लखनऊ [परवेज अहमद] । समाजवादी परिवार के'सत्ता संग्राम में अभी चाहे
जितने तिलिस्म खुलने बाकी हों, यह तो साफ है कि परिवार के बड़ों के सियासी
दांवपेंच की रास थामने को युवा पीढ़ी भी तैयार है।
एमएलसी अरविंद यादव की बर्खास्तगी पर प्रो.रामगोपाल के बेटे अक्षय यादव के विद्रोही सुर और आदित्य यादव का पिता शिवपाल यादव का बगलगीर रहना यही साबित करता है। इनकी तरह दूसरे ओहदेदारों के बेटे भी अपना मोर्चा बनाने को आतुर दिख रहे हैं।
सपा के दूसरे ओहदेदारों के पुत्र पर्दे की ओट से निकलकर सामने आ रहे हैं। 13 सितंबर से शुरू 'सत्ता संग्राम में इसके नजारे दिखे। एमएलसी अरविंद यादव दल से निष्कासित किये गए तो प्रो.राम गोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव ने मोर्चा संभाला कि 'अरविंद मेरी बुआ के बेटे हैं, उन्हें निकालने से पहले नेतृत्व को उनसे बात करनी चाहिए थी। जो इल्जाम उन पर लगाए गए हैं, उनके साक्ष्य देने चाहिए। मेरे पिता का सम्मान है। इस जुमले से साफ है कि अक्षय यादव पार्टी के सियासी अखाड़े में उतरने को तैयार हैं।
ऐसी ही स्थिति शिवपाल यादव के घर की भी रही। मंत्री व सपा के प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफे से लेकर मुलायम सिंह से दिल्ली-लखनऊ में मुलाकात के दौरान उनके बेटे आदित्य यादव उर्फ अंकुर साये की तरह उनके साथ रहे। इस्तीफे की जानकारी के बाद जुटे समर्थकों को शांत कराने के लिए भी पिता के साथ वह मंच पर आए। अलबत्ता अक्षय की तरह आदित्य ने अपनी जुबान नहीं खोली। हां, उनके तेवर जरूर सख्त थे।
अब पार्टी के अन्य नेताओं के परिवार की बात। पहला नाम बलराम यादव का आता है। कौमी एकता दल का सपा में विलय कराने के प्रयास में 'कुछ चूक पर अखिलेश ने उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त किया तो पैरवी में पहला कदम उनके बेटे संग्र्राम यादव ने बढ़ाया।खुद को ऑफर किए गए पद से इन्कार करते हुए वह पिता बलराम का मंत्री पद बहाल कराने में जुट गए और मुलायम के हस्तक्षेप से उन्हें कामयाबी मिल भी गई।
ऐसे ही मंत्री महबूब अली से माध्यमिक शिक्षा जैसा बड़ा विभाग वापस लेकर उन्हें कम महत्व का विभाग दिया गया तो उनके बेटे परवेज अली ने मोर्चा संभाला। दिल्ली, लखनऊ की दौड़ लगाई और कौशल विकास का विभाग दिलाने में कामयाब रहे। अगर अखिलेश की भाषा में कहें तो विवाद परिवार का नहीं कुर्सी का है। जाहिर है कुर्सी को लेकर समाजवादी परिवार के बड़ों का खांचों में बंटना स्वाभाविक है, मगर जिस अंदाज में युवा मोर्चे पर आए, वह दूरगामी परिणाम के संकेत हैं। यही टीम आगे चलकर टिकट की दावेदार होगी।
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एमएलसी अरविंद यादव की बर्खास्तगी पर प्रो.रामगोपाल के बेटे अक्षय यादव के विद्रोही सुर और आदित्य यादव का पिता शिवपाल यादव का बगलगीर रहना यही साबित करता है। इनकी तरह दूसरे ओहदेदारों के बेटे भी अपना मोर्चा बनाने को आतुर दिख रहे हैं।
सपा के दूसरे ओहदेदारों के पुत्र पर्दे की ओट से निकलकर सामने आ रहे हैं। 13 सितंबर से शुरू 'सत्ता संग्राम में इसके नजारे दिखे। एमएलसी अरविंद यादव दल से निष्कासित किये गए तो प्रो.राम गोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव ने मोर्चा संभाला कि 'अरविंद मेरी बुआ के बेटे हैं, उन्हें निकालने से पहले नेतृत्व को उनसे बात करनी चाहिए थी। जो इल्जाम उन पर लगाए गए हैं, उनके साक्ष्य देने चाहिए। मेरे पिता का सम्मान है। इस जुमले से साफ है कि अक्षय यादव पार्टी के सियासी अखाड़े में उतरने को तैयार हैं।
ऐसी ही स्थिति शिवपाल यादव के घर की भी रही। मंत्री व सपा के प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफे से लेकर मुलायम सिंह से दिल्ली-लखनऊ में मुलाकात के दौरान उनके बेटे आदित्य यादव उर्फ अंकुर साये की तरह उनके साथ रहे। इस्तीफे की जानकारी के बाद जुटे समर्थकों को शांत कराने के लिए भी पिता के साथ वह मंच पर आए। अलबत्ता अक्षय की तरह आदित्य ने अपनी जुबान नहीं खोली। हां, उनके तेवर जरूर सख्त थे।
अब पार्टी के अन्य नेताओं के परिवार की बात। पहला नाम बलराम यादव का आता है। कौमी एकता दल का सपा में विलय कराने के प्रयास में 'कुछ चूक पर अखिलेश ने उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त किया तो पैरवी में पहला कदम उनके बेटे संग्र्राम यादव ने बढ़ाया।खुद को ऑफर किए गए पद से इन्कार करते हुए वह पिता बलराम का मंत्री पद बहाल कराने में जुट गए और मुलायम के हस्तक्षेप से उन्हें कामयाबी मिल भी गई।
ऐसे ही मंत्री महबूब अली से माध्यमिक शिक्षा जैसा बड़ा विभाग वापस लेकर उन्हें कम महत्व का विभाग दिया गया तो उनके बेटे परवेज अली ने मोर्चा संभाला। दिल्ली, लखनऊ की दौड़ लगाई और कौशल विकास का विभाग दिलाने में कामयाब रहे। अगर अखिलेश की भाषा में कहें तो विवाद परिवार का नहीं कुर्सी का है। जाहिर है कुर्सी को लेकर समाजवादी परिवार के बड़ों का खांचों में बंटना स्वाभाविक है, मगर जिस अंदाज में युवा मोर्चे पर आए, वह दूरगामी परिणाम के संकेत हैं। यही टीम आगे चलकर टिकट की दावेदार होगी।
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