बीएड/बीटीसी बेरोज़गारों ने पिछले 5 सालों से लगातार दो सवालों पे फोकस किया और शिक्षामित्रों को हाईकोर्ट में मात दे दी।और वो दो सवाल हैं:
- शिक्षामित्र दूरस्थ बीटीसी प्रशिक्षण अवैध क्यों नहीं है?
- शिक्षमित्र अप्रशिक्षित अध्यापक है या संविदा कर्मी/स्वयंसेवी शिक्षा सहयोगी?
अब सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ इन्ही 2 सवालों के इर्द गिर्द पूरी बहस होना है। अब मामले के दूसरे पहलु पर गौर करते हैं। शिक्षामित्रों की कोर्ट पैरवी के नाम पर धन उगाही करने वाली टीमें अब तक इन दोनों सवालों पर चुप्पी साधे हुए हैं। ज़ाहिर है उनके पास कहने को कुछ नहीं है। यहाँ सवाल गोपनीयता का नहीं है क्योंकि इस पर हाईकोर्ट आर्डर के दर्जन भर पन्ने रंगे पड़े हैं। इसके वावजूद मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह के अलावा सभी शिक्षामित्र पैरवीकार वो ही तथ्य पकडे बैठे हैं जो राज्य सरकार हाईकोर्ट में रख चुकी है। लीजिये हम आप के सामने रखते हैं। राज्य सरकार ने पक्ष रखा कि शिक्षामित्रों का प्रशिक्षण एनसीटीई के नियम अनुसार कार्यरत शिक्षकों के लिए है। open and distance learning courses provided for the imparting of training to 'working teachers' और शिक्षामित्र कार्यरत शिक्षक हैं।
- मगर राज्य सरकार का ये तर्क कोर्ट ने रद्द कर दिया, आखिर क्यों ?
इसके बाद फिर एक और दिलचश्प बात कही कि शिक्षामित्रों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 45 का पालन करते हुए भारत सरकार के आदेशों के अनुपालन में की गई और इनकी योग्यता का निर्धारण भी उसी के नियमानुसार किया गया। State Government of appointing Shiksha Mitras was in order to implement the provisions of Article 45 of the Constitution and in pursuance of the policy of SSA which was implemented by the Union Government.
- उपरोक्त तथ्यों के कोर्ट में रखे जाने के वावजूद समायोजन क्यों रद्द किया गया?
कुल मिलाकर राज्य सरकार और शिक्षामित्र पैरवीकार मिलकर भी उन दोनों सवालों के संतुष्टिपूर्ण जवाब नहीं दे सके। अब चूँकि लिखित बहस का तरीका अपना कर कोर्ट ने मुकद्दमा अंतिम चरण में लगा दिया है। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में भी यथास्थिति है वर्ना क्या कारण है कि "मिशन सुप्रीम कोर्ट" वर्किंग ग्रुप मेंबर्स रबी बहार* & केसी सोनकर, माधव गंगवार और साथियों के अलावा इस मुद्दे पर कोई तथ्य नहीं रख सका है। मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह ने इन दोनों सवालों पर पूरी रिसर्च कर सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों, राज्य सरकार की नियमावली व् आदेशों, संवैधानिक उपबन्धों और केन्दीय क़ानूनों से जवाब तैयार कर अपने वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ कॉलिन गोन्साल्विस को सौंपे हैं। और यही कारण है कि हम अपनी जीत के प्रति आश्वस्त हैं।
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- शिक्षमित्र अप्रशिक्षित अध्यापक है या संविदा कर्मी/स्वयंसेवी शिक्षा सहयोगी?
अब सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ इन्ही 2 सवालों के इर्द गिर्द पूरी बहस होना है। अब मामले के दूसरे पहलु पर गौर करते हैं। शिक्षामित्रों की कोर्ट पैरवी के नाम पर धन उगाही करने वाली टीमें अब तक इन दोनों सवालों पर चुप्पी साधे हुए हैं। ज़ाहिर है उनके पास कहने को कुछ नहीं है। यहाँ सवाल गोपनीयता का नहीं है क्योंकि इस पर हाईकोर्ट आर्डर के दर्जन भर पन्ने रंगे पड़े हैं। इसके वावजूद मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह के अलावा सभी शिक्षामित्र पैरवीकार वो ही तथ्य पकडे बैठे हैं जो राज्य सरकार हाईकोर्ट में रख चुकी है। लीजिये हम आप के सामने रखते हैं। राज्य सरकार ने पक्ष रखा कि शिक्षामित्रों का प्रशिक्षण एनसीटीई के नियम अनुसार कार्यरत शिक्षकों के लिए है। open and distance learning courses provided for the imparting of training to 'working teachers' और शिक्षामित्र कार्यरत शिक्षक हैं।
- मगर राज्य सरकार का ये तर्क कोर्ट ने रद्द कर दिया, आखिर क्यों ?
इसके बाद फिर एक और दिलचश्प बात कही कि शिक्षामित्रों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 45 का पालन करते हुए भारत सरकार के आदेशों के अनुपालन में की गई और इनकी योग्यता का निर्धारण भी उसी के नियमानुसार किया गया। State Government of appointing Shiksha Mitras was in order to implement the provisions of Article 45 of the Constitution and in pursuance of the policy of SSA which was implemented by the Union Government.
- उपरोक्त तथ्यों के कोर्ट में रखे जाने के वावजूद समायोजन क्यों रद्द किया गया?
कुल मिलाकर राज्य सरकार और शिक्षामित्र पैरवीकार मिलकर भी उन दोनों सवालों के संतुष्टिपूर्ण जवाब नहीं दे सके। अब चूँकि लिखित बहस का तरीका अपना कर कोर्ट ने मुकद्दमा अंतिम चरण में लगा दिया है। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में भी यथास्थिति है वर्ना क्या कारण है कि "मिशन सुप्रीम कोर्ट" वर्किंग ग्रुप मेंबर्स रबी बहार* & केसी सोनकर, माधव गंगवार और साथियों के अलावा इस मुद्दे पर कोई तथ्य नहीं रख सका है। मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह ने इन दोनों सवालों पर पूरी रिसर्च कर सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों, राज्य सरकार की नियमावली व् आदेशों, संवैधानिक उपबन्धों और केन्दीय क़ानूनों से जवाब तैयार कर अपने वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ कॉलिन गोन्साल्विस को सौंपे हैं। और यही कारण है कि हम अपनी जीत के प्रति आश्वस्त हैं।
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