Breaking Posts

Top Post Ad

यूपी के शिक्षामित्र न हो निराश, इन बातों को पालन करने पर मिल सकती है कोर्ट से राहत: दैनिक भास्कर

लखनऊ. शिक्षामित्रों के समायोजन को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है। शिक्षामित्रों के समायोजन पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 1 लाख 72 हजार शिक्षामित्रों में से समायोजित हुए 1 लाख 38 हजार शिक्षामित्रों की असिस्टेंट टीचर के पद पर हुई नियुक्ति को अवैध माना था।
दैनिक भास्कर न्यूज़ चैनल ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने का बाद के एजुकेशन एक्सपर्ट माध्यमिक शिक्षा संघ के अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ राय, क्वींस कॉलेज के प्र‍िंसिपल डॉ. आर पी मिश्रा, अभिभावक कल्याण संघ के प्रवक्ता पीके श्रीवास्तव, और टीचर एके सक्सेना से बात कर उनसे बीच का रास्ता खोजने की कोशिश की। जिससे कि शिक्षा मित्रों को राहत मिल सके।इन बातों को फालों करने पर मिल सकती है राहत...
- शिक्षामित्रों को सबसे पहले तो हर हाल में गवर्नमेंट को अपने पक्ष में लाना होगा। इसके लिए शिक्षामित्र सरकार से मिलकर गुहार लगा सकते है या धरना प्रदर्शन कर अपनी बात मनवाने के लिए मजबूर कर सके।
- गवर्नमेंट, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकती है। गवर्नमेंट, सदन में शिक्षामित्रों के समायोजन को लेकर नया आधिनियम पारित करा सकती है।
- शिक्षामित्र चीफ जस्टिस के यहां पर क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल कर सकते है। गवर्नमेंट चाहे तो शिक्षामित्रों का मानदेय बढ़ाकर असिस्टेंट टीचर्स के बराबर कर सकती है।
आइए समझें कि क्यूरेटिव पिटीशन आखिर है क्या?
Curative Petition शब्द की उत्पति Cure शब्द से हुई है। इसका मतलब होता है उपचार करना। क्यूरेटिव पिटीशन तब दाखिल किया जाता है जब किसी मामले में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी जाती है। ऐसे में क्यूरेटिव पिटीशन अंतिम मौका होता है। जिसके ज़रिए वह अपने लिए चीफ जस्टिस या राष्ट्रपति के पास गुहार लगा सकता है। क्यूरेटिव पिटीशन किसी भी मामले में अभियोग की अंतिम कड़ी होता है, इसमें फैसला आने के बाद अपील करने वाले व्यक्ति के लिए आगे के सभी रास्ते बंद हो जाते हैं।
याकूब के केस में भी दायर हुई थी क्यूरेटिव पिटीशन
- आमतौर पर राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज करने के बाद कोई भी मामला खत्म हो जाता है, लेकिन याकूब के मामले में क्यूरेटिव पिटीशन अपवाद साबित हुआ। राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज करने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने क्यूरेटिव पिटीशन पर सुनवाई करने की मांग स्वीकार की थी।
किस मामले से आया क्यूरेटिव पिटीशन

- क्यूरेटिव पिटीशन का कांसेप्ट 2002 में रुपा अशोक हुरा मामले की सुनवाई के दौरान हुआ था। जब ये पूछा गया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोषी ठहराये जाने के बाद भी क्या किसी आरोपी को राहत मिल सकती है?
- नियम के मुताबिक ऐसे मामलों में पीड़ित व्यक्ति रिव्यू पिटीशन डाल सकता है लेकिन सवाल ये पूछा गया कि अगर रिव्यू पिटीशन भी खारिज कर दिया जाता है तो क्या किया जाए?
- तब सुप्रीम कोर्ट अपने ही द्वारा दिए गए न्याय के आदेश को गलत क्रियान्वन से बचाने के लिए या फिर उसे दुरुस्त करने लिए क्यूरेटिव पिटीशन की धारणा लेकर सामने आई। इसके तहत सुप्रीम कोर्ट अपने ही फैसलों पर पुनर्विचार करने के लिए तैयार हो गई।
क्या हैं क्यूरेटिव पिटीशन के नियम
- याचिकाकर्ता को अपने क्यूरेटिव पिटीशन में ये बताना होता है कि आख़िर वो किस आधार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती कर रहा है। क्यूरेटिव पिटीशन किसी सीनियर वकील द्वारा सर्टिफाइड होना ज़रूरी होता है।
- जिसके बाद इस पिटीशन को सुप्रीम कोर्ट के तीन सीनियर मोस्ट जजों और जिन जजों ने फैसला सुनाया था उसके पास भी भेजा जाना जरूरी होता है। अगर इस बेंच के ज़्यादातर जज इस बात से इत्तिफाक़ रखते हैं कि मामले की दोबारा सुनवाई होनी चाहिए तब क्यूरेटिव पिटीशन को वापिस उन्हीं जजों के पास भेज दिया जाता है।
sponsored links:
ख़बरें अब तक - 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती - Today's Headlines

No comments:

Post a Comment

Facebook