शिक्षक भर्ती में TET मेरिट के क्या हैं फायदे और क्या हैं नुकसान जानिए बिन्दुबार? : 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती Latest News

शिक्षक भर्ती में आयुसीमा 21 से 40 होती है। आरक्षण भी शामिल करें तो 45 वर्ष तक अर्थात् 24 वर्ष का अन्तर
यानी चौथाई सदी का अंतरचौबीस साल में परीक्षा पद्धतियाँ कितने ही बार बदल चुकीं हैं।

🔺सपुस्तक परीक्षा
🔺नकल पर जेल
🔺स्वकेन्द्र परीक्षा
🔺तीस प्रतिशत आंतरिक मूल्यांकन
🔺विषयों का फेरबदल
🔻प्रश्नपत्रों की संख्या में कमी
🔺परीक्षा समय में वृद्धि
🔺CBSE बोर्ड का फैलाव और उसके उदारता से दिये नंबर ग्रेडिंग सिस्टम
🔺नौ और दस & 11 और 12 का पाठ्यक्रम अलग अलग करना
🔺बोर्ड द्वारा उदारता से नंबर देने के लिये विद्यालयों को पत्र लिखना।
🔺प्राईवेट कालेजों का फैलता जाल
🔺हर साल नकल की घटनाएँ बढ़ते जाना
🔺कालेज वाले ही नकल करवाये
🔺और भी न जाने क्या क्या
इन सारी स्थितियों को मापने पर यह स्पष्ट है कि चौबीस साल के अंतर वाले आवेदकों का चयन एकेडमिक अंकों के गुणांकों से करना हरगिज भी सही नहीं है, ये पूरी तरह से अधिक उम्र वालों को बेइज्जती से बाहर करने की साजिश है भले ही वो कम उम्र वालों से अधिक योग्य हों। अब इसका एक और पहलू देखें
एक ही उम्र वालों की ही तुलना करें तो .....
अलग अलग विश्वविद्यालय अलग अलग तरह से परीक्षा करवाते हैं।
जाहिर है कि अलग अलग विश्वविद्यालयों के नंबरों में भी असमानता रहती है।

आप चाहें तो एक ही वर्ष के एक ही विषय के नंबरों की तुलना कर लें।

ग्वालियर वि वि में जहाँ आपको 75% नंबर बहुतायत में मिलेंगे वहीं कानपुर वि वि में 60% बड़ी मुश्किल से देखने को मिलेंगे।
और ये तो पता ही है कि स्नातक में 15% का अंतर बहुत बहुत बड़ा फर्क कर देता है।

इसके अलावा राज्यों के बोर्ड नंबर देने के मामले में केन्द्रीय बोर्डों के आगे कहीं नहीं ठहरते।

इसलिये एकेडमिक मेरिट योग्यता को कहीं से भी प्रकट नहीं करती।

ये बेहद अन्यायपूर्ण है। समानता विरोधी है।

और भी पहलू हैं उन्हें भी देखिये

परीक्षा अक्सर मार्च में होती है।

उस समय मौसम बदल रहा होता है।

शादियों का भी सीजन होता है।

अब यदि कोई परीक्षार्थी बीमार हो जाये

या उसके घर किसी की शादी हो

या घर में किसी की मृत्यु हो जाये

तो यकीनन उसके नंबर कम ही आयेंगे।
हो सकता है वो गलत संगति का शिकार होकर पढ़ा ही न हो पर अब सुधर गया हो

तो क्या उसे अवसर ही नहीं दिया जायेगा ???

उसकी गलती या उसके तब के दुर्भाग्य की सजा क्या उसे बार बार बार बार दी जायेगी

क्या हमारा कानून बार बार सजा देता है ???

क्या संविधान दूसरा अवसर देने को मना करता है ???

तो फिर क्यों उसकी एक परीक्षा का परिणाम बार बार उस पर थोपा जाता है।

कोई नेता चुनाव लड़े और उसकी जमानत जब्त हो जाये। उसे मात्र दस हजार वोट मिलें।

तो क्या जब जब वो चुनाव लड़ेगा तब तब उसके वोट दस हज़ार ही माने जायेंगे ????

अब आते हैं सरकार के बहाने पर

सरकार संसाधनों की कमी का रोना रोकर मेरिट चयन की वकालत करती है।

BTC के कोर्स के चयन में तो ये दलील सुनी भी जा सकती है पर शिक्षक चयन में ये बात कहना अपराध है। पाखंड है और धूर्तता है।

क्योंकि

RTE के अनुसार सरकार को हर साल दो बार टेट परीक्षा करवाना ही है।

कम से कम एक बार तो करवाना अनिवार्य ही है।


जब परीक्षा हर बार करवानी ही है तो क्यों न उसके नंबरों की ही मेरिट बनवायी जाये।

इससे सभी को समान अवसर मिलेगा।

और एक पहलू

यदि चयन टेट मेरिट से अनिवार्य कर दिया जाये तो अभ्यर्थी सदा खुद को अपडेट रखेंगे और लगातार अध्ययन करते रहेंगे

इससे प्रतिस्पर्धा होगी

फलस्वरूप गुणवत्ता बढ़ेगी।

किसी को समान अवसर न मिलने की शिकायत नहीं रहेगी।

वैसे भी टेट का मतलब है

शिक्षक पात्रता परीक्षा

अब जो ज्यादा पात्र होगा उसके नंबर ज्यादा आयेंगे और उसे पहले अवसर मिलना चाहिए।

लेख लंबा है पर स्पष्टीकरण देते हुये लिखा है।

सारांश टेट मेरिट के फायदे-

  • अलग अलग बोर्ड और विश्वविद्यालय के नंबर देने के तरीके का कोई दुष्प्रभाव नहीं
  • अलग अलग आयुवर्ग के लोगों को समानता।
  • कला और विज्ञान वर्ग की लड़ाई नहीं।
  • महिला पुरुष की लड़ाई नहीं।
  • किसी के एक बार के दुर्भाग्य की सजा बार बार नहीं।
  • सभी को समान अवसर।
  • अपनी मेरिट सुधारने का लगातार मौका।
  • कोई अतिरिक्त संसाधनों और धन का अपव्यय नहीं।
  • पारदर्शिता।
  • सरलता।
  • निष्पक्षता।
  • प्रतिस्पर्धी।
  • गुणवत्ता में लगातार वृद्धि।
  • अच्छे शिक्षक मिलना।
  • और भी बहुत कुछ।
  • और हां
  • खराबी कुछ भी नहीं।
तो फिर क्यों न टेट मेरिट अनिवार्य की जाये।

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