नदी किनारे एक गाँव में एक शिक्षा मित्र हुआ करता था। नाम था, राम दुलारे।
शिक्षा मित्र पद पर 3,500 रूपये के मानदेय पर राम दुलारे प्राथमिक विद्यालय
में कक्षा 1 व 2 के बच्चों को प्रतिदिन सुबह 8 से दोपहर 1 बजे तक शांत रखा
करता था, तथा 1 बजे के बाद अपनी प्यारी बकरियां चराने निकल जाया करता था।
इसी प्रकार उसका जीवन चल रहा था। एक रोज, सपा सरकार ने ऐलान किया कि समस्त शिक्षा मित्रों को बिना टीईटी (अध्यापक पात्रता परीक्षा) पास किये ही समायोजित कर के सहायक अध्यापक बना दिया जाएगा। 3,500 रूपये प्रतिमाह कमा कर पूरे परिवार के ताने सुनने वाला राम दुलारे, आनन फानन में पूरे परिवार व गाँव का दुलारा हो गया। 3,500 का मानदेय, 30,000 के वेतनमान में परिवर्तित हो गया। स्वयं जिले के बेसिक शिक्षा अधिकारी महोदय राम दुलारे के घर नियुक्ति पत्र देने आए। राम दुलारे
की ख़ुशी का ठिकाना न था। अपने नियुक्ति पत्र को सीने से लगाए वो दीवानों की भाँति समस्त गाँव वालों को अपना नियुक्ति पत्र दिखा दिखा कर इतरा रहा था।
समस्त ग्राम वासियों को नियुक्ति पत्र दिखाने की जल्दबाजी में राम दुलारे थक गया तथा अपनी थकान मिटाने को नदी किनारे एक पेड़ की छाँव में बैठ गया। थकानवश कब राम दुलारे की आँख लग गई, यह उसको स्वयं पता न चला। जब आँख खुली तो देखा, राम दुलारे का नियुक्ति पत्र हवा से उड़कर नदी में पहुंच गया और डूब रहा है, जब तक राम दुलारे कुछ समझ पाता, उसका नियुक्ति पत्र पानी में डूब चुका था। अपने प्राणप्रिय नियुक्ति पत्र को यूँ पानी में डूबते देख राम दुलारे अपना सीना पीटते हुए चित्कारें मार कर रोने लगा।
राम दुलारे का रोना सुन कर एक दिव्य पुरुष नदी से निकले जो वास्तव में जल देवता थे। उन्होंने राम दुलारे की ओर देखा और अपना परिचय देते हुए उससे पूछा, पुत्र, किस कारण से रो रहे हो? राम दुलारे ने आशा भरी नजरों से उनकी ओर देखते हुए पूरी कहानी बताई तथा कहा, "प्रभु, हमें आजई नियुक्ति पत्र मिरो थो और सारो आजई नदिया मैं डूब गओ। हमारो नियुक्ति पत्र हमें लौटाए दो।" जल देवता को राम दुलारे की पीड़ा देख कर उस पर दया आ गई तथा उसको रुकने का कह कर जल देवता ने वापस नदी में एक डुबकी लगाई। कुछ समय पश्चात जल देवता वापस आए तथा उनके हाथ में एक कागज का टुकड़ा था, जल देवता ने वह कागज का टुकड़ा राम दुलारे को दिखाते हुए पूछा कि क्या यह तुम्हारा नियुक्ति पत्र है? राम दुलारे ने कागज के टुकड़े को देखा तथा कहा, नहीं प्रभु यह मेरा नियुक्ति
