कुल मिलाकर जो आपको लगा वही मुझे भी मतलब हम सभी अचयनित याचियों की जो स्थिति मुख्यमंत्री महोदय से मुलाक़ात के बाद कल थी, कमोबेश आज भी वही है। जहां तक मुझे लगता है कि यदि प्रमुख सचिव, लखनऊ किसी प्रस्ताव को सचिव, इलाहाबाद के लिए भेज दिए हैं तो आज नहीं तो कल सचिव इलाहाबाद को
उसे करना ही होगा इसके दो कारण हैं पहला, माननीय मुख्यमंत्री का निर्देश और दूसरा आप सभी का इतना बड़ा हूजूम। सचिव इलाहाबाद को करना ही होगा। सम्भवत: इस प्रस्ताव को पास करने के बाद यह प्रमुख सचिव, लखनऊ के पास जाएगा और वहां से पास होने के बाद शासनादेश(जी०ओ०) के रूप में हम सभी के सामने होगा। सचिव, इलाहाबाद से वार्ता न होने से दो संशय बना हुआ है पहला, लखनऊ प्रस्ताव इलाहाबाद पहुंचा या नहीं? दूसरा यदि पहुंचा तो पास हुआ या नहीं? चलिए, कल भी और आज भी सचिव महोदय नहीं आये लेकिन कब तक नहीं आयेंगे! उनको आना होगा और बताना होगा, हम उनके इन्तजार में बैठे हैं। बिलकुल शांतिपूर्ण, चुप्प मार के बैठे हैं।
मैं दंग था इतनी बड़ी संख्या के बावजूद इतनी शान्ति। यही शान्ति ही हमें हमारी मंजिल तक पहुंचाएगी। जो माहौल बना है, लोगों में जो इतनी उत्सुकता है, लोग अपने लिए आज घरों से इतनी ठंड में निकल लिए हैं फिर भी डटे हैं, मौन है, शांत हैं, बैठे हैं, लगने लगा है कि हमें हमारी मंजिल मिलने से अब कोई नहीं रोक सकता। आप यकीन मानिए हमारी हर गतिविधि पर न केवल शासन-प्रशासन की बल्कि सबकी नजर हैं। हमें इस महौल को बस ऐसे ही बनाये रखना है। एकबात और जो बड़ी दिलचस्प थी वह यह कि आज पहली बार हर कोई नेता था या यूं कहें कोई नेता ही नहीं था। निःसंदेह इन सभी से हमारा मनोबल बढ़ता है और अकर्मण्य अधिकारियों को लाइन पर लाकर एक महीने का काम दो दिन में कराने के लिए विवश करता है। हमारी जरा सी लापरवाही सब चौपट कर सकती है। एक बात और, हम में से आधे निदेशालय के अंदर थे जिनमें आधे ही बैठे थे, शेष आधे सड़को पर थे। इससे बचना होगा, बैठने का अपना अलग मनोविज्ञान है, इससे लगता है कि हम बिना शासनादेश लिए उठेंगे नहीं जबकि खड़े रहने से यह लगता कि अभी आयें हैं और अभी चलें जायेंगे। हमें तब तक बैठे रहना होगा जब तक शासनादेश नहीं आ जाता। पैंट में थोड़ी धूल ही तो लगेगी न, चाय पर दो-तीन दिन गुजारना कोई बड़ी बात नहीं है। बैठे रहेंगे।
मुझे ऐसा ही लगा बाकी हरि इच्छा बलवान। हाँ, इतने बडे युवाओं के हुजूम का अन्याय एवं बेरोजगारी के खिलाफ बिना किसी नेता के धैर्य-मौन-शान्ति के साथ बैठ जाना, किसी बहुत बड़े परिवर्तन का द्योतक है।
उन सभी का धन्यवाद जो इस माहौल को बनाए हैं और उनका आभार सहित धन्यवाद जो इसे बनाए रखने के लिए जी-जान से जुटे हैं। मन करे तो आप भी आइये कल...
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उसे करना ही होगा इसके दो कारण हैं पहला, माननीय मुख्यमंत्री का निर्देश और दूसरा आप सभी का इतना बड़ा हूजूम। सचिव इलाहाबाद को करना ही होगा। सम्भवत: इस प्रस्ताव को पास करने के बाद यह प्रमुख सचिव, लखनऊ के पास जाएगा और वहां से पास होने के बाद शासनादेश(जी०ओ०) के रूप में हम सभी के सामने होगा। सचिव, इलाहाबाद से वार्ता न होने से दो संशय बना हुआ है पहला, लखनऊ प्रस्ताव इलाहाबाद पहुंचा या नहीं? दूसरा यदि पहुंचा तो पास हुआ या नहीं? चलिए, कल भी और आज भी सचिव महोदय नहीं आये लेकिन कब तक नहीं आयेंगे! उनको आना होगा और बताना होगा, हम उनके इन्तजार में बैठे हैं। बिलकुल शांतिपूर्ण, चुप्प मार के बैठे हैं।
मैं दंग था इतनी बड़ी संख्या के बावजूद इतनी शान्ति। यही शान्ति ही हमें हमारी मंजिल तक पहुंचाएगी। जो माहौल बना है, लोगों में जो इतनी उत्सुकता है, लोग अपने लिए आज घरों से इतनी ठंड में निकल लिए हैं फिर भी डटे हैं, मौन है, शांत हैं, बैठे हैं, लगने लगा है कि हमें हमारी मंजिल मिलने से अब कोई नहीं रोक सकता। आप यकीन मानिए हमारी हर गतिविधि पर न केवल शासन-प्रशासन की बल्कि सबकी नजर हैं। हमें इस महौल को बस ऐसे ही बनाये रखना है। एकबात और जो बड़ी दिलचस्प थी वह यह कि आज पहली बार हर कोई नेता था या यूं कहें कोई नेता ही नहीं था। निःसंदेह इन सभी से हमारा मनोबल बढ़ता है और अकर्मण्य अधिकारियों को लाइन पर लाकर एक महीने का काम दो दिन में कराने के लिए विवश करता है। हमारी जरा सी लापरवाही सब चौपट कर सकती है। एक बात और, हम में से आधे निदेशालय के अंदर थे जिनमें आधे ही बैठे थे, शेष आधे सड़को पर थे। इससे बचना होगा, बैठने का अपना अलग मनोविज्ञान है, इससे लगता है कि हम बिना शासनादेश लिए उठेंगे नहीं जबकि खड़े रहने से यह लगता कि अभी आयें हैं और अभी चलें जायेंगे। हमें तब तक बैठे रहना होगा जब तक शासनादेश नहीं आ जाता। पैंट में थोड़ी धूल ही तो लगेगी न, चाय पर दो-तीन दिन गुजारना कोई बड़ी बात नहीं है। बैठे रहेंगे।
मुझे ऐसा ही लगा बाकी हरि इच्छा बलवान। हाँ, इतने बडे युवाओं के हुजूम का अन्याय एवं बेरोजगारी के खिलाफ बिना किसी नेता के धैर्य-मौन-शान्ति के साथ बैठ जाना, किसी बहुत बड़े परिवर्तन का द्योतक है।
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