उत्तर प्रदेश में 2005-2006 के सिपाही भर्ती मामले में करीब दो हजार सिपाही
बर्खास्तगी की अवधि का बकाया वेतन मांगने सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं।
सुप्रीम कोर्ट इनकी याचिका पर सोमवार को सुनवाई करेगा।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सिपाहियों की बकाया वेतन की मांग वाली अवमानना याचिका खारिज करते हुए कहा था कि सिपाहियों को नौकरी पर वापस लिए जाने के मुख्य फैसले में बकाया वेतन देने का जिक्र नहीं है। इसलिए बकाया वेतन की मांग को लेकर सरकार के खिलाफ अवमानना याचिका दाखिल नहीं की जा सकती। हाईकोर्ट का यह आदेश गत वर्ष 28 सितंबर का है। इसके खिलाफ करीब 2000 सिपाहियों ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की है। 1वकील कृष्ण मुरारी के जरिए दाखिल याचिका में सिपाहियों ने कहा है कि उन्होंने नौकरी में बहाल करने की मांग वाली अपनी मुख्य याचिका में बर्खास्तगी की अवधि का बकाया वेतन भी दिलाने की मांग की थी। ऐसे में जब कोर्ट ने उनकी याचिका स्वीकार करते हुए उन्हें नौकरी पर वापस लेने का आदेश दिया था तो उसमें बकाया वेतन की अदायगी का निर्देश भी शामिल माना जाएगा। सिपाहियों का कहना है कि सरकार ने कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए उन्हें नौकरी पर तो वापस ले लिया लेकिन उन्हें बर्खास्तगी की अवधि का बकाया वेतन नहीं दिया है। इसके अलावा सिपाहियों ने बर्खास्तगी की अवधि को नौकरी की अवधि में शामिल किए जाने की भी मांग की है। यह मामला थोड़ा पुराना है और लंबी कानूनी प्रक्रिया से गुजर चुका है। वर्ष 2005-2006 में उत्तर प्रदेश में करीब 22 हजार सिपाहियों की भर्ती की गई। ये भर्ती 64 भर्ती बोर्डो के जरिए हुई थी। उस समय सत्ता में सपा सरकार थी। इसके बाद 2008 में सूबे में आई बसपा सरकार ने 54 भर्ती बोर्डो की भर्तियां रद करते हुए करीब 18000 सिपाही बर्खास्त कर दिए। बर्खास्त सिपाहियों ने बर्खास्तगी के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट की एकल पीठ में याचिकाएं दाखिल कीं। एकल पीठ ने सिपाहियों के हक में फैसला देते हुए बर्खास्तगी रद कर दी और सिपाहियों को नौकरी में वापस लेने का आदेश दिया। प्रदेश सरकार ने एकल पीठ के फैसले को हाईकोर्ट की खंडपीठ में चुनौती दी लेकिन खंडपीठ ने भी एकल पीठ के फैसले पर मुहर लगा दी। फैसला हक में आने के बावजूद जब सरकार ने नौकरी में वापस नहीं लिया तो सिपाहियों ने हाईकोर्ट की एकल पीठ में सरकार के खिलाफ अवमानना दाखिल की जिस पर आला अधिकारियों को नोटिस हुआ। इस बीच बसपा सरकार ने सिपाहियों को नौकरी में वापस लेने के हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सिपाहियों की बकाया वेतन की मांग वाली अवमानना याचिका खारिज करते हुए कहा था कि सिपाहियों को नौकरी पर वापस लिए जाने के मुख्य फैसले में बकाया वेतन देने का जिक्र नहीं है। इसलिए बकाया वेतन की मांग को लेकर सरकार के खिलाफ अवमानना याचिका दाखिल नहीं की जा सकती। हाईकोर्ट का यह आदेश गत वर्ष 28 सितंबर का है। इसके खिलाफ करीब 2000 सिपाहियों ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की है। 1वकील कृष्ण मुरारी के जरिए दाखिल याचिका में सिपाहियों ने कहा है कि उन्होंने नौकरी में बहाल करने की मांग वाली अपनी मुख्य याचिका में बर्खास्तगी की अवधि का बकाया वेतन भी दिलाने की मांग की थी। ऐसे में जब कोर्ट ने उनकी याचिका स्वीकार करते हुए उन्हें नौकरी पर वापस लेने का आदेश दिया था तो उसमें बकाया वेतन की अदायगी का निर्देश भी शामिल माना जाएगा। सिपाहियों का कहना है कि सरकार ने कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए उन्हें नौकरी पर तो वापस ले लिया लेकिन उन्हें बर्खास्तगी की अवधि का बकाया वेतन नहीं दिया है। इसके अलावा सिपाहियों ने बर्खास्तगी की अवधि को नौकरी की अवधि में शामिल किए जाने की भी मांग की है। यह मामला थोड़ा पुराना है और लंबी कानूनी प्रक्रिया से गुजर चुका है। वर्ष 2005-2006 में उत्तर प्रदेश में करीब 22 हजार सिपाहियों की भर्ती की गई। ये भर्ती 64 भर्ती बोर्डो के जरिए हुई थी। उस समय सत्ता में सपा सरकार थी। इसके बाद 2008 में सूबे में आई बसपा सरकार ने 54 भर्ती बोर्डो की भर्तियां रद करते हुए करीब 18000 सिपाही बर्खास्त कर दिए। बर्खास्त सिपाहियों ने बर्खास्तगी के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट की एकल पीठ में याचिकाएं दाखिल कीं। एकल पीठ ने सिपाहियों के हक में फैसला देते हुए बर्खास्तगी रद कर दी और सिपाहियों को नौकरी में वापस लेने का आदेश दिया। प्रदेश सरकार ने एकल पीठ के फैसले को हाईकोर्ट की खंडपीठ में चुनौती दी लेकिन खंडपीठ ने भी एकल पीठ के फैसले पर मुहर लगा दी। फैसला हक में आने के बावजूद जब सरकार ने नौकरी में वापस नहीं लिया तो सिपाहियों ने हाईकोर्ट की एकल पीठ में सरकार के खिलाफ अवमानना दाखिल की जिस पर आला अधिकारियों को नोटिस हुआ। इस बीच बसपा सरकार ने सिपाहियों को नौकरी में वापस लेने के हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
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