पत्र नहीं है। जल देवता प्रसन्न हुए तथा एक बार फिर नदी में डुबकी लगा कर कुछ क्षण में एक और कागज के टुकड़े के साथ बाहर आए, इस कागज को शिक्षा मित्र राम दुलारे को दिखाते हुए उन्होंने फिर पूछा, क्या यह तुम्हारा नियुक्ति पत्र है? राम दुलारे ने एक नजर कागज पर डाली तथा इस बार भी मना करते हुए कहा कि नहीं प्रभु, यह भी मेरा नियुक्ति पत्र नहीं है। जल देवता राम दुलारे की ईमानदारी से अत्यधिक प्रभावित हुए तथा तीसरी बार फिर नदी में डुबकी लगा कर वापस आए तथा एक और नए कागज के टुकड़े को साथ लाए। इस बार राम दुलारे उसको देखते ही पहचान गया और ख़ुशी से चिल्लाकर बोला कि प्रभु, यह ही है मेरा नियुक्ति पत्र।
जल देवता ने प्रसन्न होकर राम दुलारे को उसका नियुक्ति पत्र सौंप दिया। जल देवता ने कहा, राम दुलारे, मैं तुम्हारी ईमानदारी से अत्यधिक प्रसन्न हूँ तथा तुम्हें उपहार स्वरूप 2 अन्य पत्र सौंपना चाहता हूँ। ऐसा कहते हुए जल देवता ने पूर्व में लाए दोनों कागज के टुकड़ों को राम दुलारे को सौंप दिया। बचपन में लकड़हारे और जल देवता की कहानी को याद करते हुए राम दुलारे मन ही मन क्रोधित हो उठा और जल देवता से बोला, प्रभु बचपन की कहानी में मैंने सुना था कि ऐसी ही स्थिति में लकड़हारे को आपने सोने और
चांदी की कुल्हाड़ी दी थी और आप मुझे यह दो कागज के टुकड़े सौंप रहे हैं? इनका मैं क्या करूँगा? मुझे लगा था कि आप मुझे भी सोने चांदी के उपहार देंगे परन्तु आप यह कागज के टुकड़े लेकर आए हैं, मेरे लिए यह व्यर्थ हैं, और ऐसा कहते हुए नियुक्ति पत्र के नशे में चूर राम दुलारे ने वो दोनों कागज के टुकड़े फाड़ कर जमीन पर फैंक दिए और पैरों से मसल दिए।
जल देवता राम दुलारे के इस कृत्य से अत्यधिक क्रोधित हुए और बोले नादान शिक्षा मित्र, जिन कागजों को तूने व्यर्थ बताते हुए जमीन पर फेंक दिया यह ही कागज तेरे पतन का कारण बनेंगे। यह दोनों कागज वास्तव में #संस्थागत_बीटीसी_का_अंकपत्र तथा #अध्यापक_पात्रता_परीक्षा_का_अंकपत्र था। मैं तेरा भविष्य अपनी दिव्य दृष्टि से देख चुका हूँ जिस कारण मैंने तेरी मदद करनी चाँही लेकिन तूने इन अंकपत्रों का इस प्रकार अपमान किया। जा, आज जिस नियुक्ति पत्र के अभिमान में तूने इन अंकपत्रों का अपमान किया है, तेरा वह नियुक्ति पत्र भारत की सर्वोच्च न्यायालय में तुझसे छीन लिया जाएगा तथा आज जिन दो कागजों को तूने फाड़ के फेंक दिया, उन ही कागजों को याद कर कर के तू अपना सर पटकेगा लेकिन फिर तुझे यह कभी नहीं मिलेंगे। ऐसा कह कर जल देवता अंतर्धान हो गए।
इसी बीच इलाहाबाद हाई कोर्ट में बीटीसी/बीएड वालों ने समायोजन अवैध घोषित कराने हेतु याचिका फ़ाइल की जिसका 12 सितम्बर 2015 को निस्तारण करते हुए माननीय उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने शिक्षा मित्र समायोजन को पूर्णतः अवैध घोषित करते हुए रद्द कर दिया। उसके बाद यह मुकदमा सुप्रीम कोर्ट गया तथा इसकी अगली सुनवाई 11 जुलाई 2016 को लगी है।
मॉरल ऑफ़ दा स्टोरी ..
