21 अक्टूबर का धरना : अचयनितों को अहसास दिलाना ही होगा कि चयनितों का वजूद उनसे है

नींव की मजबूत बुनियाद के सहारे इठलाते कंगूरे को हवा का हल्का झोंका भी विचलित कर नीचे की मजबूती टटोलने को विवश करता है ।
दुर्भाग्य तो ये है सामान्य परिस्थतियों में कंगूरा अपनी चमक दमक पर इतराता नींव की ईंट को बिसरा देता है ,विपरीत परिस्थतियों में वही कंगूरा नींव की ओर अपने स्वार्थ के वशीभूत हो निहारता है।
साथियो टी ई टी के संघर्ष में सदैव ऐसी नीव की ईंटो को ही छला गया है ।अचयनितों को अहसास दिलाना ही होगा कि चयनितों का वजूद उनसे है ,ये तभी होगा जब आप किसी और के लिये नहीं बल्कि स्वयं के अस्तित्व के लिये अपनी एकजुटता का परचम राजधानी में फहरा दें ,इसलिये नहीं कि आपकी जाब धरने के उपरान्त पक्की हो जायेगी वो तो हम कोर्ट के माध्यम से छीन के रहेंगे बल्कि इसलिये कि न तो कोई राजनैतिक पार्टी और न मोर्चे के कतिपय चयनित चंट हमें हल्के में ले ।समूह के हितों को द्रष्टिगत होने वाला संघर्ष राजनीतिक चोला ओढ़ ही लेता है ।चुनाव से पूर्व हमें अब वो ताकत दिखानी ही होगी जिससे हम चुनाव को प्रभावित करने वाले मजबूत कारको में गिने जाने लगे।लोकतन्त्र यदि भीड़ तन्त्र है तो यही सही ,गोमती के किनारे वो सैलाब होना चाहिये कि सत्तसीन दल परिवार के विवाद को भूल हमारे इरादो से थर थर कांपने लगे ।संख्याबल इतना होना चाहिये कि चाहे बसपा हो य भाजपा बिना हमारे वजूद को स्वीकारे चुनावी घोषणा पत्र न तैयार कर पायें।

साथियो जाने अनजाने गेंद आपके पाले में आ गयी है यदि संख्याबल में कोताही हुयी तो आप अगली डेट में पैरवीकारों पर दबाव बनाने का नैतिक आधार खो दोगे ।संघर्ष का समय थोड़ा ही रह गया है कुछ ऐसा तो कर जाओ जिससे जाब पाने के बाद अपने प्रयासों पर गर्व हो ।
यदि अब 21 अक्टूबर का धरना असफल हुआ तो उसके दोषी नेता नहीं आम याची होंगे ..
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