सकता है?
2)क्या इनके सहारे रहा जा सकता है?
3)हमारी लड़ाई आन्तिम पडाव पर है। ऐसे समय में क्या हमें उदासीन रहना चाहिए।
4)यदि सब यही सोच लें कि जिसे पैसे लगाना होगा लगाएगा ही तो कौन आएगा लगाने?
5)क्या हम अपने कैरियर के लिए इतना भी नहीं कर सकते हैं?
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