शिक्षा मित्रों की क्रान्ति लिख देगी इतिहास ..............: 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती Latest News

उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश में शिक्षामित्रों की नियुक्ति मई 1999 के एक ही शासनादेश के अन्तर्गत हुई थी, क्योंकि तब उत्तराखण्ड का उदय.नहीं हुआ था और वह उ.प्र का ही अंग था। बाद में उत्तर प्रदेश से कट.कर उत्तराखण्ड राज्य बना तो उस क्षेत्र में आने वाले शिक्षामित्र उत्तराखण्ड राज्य.के शिक्षामित्र कहलाने लगे।

समय बीतने के साथ वहाँ की सरकार ने ncte से अनुमति लेकर सहायक अध्यापक पद पर इनका टेटमुक्त.समायोजन कर दिया। इनका भी टेटमुक्त समायोजन उसी आधार पर किया गया जिस आधार (2010 के पहले से कार्यरत) पर हम टेट.से छूट की माँग कर रहे हैं। बाद में कोर्ट में मामले की सुनवाई चलने के बाद नैनीताल हाईकोर्ट.ने इनके समायोजन को वैध भी करार दिया।
अब देखना यह है कि जब देश के किसी भी राज्य की कोर्ट का आदेश एक नज़ीर बन जाता है और जब उत्तराखण्ड में टेटमुक्त.समायोजन को वहाँ की नैनीताल हाईकोर्ट ने सही ठहराया है तो ठीक उसी तरह के मामले में यह फैसला हमारे लिए एक नज़ीर बनेगा. मगर इस बात का संज्ञान सुप्रीम कोर्ट में लाकर इसका बाकायदा सबूत पेश करना होगा।
साथियों यह बड़े कष्ट.का विषय है और लगातार मंथन व चिन्तन के बाद भी समझ में नहीं आ रहा कि ठीक उसी मैटर में हमारे साथ ऐसा व्यवहार क्यों हो रहा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद हमारे दर्जनों साथियों एवं उनके परिवार सहित अब तक सौ के आसपास जानें जा चुकी हैं, 172000 परिवार से जुड़े लाखों मासूम बच्चों और बूढे माँ बाप की रोटी का सहारा छिन गया है। प्रदेश में शिक्षामित्रों व उनसे जुड़े परिवारों सहित उनके लाखों शुभचुन्तकों में क्रान्ति की जो ज्वाला जल रही है यदि समय रहते इसे शान्त नहीं किया गया और मसले का सम्मान जनक हल नहीं निकाला गया तो आने वाले समय में शिक्षामित्रों के आन्दोलन से सरकारें हिल जाएंगी और शिक्षामित्र क्रान्ति और इस ऐतिहासिक आन्दोलन की आन्धी को रोक पाना तब सरकारों के लिए टेढ़ी खीर बन जाएगी। इसलिए समय रहते इसका समुचित समाधान कर लेना सरकारों की जिम्मेदारी है।
इस समय प्रदेश ही नहीं अपितु राष्ट्रीय.स्तर पर सबसे ज्वलनित मुद्दा अगर कोई है तो वह 172000 परिवारों को 15 वर्ष तक रोटी का आधा टुकड़ा खिलाकर और अब उसे भी छीन लिया जाना है। जिससे यह 172000 परिवार एक झटके में सड़कों पर आ गया है। कितने घरों में चूल्हा नहीं जल पा रहा है उनके बच्चे भूख से तड़प रहे हैं, बूढ़े माँ बाप का इलाज ठप हो गया है मगर आज भी इस मुद्दे पर राजनीति की जा रही है। शर्म आती है ऐसे कानून पर और ऐसे तन्त्र पर जो कि गरीबों के मुँह का निवाला छीनने का काम करता हो। और शर्म आती है ऐसी पालिटक्स पर जो सिर्फ अपना राजनैतिक मकसद हासिल करने के चक्कर में भूखे बच्चों की चीख और बीमार बूढ़े माँ बाप की कराह को नजर अन्दाज़ करके सिर्फ अपना उल्लू सीधा करने में जुटी हो।
अबी वक्त है सँभल जाओ और इस ज्वलन्त मुद्दे का यथा शीघ्र स्थाई और सम्मान जनक हल निकाल कर एक बड़े आन्दोलन को होने से रोक लो।
वरना शिक्षा मित्रों की क्रान्ति इतिहास लिख देगी।
जय शिक्षामित्र एकता ।ऋषि तिवारी ।

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