नौकरी है नहीं और सरकार का रवैया डरावनाः सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने देश में बेरोजगारी से निपटने की समस्या को लेकर निर्मम रवैया अपनाने पर केंद्र सरकार को फटकार लगाई है। कोर्ट ने दोहराया है कि जीविका का अधिकार एक मूलभूत अधिकार है।
जस्टिस वी गोपाल और अमिताभ रॉय की बेंच ने सोमवार को एक केस की सुनवाई के दौरान कहा, 'एक समतावादी समाज के संवैधानिक दर्शन के नॉन-गवर्नेंस और नॉन-इम्प्लिमेंटेशन की वजह से देश में रोजगार की संभावना नदारद है। यह दर्शन सभी को सम्मानजनक जीवन का मौका देता है।'नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने देश में बेरोजगारी से निपटने की समस्या को लेकर निर्मम रवैया अपनाने पर केंद्र सरकार को फटकार लगाई है। कोर्ट ने दोहराया है कि जीविका का अधिकार एक मूलभूत अधिकार है।
कोर्ट ने यह टिप्पणी साउथ सेंट्रल रेलवे कैटरर्स असोसिएशन की अपील की सुनवाई के दौरान की। असोसिएशन ने सरकार द्वारा रेलवे प्लैटफॉर्म पर उनके स्टॉल के लाइसेंस का नवीनीकरण न करने के आदेश के खिलाफ अपील की थी।
कोर्ट ने पूछा कि सरकार छोटे वेंडरों के खिलाफ इतने सख्त कदम क्यों उठा रही है, जबकि बड़े प्राइवेट प्लेयर्स की सालों से लाइसेंस फी बढ़ाए बिना उन्हें रेलवे की संपत्ति इस्तेमाल करने दी जा रही है।
कोर्ट ने रेलवे से कहा कि वह दलितों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। इसके साथ ही बेंच ने रेलवे को छोटे वेंडरों को बिजनस चलाने की इजाजत देने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा, 'बढ़ती बेरोजगारी से निपटने को लेकर सरकार का कठोर रवैया और निष्क्रियता डरावनी है। सार्वजनिक जिम्मेदारी को प्राइवेट हाथों में देकर स्थिति और बिगड़ी है। ये सरकारी नीतियों का गलत फायदा उठाते हैं।' बेंच ने कहा, 'हर कल्याणकारी राज्य की जिम्मेदारी है कि वह नौकरी उपलब्ध कराए। इस समय देश में लाखों युवा बेरोजगार हैं। आजीविका का अधिकार, जीने के अधिकार का हिस्सा है। सरकार की जिम्मेदारी है कि अपने साधनों का इस्तेमाल कर यह सुनिश्चित करे कि किसी भी शख्स का दयनीय हालत में शोषण न हो।' 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की धारा 21 के तहत दिए गए जीने के अधिकार को व्यापक कर इसमें आजीविका का अधिकार भी समाहित कर दिया था।
कोर्ट ने पूछा कि सरकार छोटे वेंडरों के खिलाफ इतने सख्त कदम क्यों उठा रही है, जबकि बड़े प्राइवेट प्लेयर्स की सालों से लाइसेंस फी बढ़ाए बिना उन्हें रेलवे की संपत्ति इस्तेमाल करने दी जा रही है।
कोर्ट ने रेलवे से कहा कि वह दलितों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। इसके साथ ही बेंच ने रेलवे को छोटे वेंडरों को बिजनस चलाने की इजाजत देने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा, 'बढ़ती बेरोजगारी से निपटने को लेकर सरकार का कठोर रवैया और निष्क्रियता डरावनी है। सार्वजनिक जिम्मेदारी को प्राइवेट हाथों में देकर स्थिति और बिगड़ी है। ये सरकारी नीतियों का गलत फायदा उठाते हैं।' बेंच ने कहा, 'हर कल्याणकारी राज्य की जिम्मेदारी है कि वह नौकरी उपलब्ध कराए। इस समय देश में लाखों युवा बेरोजगार हैं। आजीविका का अधिकार, जीने के अधिकार का हिस्सा है। सरकार की जिम्मेदारी है कि अपने साधनों का इस्तेमाल कर यह सुनिश्चित करे कि किसी भी शख्स का दयनीय हालत में शोषण न हो।' 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की धारा 21 के तहत दिए गए जीने के अधिकार को व्यापक कर इसमें आजीविका का अधिकार भी समाहित कर दिया था।
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