शिक्षामित्रों को बीएड/बीटीसी बेरोज़गारों की तरह पात्रता सिद्ध करने की ज़रूरत नहीं है। ये एक ऐसा सत्य है जिसे बीएड/बीटीसी बेरोज़गारों के स्वयंभू और तथाकथित आरटीई एक्टिविस्ट नेता स्वीकारना नहीं चाहते। बल्कि ये कहना ज़्यादा ठीक होगा कि चंदे के धंधे के कारण मानना नहीं चाहते हैं।
एक सामान्य समझ रखने वाला व्यक्ति भी ये स्वीकार करेगा कि कोई भी पात्रता परीक्षा नौकरी पाने के इच्छुक व्यक्ति को देना होती है न कि 15 साल से कार्यरत शिक्षक को। मीडिया में लगातार टेट से छूट मिलने या न मिल पाने के समाचार देखने सुनने को मिलते हैं। जबकि ये सभी स्वीकार करते हैं कि शिक्षामित्र पूर्व नियुक्त शिक्षक हैं।
आईये बीएड/बीटीसी बेरोज़गारों का ज्ञानवर्धन करते हैं:
माननीय सुप्रीम कोर्ट कार्यालय कमिश्नर और एमएचआरडी एनसीटीई प्रतिनिधियों ने अब से ठीक तीन साल पहले तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश को शिक्षामित्रों को सेवारत शिक्षक बताते हुए अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट को एमएचआरडी भारत सरकार ने अपने हलफनामे के साथ साथ अनुच्छेद 21क को लागू करने के लिए की गई कार्यवाही का विवरण भी माननीय सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत किया।
ये सब साक्ष्य "मिशन सुप्रीम कोर्ट" के वर्किंग ग्रुप मेंबर्स रबी बहार, केसी सोनकर और साथियों ने अपने अधिवक्ता डॉ कोलिन गोन्साल्विस को उपलब्ध करवाये हैं। हमें उम्मीद है कि ये नेता ये मानने से इनकार कर देंगे। चलिए एक और खुलासा करते हैं।
बीएड बीटीसी बेरोज़गारों ने हाई कोर्ट इलाहबाद के मुख्य न्यायाधीश के 12 सितम्बर के फैसले को इतने आक्रामक रूप में प्रचारित प्रसारित किया कि शिक्षामित्र इसी फैसले को सब कुछ मान बैठे जबकि इस फैसले कुछ माह पहले इन्ही बिन्दुओ जैसे नियुक्ति नियम विरुद्ध है, आरक्षण का पालन आदि इत्यादि पर हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट का फैसला शिक्षामित्रों के पक्ष में आ चुका है। लेकिन इसके विषय में कोई ज़ुबान नहीं खोलता, न शिक्षमित्र नेताओं को पता न बेरोज़गारों को।
शिमला हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने अपने फैसले में कहा कि एक सप्ताह में जो भी लोग हैं उन्हें नियमित किया जाये। वहां भी बेरोजगार इस बात पर सर पटक रहे हैं। हमारी पूरी सहानुभूति बीएड/बीटीसी बेरोज़गारों के साथ है। लेकिन ये कहाँ का न्याय और नैतिकता है कि कार्यरत शिक्षक को हटाओ और इन बेरोज़गारों को लगाओ। मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह कोर्ट में शिक्षामित्रों को 23 अगस्त 2010 की अधिसूचना से पूर्व नियुक्त शिक्षक सिद्ध करने में सक्षम है और इसलिये शिक्षामित्रों को किसी पात्रता परीक्षा(टेट) देने की ज़रूरत नहीं है। न ही किसी टेट से छूट के पत्र की। भ्रामक खबरों पर ध्यान न दें।
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एक सामान्य समझ रखने वाला व्यक्ति भी ये स्वीकार करेगा कि कोई भी पात्रता परीक्षा नौकरी पाने के इच्छुक व्यक्ति को देना होती है न कि 15 साल से कार्यरत शिक्षक को। मीडिया में लगातार टेट से छूट मिलने या न मिल पाने के समाचार देखने सुनने को मिलते हैं। जबकि ये सभी स्वीकार करते हैं कि शिक्षामित्र पूर्व नियुक्त शिक्षक हैं।
आईये बीएड/बीटीसी बेरोज़गारों का ज्ञानवर्धन करते हैं:
माननीय सुप्रीम कोर्ट कार्यालय कमिश्नर और एमएचआरडी एनसीटीई प्रतिनिधियों ने अब से ठीक तीन साल पहले तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश को शिक्षामित्रों को सेवारत शिक्षक बताते हुए अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट को एमएचआरडी भारत सरकार ने अपने हलफनामे के साथ साथ अनुच्छेद 21क को लागू करने के लिए की गई कार्यवाही का विवरण भी माननीय सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत किया।
ये सब साक्ष्य "मिशन सुप्रीम कोर्ट" के वर्किंग ग्रुप मेंबर्स रबी बहार, केसी सोनकर और साथियों ने अपने अधिवक्ता डॉ कोलिन गोन्साल्विस को उपलब्ध करवाये हैं। हमें उम्मीद है कि ये नेता ये मानने से इनकार कर देंगे। चलिए एक और खुलासा करते हैं।
बीएड बीटीसी बेरोज़गारों ने हाई कोर्ट इलाहबाद के मुख्य न्यायाधीश के 12 सितम्बर के फैसले को इतने आक्रामक रूप में प्रचारित प्रसारित किया कि शिक्षामित्र इसी फैसले को सब कुछ मान बैठे जबकि इस फैसले कुछ माह पहले इन्ही बिन्दुओ जैसे नियुक्ति नियम विरुद्ध है, आरक्षण का पालन आदि इत्यादि पर हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट का फैसला शिक्षामित्रों के पक्ष में आ चुका है। लेकिन इसके विषय में कोई ज़ुबान नहीं खोलता, न शिक्षमित्र नेताओं को पता न बेरोज़गारों को।
शिमला हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने अपने फैसले में कहा कि एक सप्ताह में जो भी लोग हैं उन्हें नियमित किया जाये। वहां भी बेरोजगार इस बात पर सर पटक रहे हैं। हमारी पूरी सहानुभूति बीएड/बीटीसी बेरोज़गारों के साथ है। लेकिन ये कहाँ का न्याय और नैतिकता है कि कार्यरत शिक्षक को हटाओ और इन बेरोज़गारों को लगाओ। मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह कोर्ट में शिक्षामित्रों को 23 अगस्त 2010 की अधिसूचना से पूर्व नियुक्त शिक्षक सिद्ध करने में सक्षम है और इसलिये शिक्षामित्रों को किसी पात्रता परीक्षा(टेट) देने की ज़रूरत नहीं है। न ही किसी टेट से छूट के पत्र की। भ्रामक खबरों पर ध्यान न दें।
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