इलाहाबाद। प्रदेश के 1.72 लाख
शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द करने संबंधी हाईकोर्ट की पूर्णपीठ के आदेश
पर सुप्रीमकोर्ट की रोक लग जाने से इस मामले में कानूनी लड़ाई लंबी हो चली
है। हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दिए जाने को लेकर लंबे समय तक ऊहापोह में
रही प्रदेश सरकार को भी शिक्षामित्रों को ढांढस बंधाने का मौका मिल गया है।
विधि विशेषज्ञों का मानना है कि इस मुद्दे पर अभी अंतिम फैसला नहीं हुआ है। सुप्रीमकोर्ट का आदेश अंतरिम राहत मात्र है। शिक्षामित्र अंतिम रूप से सहायक अध्यापक माने जाएंगे या नहीं यह सुप्रीमकोर्ट में दाखिल विशेष अनुमति याचिका पर होने वाले निर्णय पर निर्भर करेगा। सुप्रीमकोर्ट के समक्ष दोनों पक्ष (शिक्षा मित्र और विरोध करने वाले अभ्यर्थी) हैं। हाईकोर्ट के फैसले में कानूनी पहलुओं का विश्लेषण करते समय सुप्रीमकोर्ट की ही कई नजीरों का आधार लिया गया है। पूर्णपीठ ने अपने निर्णय में स्टेट ऑफ कर्नाटक बनाम उमादेवी केस में सुप्रीमकोर्ट द्वारा समायोजन को लेकर दिए फैसले और होमगार्ड वेलफेयर एसोसिएशन बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य में नियमितीकरण को लेकर दिए गए फैसले को शामिल किया है। इसमें कर्नाटक राज्य बनाम एमएल केसरी सहित दूसरे न्यायिक निर्णयों का आधार लेते हुए शिक्षामित्रों के समायोजन को लेकर दिया फैसला भी है। वहीं शिक्षामित्रों के खिलाफ याचिका करने वालों की ओर से सर्वोच्च अदालत में तमाम दलीलों का सहारा लिया जाएगा।
शिक्षामित्रों को स्थगन आदेश मिलने से उन्हें अदालत में अपना पक्ष और मजबूती से रखने का मौका मिला है।
•हाईकोर्ट ने असंवैधानिक घोषित किया है समायोजन
•पूर्णपीठ के फैसले में सुप्रीमकोर्ट की नजीरें भी शामिल
इन आधारोें पर हाईकोर्ट ने रद्द किया था समायोजन
• शिक्षा मित्रों की नियुक्ति नियमित न होकर संविदा आधारित है
• उनकी नियुक्ति में किसी चयन प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया
• नियमानुसार पद सृजित करके विज्ञापन जारी नहीं हुआ और न ही आरक्षण नियमों का पालन हुआ
• प्रदेश सरकार को केंद्र और एनसीटीई की अनुमति के बिना टीईटी से छूट देने का अधिकार नहीं
• बच्चों को अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा का अधिकार नियमावली 2011 की धारा 16 ए का संशोधन अवैधानिक
• उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा (अध्यापक) सेवा नियमावली 2014 में किया गया संशोधन अल्ट्रा वायरस और असंवैधानिक हैं।
• पूर्णपीठ ने शिक्षामित्रों को दूरस्थ शिक्षा माध्यम से दिए गए देा वर्षीय प्रशिक्षण की वैधता तय करने का जिम्मा एनसीटी को सौंप दिया है।
विधि विशेषज्ञों का मानना है कि इस मुद्दे पर अभी अंतिम फैसला नहीं हुआ है। सुप्रीमकोर्ट का आदेश अंतरिम राहत मात्र है। शिक्षामित्र अंतिम रूप से सहायक अध्यापक माने जाएंगे या नहीं यह सुप्रीमकोर्ट में दाखिल विशेष अनुमति याचिका पर होने वाले निर्णय पर निर्भर करेगा। सुप्रीमकोर्ट के समक्ष दोनों पक्ष (शिक्षा मित्र और विरोध करने वाले अभ्यर्थी) हैं। हाईकोर्ट के फैसले में कानूनी पहलुओं का विश्लेषण करते समय सुप्रीमकोर्ट की ही कई नजीरों का आधार लिया गया है। पूर्णपीठ ने अपने निर्णय में स्टेट ऑफ कर्नाटक बनाम उमादेवी केस में सुप्रीमकोर्ट द्वारा समायोजन को लेकर दिए फैसले और होमगार्ड वेलफेयर एसोसिएशन बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य में नियमितीकरण को लेकर दिए गए फैसले को शामिल किया है। इसमें कर्नाटक राज्य बनाम एमएल केसरी सहित दूसरे न्यायिक निर्णयों का आधार लेते हुए शिक्षामित्रों के समायोजन को लेकर दिया फैसला भी है। वहीं शिक्षामित्रों के खिलाफ याचिका करने वालों की ओर से सर्वोच्च अदालत में तमाम दलीलों का सहारा लिया जाएगा।
शिक्षामित्रों को स्थगन आदेश मिलने से उन्हें अदालत में अपना पक्ष और मजबूती से रखने का मौका मिला है।
•हाईकोर्ट ने असंवैधानिक घोषित किया है समायोजन
•पूर्णपीठ के फैसले में सुप्रीमकोर्ट की नजीरें भी शामिल
इन आधारोें पर हाईकोर्ट ने रद्द किया था समायोजन
• शिक्षा मित्रों की नियुक्ति नियमित न होकर संविदा आधारित है
• उनकी नियुक्ति में किसी चयन प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया
• नियमानुसार पद सृजित करके विज्ञापन जारी नहीं हुआ और न ही आरक्षण नियमों का पालन हुआ
• प्रदेश सरकार को केंद्र और एनसीटीई की अनुमति के बिना टीईटी से छूट देने का अधिकार नहीं
• बच्चों को अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा का अधिकार नियमावली 2011 की धारा 16 ए का संशोधन अवैधानिक
• उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा (अध्यापक) सेवा नियमावली 2014 में किया गया संशोधन अल्ट्रा वायरस और असंवैधानिक हैं।
• पूर्णपीठ ने शिक्षामित्रों को दूरस्थ शिक्षा माध्यम से दिए गए देा वर्षीय प्रशिक्षण की वैधता तय करने का जिम्मा एनसीटी को सौंप दिया है।
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