शिक्षकों के सत्र लाभ को लेकर किए गए एक संशोधन ने अब
खुद विभाग को ही असमंजस की स्थिति में डाल दिया है। इस संशोधन में यह ही
स्पष्ट नहीं हो सका कि शिक्षकों और प्रधानाचार्यो के रिटायरमेंट की तारीख
क्या होगी। इसकी वजह से ही सत्र लाभ में रिटायर होने की तारीख को लेकर
असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है और हाई कोर्ट में तमाम याचिकाएं दाखिल हो
रही हैं।
प्रदेश के अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में जुलाई के बजाए अप्रैल से सत्र शुरू हुआ है। इसके बाद से सत्र लाभ और सेवानिवृत्ति की तारीख को लेकर असमंजस की स्थिति खड़ी हुई है। सरकार ने 25 मई को एक शासनादेश निर्गत कर व्यवस्था दी थी कि दो जुलाई, 2014 से 30 जून, 2015 के बीच यदि किसी अध्यापक के रिटायर होने की तारीख पड़ रही है तो उसकी सेवानिवृत्ति 30 जून को हो जाएगी। इस आदेश के पहले ही और बाद में भी सत्र परिवर्तन को आधार बनाकर सैकड़ों शिक्षकों ने याचिकाएं दाखिल दी। इसमें अलग-अलग बेंच ने अलग-अलग आदेश भी जारी कर दिए।
इस विसंगति को देखते हुए सरकार ने 12 जून को इंटरमीडिएट एक्ट-21 के विनियमों के अध्याय-3 (सेवा की शर्ते) में संशोधन किया। माध्यमिक शिक्षा परिषद ने 20 जून को इसे गजट भी कर दिया लेकिन किसी ने यह ध्यान नहीं दिया कि विसंगतियां घटने के बजाए और बढ़ने जा रही हैं। संशोधन में शिक्षकों और प्रधानाचार्यो के साथ ही अन्य कर्मचारियों को भी 31 मार्च तक सत्र लाभ दिए जाने की सुविधा दे दी गई है। जबकि कर्मचारियों के बारे में पहले से ही स्पष्ट नियम है कि यदि उनकी रिटायरमेंट की तारीख माह के बीच में पड़ रही है तो उसे उसी माह की अंतिम तिथि को माना जाएगा।
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ (ठकुराई गुट) के प्रदेश महामंत्री लाल मणि द्विवेदी ने यह मामला उठाया तो अधिकारियों की तंद्रा टूटी है। हाल ही में शिक्षा निदेशक बने अमरनाथ वर्मा के संज्ञान में भी यह प्रकरण आया है। इसके बाद इस गड़बड़ी को दूर करने की कवायद शुरू की गई है। संघ के प्रदेश महामंत्री लाल मणि के अनुसार अधिनियमों, विनियमों और शासनादेशों में इस प्रकार की गड़बड़ियां इस बात का उदाहरण है कि अधिकारी विषयों को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।
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प्रदेश के अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में जुलाई के बजाए अप्रैल से सत्र शुरू हुआ है। इसके बाद से सत्र लाभ और सेवानिवृत्ति की तारीख को लेकर असमंजस की स्थिति खड़ी हुई है। सरकार ने 25 मई को एक शासनादेश निर्गत कर व्यवस्था दी थी कि दो जुलाई, 2014 से 30 जून, 2015 के बीच यदि किसी अध्यापक के रिटायर होने की तारीख पड़ रही है तो उसकी सेवानिवृत्ति 30 जून को हो जाएगी। इस आदेश के पहले ही और बाद में भी सत्र परिवर्तन को आधार बनाकर सैकड़ों शिक्षकों ने याचिकाएं दाखिल दी। इसमें अलग-अलग बेंच ने अलग-अलग आदेश भी जारी कर दिए।
इस विसंगति को देखते हुए सरकार ने 12 जून को इंटरमीडिएट एक्ट-21 के विनियमों के अध्याय-3 (सेवा की शर्ते) में संशोधन किया। माध्यमिक शिक्षा परिषद ने 20 जून को इसे गजट भी कर दिया लेकिन किसी ने यह ध्यान नहीं दिया कि विसंगतियां घटने के बजाए और बढ़ने जा रही हैं। संशोधन में शिक्षकों और प्रधानाचार्यो के साथ ही अन्य कर्मचारियों को भी 31 मार्च तक सत्र लाभ दिए जाने की सुविधा दे दी गई है। जबकि कर्मचारियों के बारे में पहले से ही स्पष्ट नियम है कि यदि उनकी रिटायरमेंट की तारीख माह के बीच में पड़ रही है तो उसे उसी माह की अंतिम तिथि को माना जाएगा।
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ (ठकुराई गुट) के प्रदेश महामंत्री लाल मणि द्विवेदी ने यह मामला उठाया तो अधिकारियों की तंद्रा टूटी है। हाल ही में शिक्षा निदेशक बने अमरनाथ वर्मा के संज्ञान में भी यह प्रकरण आया है। इसके बाद इस गड़बड़ी को दूर करने की कवायद शुरू की गई है। संघ के प्रदेश महामंत्री लाल मणि के अनुसार अधिनियमों, विनियमों और शासनादेशों में इस प्रकार की गड़बड़ियां इस बात का उदाहरण है कि अधिकारी विषयों को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।
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