शिक्षक भर्ती की अर्हता को लेकर यूजीसी संशोधन दरकिनार, शासनादेश का इंतजार

गोरखपुर उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवक्ता पद पर नियुक्ति के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा अर्हता नियम को भले ही लचीला बना दिया गया है, लेकिन गोरखपुर विश्वविद्यालय समेत प्रदेश के कई विश्वविद्यालय इस नियम को मानने में लाचारी जता रहे हैं।
इस छद्म लाचारी के पीछे उनका तर्क शासन की ओर से कोई दिशा-निर्देश न मिलने का है। यूजीसी की नई नियमावली पर विश्वविद्यालयों का यह रुख उन अभ्यर्थियों को परेशान करने वाला है, जो नई नियमावली में अर्हता रखते हुए भी आवेदन से वंचित हो रहे हैं।
शिक्षक भर्ती की अर्हता को लेकर अनेक असमंजस को दूर करते हुए यूजीसी ने 2010 में नियमावली जारी करके राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा यानी नेट, स्लेट और सेट से उन अभ्यर्थियों को छूट दी, जिन्होंने यूजीसी के नियमन 2009 के मानक के अनुसार 11 बिंदुओं को पूरा करने वाली पीएचडी की उपाधि हासिल की है। जब 11 बिदुओं के उच्च मानक का विरोध हुआ तो यूजीसी ने नियमन में संशोधन कर 2010 में ही छह बिंदुओं की अर्हता रखने का मानक तय कर दिया। इस बदलाव को लागू करने के लिए शासन ने विश्वविद्यालय को निर्देश दिया कि वे इसे परिनियमावली में शामिल करें। जब कई विश्वविद्यालयों ने ऐसा नहीं किया तो दिसम्बर 2013 में शासन ने अपने स्तर से इस बदलाव को परिनियमावली में शामिल कर दिया। बावजूद इसके इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने इसे नहीं माना। इसके कारण मामला पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रकरण पर विचार करने के बाद एक बार फिर 11 बिंदुओं को मान्य कर दिया। मामला उलझता देख यूजीसी ने फिर नियम में संशोधन किया और 11 जुलाई 2016 को पांच बिंदुओं के साथ पीएचडी की अर्हता का नया नियम बना दिया। यूजीसी की ओर से अर्हता के मानक में अख्तियार किए गए लचीले रुख से प्रसन्न अभ्यर्थियों की खुशी काफूर हो गई है। गोरखपुर विश्वविद्यालय समेत कई विश्वविद्यालयों ने शासनादेश की जरूरत बताते हुए इसे मानने से इनकार कर दिया है। सिद्धार्थ विश्वविद्यालय ने तो पुरानी नियमावली पर नियुक्ति प्रक्रिया भी शुरू कर दी है।
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'जब तक शासन की ओर से कोई निर्देश नहीं मिलता, यूजीसी के संशोधन को परिनियमावली में शामिल करना संभव नहीं।'
-प्रो. अशोक कुमार
कुलपति, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय
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पीएचडी अर्हता के पांच बिंदु:
- पीएचडी की उपाधि नियमित पद्धति की हो
- दो बाहरी परीक्षकों द्वारा शोध मूल्यांकन
- मुक्त मौखिक साक्षात्कार कराया गया हो
- शोधकार्य के दो शोधपत्र प्रकाशित हुए हों

- सम्मेलन या संगोष्ठी में दो शोधपत्र की प्रस्तुति
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