व्यक्ति को कभी भी घमण्ड नहीं करना चाहिए और अयोग्य व्यक्ति को बिल्कुल भी घमण्ड नहीं करना चाहिए क्योंकि जो आपने पाया है वो आपकी योग्यता के बल पर आपको नहीं मिला है, अपितु खैरात में व चाटुकारिता के बल पर मिला है। योग्यता को कभी भी कम कर के नहीं आंकना चाहिए, क्योंकि जब सभी आपसे मुंह मोड़ लेते हैं तब केवल आपकी विधा/योग्यता ही आपके काम आती है। 'बीटीसी + टीईटी' का आदर करें व कभी उसको कम कर के ना आकें।
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की ख़ुशी का ठिकाना न था। अपने नियुक्ति पत्र को सीने से लगाए वो दीवानों की भाँति समस्त गाँव वालों को अपना नियुक्ति पत्र दिखा दिखा कर इतरा रहा था।
समस्त ग्राम वासियों को नियुक्ति पत्र दिखाने की जल्दबाजी में राम दुलारे थक गया तथा अपनी थकान मिटाने को नदी किनारे एक पेड़ की छाँव में बैठ गया। थकानवश कब राम दुलारे की आँख लग गई, यह उसको स्वयं पता न चला। जब आँख खुली तो देखा, राम दुलारे का नियुक्ति पत्र हवा से उड़कर नदी में पहुंच गया और डूब रहा है, जब तक राम दुलारे कुछ समझ पाता, उसका नियुक्ति पत्र पानी में डूब चुका था। अपने प्राणप्रिय नियुक्ति पत्र को यूँ पानी में डूबते देख राम दुलारे अपना सीना पीटते हुए चित्कारें मार कर रोने लगा।
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जल देवता ने प्रसन्न होकर राम दुलारे को उसका नियुक्ति पत्र सौंप दिया। जल देवता ने कहा, राम दुलारे, मैं तुम्हारी ईमानदारी से अत्यधिक प्रसन्न हूँ तथा तुम्हें उपहार स्वरूप 2 अन्य पत्र सौंपना चाहता हूँ। ऐसा कहते हुए जल देवता ने पूर्व में लाए दोनों कागज के टुकड़ों को राम दुलारे को सौंप दिया। बचपन में लकड़हारे और जल देवता की कहानी को याद करते हुए राम दुलारे मन ही मन क्रोधित हो उठा और जल देवता से बोला, प्रभु बचपन की कहानी में मैंने सुना था कि ऐसी ही स्थिति में लकड़हारे को आपने सोने और
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जल देवता राम दुलारे के इस कृत्य से अत्यधिक क्रोधित हुए और बोले नादान शिक्षा मित्र, जिन कागजों को तूने व्यर्थ बताते हुए जमीन पर फेंक दिया यह ही कागज तेरे पतन का कारण बनेंगे। यह दोनों कागज वास्तव में #संस्थागत_बीटीसी_का_अंकपत्र तथा #अध्यापक_पात्रता_परीक्षा_का_अंकपत्र था। मैं तेरा भविष्य अपनी दिव्य दृष्टि से देख चुका हूँ जिस कारण मैंने तेरी मदद करनी चाँही लेकिन तूने इन अंकपत्रों का इस प्रकार अपमान किया। जा, आज जिस नियुक्ति पत्र के अभिमान में तूने इन अंकपत्रों का अपमान किया है, तेरा वह नियुक्ति पत्र भारत की सर्वोच्च न्यायालय में तुझसे छीन लिया जाएगा तथा आज जिन दो कागजों को तूने फाड़ के फेंक दिया, उन ही कागजों को याद कर कर के तू अपना सर पटकेगा लेकिन फिर तुझे यह कभी नहीं मिलेंगे। ऐसा कह कर जल देवता अंतर्धान हो गए।
इसी बीच इलाहाबाद हाई कोर्ट में बीटीसी/बीएड वालों ने समायोजन अवैध घोषित कराने हेतु याचिका फ़ाइल की जिसका 12 सितम्बर 2015 को निस्तारण करते हुए माननीय उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने शिक्षा मित्र समायोजन को पूर्णतः अवैध घोषित करते हुए रद्द कर दिया। उसके बाद यह मुकदमा सुप्रीम कोर्ट गया तथा इसकी अगली सुनवाई 11 जुलाई 2016 को लगी है।
मॉरल ऑफ़ दा स्टोरी ..
व्यक्ति को कभी भी घमण्ड नहीं करना चाहिए और अयोग्य व्यक्ति को बिल्कुल भी घमण्ड नहीं करना चाहिए क्योंकि जो आपने पाया है वो आपकी योग्यता के बल पर आपको नहीं मिला है, अपितु खैरात में व चाटुकारिता के बल पर मिला है। योग्यता को कभी भी कम कर के नहीं आंकना चाहिए, क्योंकि जब सभी आपसे मुंह मोड़ लेते हैं तब केवल आपकी विधा/योग्यता ही आपके काम आती है। 'बीटीसी + टीईटी' का आदर करें व कभी उसको कम कर के ना आकें।
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