लखनऊ (ब्यूरो)। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड की मनमानी को
शासन ने गंभीरता से लिया है। वर्ष 2000 से 2006 के बीच नियमित किए गए विषय
विशेषज्ञों को प्रशासनिक लाभ दिए जाने संबंधी बोर्ड सचिव के आदेश को रद्द
करने के बाद प्रमुख सचिव माध्यमिक शिक्षा जितेंद्र कुमार ने उनसे 15 दिन
में स्पष्टीकरण मांगा है। प्रमुख सचिव ने साफ किया है कि नीतिगत निर्णय लेने का अधिकार सिर्फ शासन के पास है।
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राज्य सरकार ने इंटर कॉलेजों में रखे गए विषय विशेषज्ञों को नीति बनाते
हुए स्थायी कर दिया था। विषय विशेषज्ञ स्थायी किए जाने से पहले का भी लाभ
चाहते हैं।
इसको लेकर माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड के सचिव ने 26 मई को पहली नियुक्ति की तिथि से प्रशासनिक लाभ देने संबंधी आदेश जारी कर दिया था।
प्रमुख सचिव माध्यमिक शिक्षा ने जानकारी मिलने के बाद इस आदेश को रद्द कर दिया था। प्रमुख सचिव ने इस संबंध में स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा है कि सहायता प्राप्त इंटर कॉलेजों में विषय विशेषज्ञों की संविदा पर की गई सेवाओं की गणना किसी भी दशा में सेवानिवृत्ति से जुड़े लाभों के लिए नहीं की जाएगी। शासनादेशों में निर्धारित व्यवस्था को स्पष्ट किए जाने का अधिकार मात्र शासन को है।
माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड ने जो आदेश दिया, वह औचित्यपूर्ण नहीं है। यह कर्तव्यों के प्रति घोर लापरवाही है, इसलिए इस संबंध में स्थिति स्पष्ट की जाए।
इसको लेकर माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड के सचिव ने 26 मई को पहली नियुक्ति की तिथि से प्रशासनिक लाभ देने संबंधी आदेश जारी कर दिया था।
प्रमुख सचिव माध्यमिक शिक्षा ने जानकारी मिलने के बाद इस आदेश को रद्द कर दिया था। प्रमुख सचिव ने इस संबंध में स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा है कि सहायता प्राप्त इंटर कॉलेजों में विषय विशेषज्ञों की संविदा पर की गई सेवाओं की गणना किसी भी दशा में सेवानिवृत्ति से जुड़े लाभों के लिए नहीं की जाएगी। शासनादेशों में निर्धारित व्यवस्था को स्पष्ट किए जाने का अधिकार मात्र शासन को है।
माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड ने जो आदेश दिया, वह औचित्यपूर्ण नहीं है। यह कर्तव्यों के प्रति घोर लापरवाही है, इसलिए इस संबंध में स्थिति स्पष्ट की जाए।
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