इलाहाबाद उप्र लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अनिल यादव की नियुक्ति अवैध घोषित किए जाने
के मामले में सरकार के लिए सुप्रीम कोर्ट की राह भी मुश्किलों भरी होगी।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले के केंद्र में पद की विश्वसनीयता, सत्य निष्ठा और
समानता के अधिकार को केंद्र में रखा है।
सुप्रीम कोर्ट अपने कई फैसलों में इस पर अपनी स्पष्ट राय दे चुकी है। अनिल यादव के मामले में खंडपीठ ने इसका हवाला भी दिया है। यही वजह है कि यही वजह है कि कोई कदम उठाने से पहले सरकार पुख्ता विधिक राय हासिल करने की कोशिशों में जुटी है।
प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति की याचिका पर फैसला सुनाने के दौरान हाईकोर्ट ने इंद्रजीत सिंह कहलो बनाम पंजाब केस का जिक्र किया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संवैधानिक पदों पर नियुक्ति में सत्यनिष्ठा और गुणवत्ता देखा जाना बहुत जरूरी है। इसके साथ ही स्टेट आफ बिहार बनाम उपेंद्र नारायण सिंह के मामले का हवाला है जिसमें उच्चतम न्यायालय ने साफ किया है कि नियुक्ति में राजनीतिक हस्तक्षेप काम हो, इसलिए इसमें विश्वसनीयता देखी जाएगी। व्यक्ति नहीं पद की विश्वसनीयता महत्वपूर्ण है। अनिल यादव के कार्यकाल में आयोग के अध्यक्ष पद की विश्वसनीयता पर ही सवाल खड़े हुए हैं। नियुक्ति में समानता के सिद्धांत की अनदेखी उभरकर सामने आई। इस संबंध में भी सुप्रीम कोर्ट के एक केस का उदाहरण है जिसमें कहा गया है कि चयन में अनुच्छेद 14 यानी समानता के सिद्धांत का पालन किया जाना जरूरी है। आयोग के अध्यक्ष पद के लिए 83 दावेदार थे। इनमें अनिल को वरीयता दी गई, यह समानता के सिद्धांत का उल्लंघन माना गया। इसके साथ ही संस्था की भूमिका और प्रकृति पर ध्यान देने की बात भी कही गई है।
मुख्य न्यायाधीश डा. डीवाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा का पूरा निर्णय शुक्रवार शाम वेबसाइट पर अपलोड हुआ है। इसमें उच्चतम न्यायालय के ही एक फैसले के हवाले से कहा गया है कि संवैधानिक पद धारण करने वाले पर किसी भी प्रकार का कोई दाग नहीं होना चाहिए। अनिल यादव पर आपराधिक मुकदमे के रूप में ऐसे दाग हैं। कोर्ट ने उड़ीसा सरकार से जुड़े एक निर्णय का हवाला देकर यहां तक कहा है कि ‘गुड गवर्नेस के कंसेप्ट को यूं ही हवा में नहीं फेका जा सकता।’ अपने फैसले में अदालत ने बड़ी कोर्ट के लगभग एक दर्जन फैसलों का हवाला दिया है। नियमत: जिन लोगों को रिजेक्ट किया गया है, उन्हें इस बारे में सरकार की ओर से जानकारी भी देनी चाहिए थी कि उनका चयन क्यों नहीं हुआ, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
सुप्रीम कोर्ट अपने कई फैसलों में इस पर अपनी स्पष्ट राय दे चुकी है। अनिल यादव के मामले में खंडपीठ ने इसका हवाला भी दिया है। यही वजह है कि यही वजह है कि कोई कदम उठाने से पहले सरकार पुख्ता विधिक राय हासिल करने की कोशिशों में जुटी है।
प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति की याचिका पर फैसला सुनाने के दौरान हाईकोर्ट ने इंद्रजीत सिंह कहलो बनाम पंजाब केस का जिक्र किया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संवैधानिक पदों पर नियुक्ति में सत्यनिष्ठा और गुणवत्ता देखा जाना बहुत जरूरी है। इसके साथ ही स्टेट आफ बिहार बनाम उपेंद्र नारायण सिंह के मामले का हवाला है जिसमें उच्चतम न्यायालय ने साफ किया है कि नियुक्ति में राजनीतिक हस्तक्षेप काम हो, इसलिए इसमें विश्वसनीयता देखी जाएगी। व्यक्ति नहीं पद की विश्वसनीयता महत्वपूर्ण है। अनिल यादव के कार्यकाल में आयोग के अध्यक्ष पद की विश्वसनीयता पर ही सवाल खड़े हुए हैं। नियुक्ति में समानता के सिद्धांत की अनदेखी उभरकर सामने आई। इस संबंध में भी सुप्रीम कोर्ट के एक केस का उदाहरण है जिसमें कहा गया है कि चयन में अनुच्छेद 14 यानी समानता के सिद्धांत का पालन किया जाना जरूरी है। आयोग के अध्यक्ष पद के लिए 83 दावेदार थे। इनमें अनिल को वरीयता दी गई, यह समानता के सिद्धांत का उल्लंघन माना गया। इसके साथ ही संस्था की भूमिका और प्रकृति पर ध्यान देने की बात भी कही गई है।
मुख्य न्यायाधीश डा. डीवाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा का पूरा निर्णय शुक्रवार शाम वेबसाइट पर अपलोड हुआ है। इसमें उच्चतम न्यायालय के ही एक फैसले के हवाले से कहा गया है कि संवैधानिक पद धारण करने वाले पर किसी भी प्रकार का कोई दाग नहीं होना चाहिए। अनिल यादव पर आपराधिक मुकदमे के रूप में ऐसे दाग हैं। कोर्ट ने उड़ीसा सरकार से जुड़े एक निर्णय का हवाला देकर यहां तक कहा है कि ‘गुड गवर्नेस के कंसेप्ट को यूं ही हवा में नहीं फेका जा सकता।’ अपने फैसले में अदालत ने बड़ी कोर्ट के लगभग एक दर्जन फैसलों का हवाला दिया है। नियमत: जिन लोगों को रिजेक्ट किया गया है, उन्हें इस बारे में सरकार की ओर से जानकारी भी देनी चाहिए थी कि उनका चयन क्यों नहीं हुआ, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
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