68,500 बेसिक शिक्षकों की भर्ती परीक्षा का रास्ता साफ, हाईकोर्ट ने रोक लगाने से किया इंकार

इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 68,500 बेसिक शिक्षकों की भर्ती परीक्षा को लेकर एक बड़ा फैसला दिया है। दरअसल हाईकोर्ट ने  27 मई को होने वाली परीक्षा पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है।

आपको बता दें कि 68,500 बेसिक शिक्षकों की भर्ती परीक्षा को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। सरकार की ओर से बताया गया कि यह परीक्षा आवश्यक योग्यता के अंतर्गत नहीं है। राज्य सरकार ने कहा कि यह भर्ती परीक्षा सिर्फ क्वालीफाइंग है, परीक्षा के अंकों का 60 प्रतिशत अभ्यर्थी के मूल अंकों में जोड़ा जाएगा। साथ ही योग्यता धारक शिक्षामित्रों को 25 प्रतिशत का वेटेज भी दिया जाएगा।

यह सुनवाई विनय कुमार पांडेय समेत दर्जनों अन्य की याचिकाओं पर हुई। साथ ही अब इस मामले की अगली सुनवाई 11 जुलाई को होगी। यह आदेश चीफ जस्टिस डी बी भोसले और जस्टिस सुनीत कुमार की खंडपीठ ने दिया।
इससे पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में 68,500 शिक्षकों की भर्ती की राज्य सरकार द्वारा बनाई गई गाइडलाइन और संशोधित नियमों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर राज्य सरकार से जानकारी मांगी थी। कोर्ट ने पूछा था कि एनसीटीई की गाइडलाइंस के उलट सरकार एक और पात्रता परीक्षा कैसे करा सकती है।

`केंद्र सरकार को है अधिकार`

इस याचिका में कहा गया है कि अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 की धारा 23 के तहत केंद्र सरकार के ऐकडमिक अथॉरिटी को ही शिक्षकों की योग्यता और गाइडलाइन तय करने का अधिकार है। राज्य सरकार को गाइडलाइन बनाने और आवश्यक अर्हता तय करने का अधिकार नहीं है। साथ ही यह भी कहा गया कि बिना अधिकार के राज्य सरकार ने शिक्षकों की भर्ती के लिए नियमावली में संशोधन किया है, जो कानूनन गलत है। एनसीटीई द्वारा निर्धारित गाइडलाइन और न्यूनतम अर्हता का पालन करना सभी राज्यों के लिए अनिवार्य है।

सुप्रीम कोर्ट ने न्यूनतम अर्हता न रखने के कारण शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक पद पर समायोजन रद्द करते हुए लगातार 2 वर्षों में टीईटी परीक्षा पास करने का समय दिया है। कहा गया है कि सरकार द्वारा शिक्षकों की भर्ती विज्ञापन से सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनदेखी होगी। यह भी कहा गया कि सरकार ने इस परीक्षा को पास करने के लिए न्यूनतम अंकों की बाध्यता तय की है।