लखनऊ : वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा की नजरें अति पिछड़े वर्ग के वोटरों पर है। यह वही वर्ग है जिसके बूते वर्ष 2014 में भाजपा प्रचंड बहुमत से केंद्र की सत्ता में आयी थी। राज्य सरकार अति पिछड़ी जातियों को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण का लाभ देना चाहती है।
अति पिछड़ी जातियों को अपने पक्ष में लुभाने के लिए सरकार इसे अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) कोटा के भीतर अलग कोटे में आरक्षण देने की तैयारी कर रही है। अगर सरकार ऐसा करने में सफल रही तो आगामी चुनाव में उसके लिए यह सबसे प्रभावी हथियार साबित होगा।
आरक्षण का सर्वाधिक लाभ कुछ जातियों को : अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए सरकारी नौकरियों में 27 फीसद आरक्षण की व्यवस्था है। अब तक इस आरक्षण का सर्वाधिक लाभ मात्र कुछ जातियों को ही मिला है। मसलन ओबीसी आरक्षण में सिर्फ नौ फीसद आबादी के बावजूद यादवों की नौकरियों में हिस्सेदारी 132 फीसद तक है। इसी तरह ओबीसी में कुर्मी जाति के लोगों की आबादी सिर्फ पांच फीसद है पर नौकरियों में इनकी हिस्सेदारी 242 फीसद तक है। इसके उलट 63 ऐसी जातियां हैं जो ओबीसी आबादी में करीब 14 फीसद हिस्सेदारी रखती हैं, पर आबादी के अनुपात में इनको 77 फीसद नौकरियां ही मिलीं हैं। सरकार चाहती है कि ओबीसी में आरक्षण अलग अलग जातियों को उनकी आबादी के अनुपात और सामाजिक न्याय के मुताबिक मिले।
आबादी के अनुपात में आरक्षण से वंचित अति पिछड़ों पर निगाहें : इस विसंगति को दूर करने के लिए अति पिछड़े वर्ग की उन जातियों को आरक्षण का लाभ पहुंचाने की व्यवस्था तय की जाएगी जिनको आबादी केअनुपात में अब तक आरक्षण का लाभ नहीं मिला है।
राजनाथ सरकार में भी हुई थी ऐसी कोशिश
इसके पहले वर्ष 2002 में ऐसी ही कोशिश तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने भी की थी। तब हुकुम सिंह कमेटी का गठन हुआ था। मामला कोर्ट में जाने के कारण रिपोर्ट लागू नहीं हो सकी। यही वजह है इस बार सरकार इसके लिए मुकम्मल कार्ययोजना तैयार कर रही है। उसने आधार भी सुप्रीम के इंदिरा साहनी के केस में दिये गए फैसले को बनाया है।
आबादी के अनुपात में आरक्षण का फायदा नहीं पाने वालों को दिलाया जाएगा लाभ
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाएगी राज्य सरकार
नयी व्यवस्था पर सुझाव देगी ‘उप्र पिछड़ा वर्ग सामाजिक न्याय समिति’
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