देश के समस्त संविदा कर्मियों (दैनिक/साप्ताहिक श्रमिक, दैनिक भत्ते पर, एडहॉक कर्मचारी आदि) को नियमित व स्थायी करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधानिक पीठ ने 10 अप्रैल 2006 को सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट ऑफ़ कर्नाटक बनाम उमा देवी केस में अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए कुछ स्पष्ट दिशानिर्देश दिए हैं जो कि इस सन्दर्भ में क़ानून का काम करते हैं।
10 अप्रैल 2006 के बाद किसी भी संविदा कर्मी को नियमित केवल इस ही केस के आदेश में दिए गए दिशानिर्देशों के तहत किया जा सकता है। 12 सितम्बर 2015 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ से समायोजन केवल टीईटी फेल शिक्षा मित्रों का ही रद्द नहीं हुआ था बल्कि उन शिक्षा मित्रों का भी रद्द हुआ था जो टीईटी पास थे, इसकी मुख्य वजह सम्पूर्ण समायोजन की प्रक्रिया का ही अवैध होना था न कि केवल टीईटी फेल का समायोजन। उमा देवी केस इसकी मुख्य वजह रहा।
इस केस का केंद्र बिंदु संविधान के अनुच्छेद 14 व 16(1) के तहत सरकारी सेवा में आने के रास्ते को स्पष्ट रूप से जाहिर करना है। अनुच्छेद 14 समानता के अधिकार की बात करता है तो अनुच्छेद 16 सरकारी पदों पर नियुक्ति हेतु समान अवसर दिए जाने के अधिकार की बात करता है। इस केस का आदेश काफी बड़ा है व कुल 49 पैराग्राफों में फैला हुआ है। पूरा विश्लेषण बहुत लम्बा है, जिस कारण लिखने में काफी समय लग गया। बेंचमार्किंग के नजरिये से यह विश्लेषण करीब 24 पेज का है। यदि आपमें धैर्य तथा इस मुद्दे में रूचि है और मुद्दे को विस्तार से समझना चाहते हैं तब शुरू से पूरा पढ़ें, आलसी लोग केवल पॉइंट 8, 9,10 व 11 पढ़ें। इन पॉइंट्स में भी आपको पूरी फ़िल्म का आनन्द आएगा।
tongue emoticon
कोर्ट ने निर्णय को एक प्रवाह में लिखा है जिस कारण मुद्दे आगे आगे पीछे हो गए हैं, परन्तु मैंने कोशिश की है कि समस्त आर्डर को अलग अलग खण्डों में व्यवस्थित कर सकूँ ताकि सम्पूर्ण निर्णय को एक सूत्र में पिरोया जा सके व एक चेन बनाई जा सके।
आर्डर को मैंने 11 भागों में बांटा है :
1) केस के तथ्य
2) Dharwad केस की संक्षिप्त व्याख्या
3) Dharwad केस पर 5 जजों की पीठ की टिप्पणी
4) कोर्ट द्वारा की गई समीक्षा
5) विभिन्न सुप्रीम कोर्ट नजीरें व उन पर टिप्पणियाँ
6) कोर्ट द्वारा निकाले गए निष्कर्ष
7) अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग व आदेश
8) आदेश का सार
9) आदेश का महा सार
10) शिक्षा मित्र केस से लिंक
11) Pro Tip
1⃣ #केस_के_तथ्य : केस में दो तरह के मुद्दे थे -
🚩 पहला मुद्दा यह था कि कुछ लोग कई वर्षों से कर्नाटक के वाणिज्य कर विभाग में संविदा पर कार्यरत थे। इनकी प्रथम नियुक्ति 1985-86 में हुई थी। उन्हें ऐसे ही कार्य करते करते 10 वर्ष से अधिक समय बीत गया तब अचानक से एक दिन उनके मन में स्थायी कर्मचारी होने की इच्छा जाग उठी। जिसको लेकर उन्होंने विभाग के निदेशक को पटा लिया, इसी क्रम में वाणिज्य कर विभाग के निदेशक महोदय ने कर्नाटक सरकार को सुझाव दिया कि उक्त कर्मचारियों को स्थायी कर दिया जाए। हालाँकि सरकार ने निदेशक महोदय के सुझाव पर कोई ध्यान नहीं दिया तथा ऐसे संविदा कर्मियों को स्थायी करने को लेकर कोई कदम नहीं उठाया जिस से पीड़ित होकर ऐसे संविदा कर्मियों ने एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल में अर्जी लगाई तथा कहा, 'हे महान ट्रिब्यूनल, हम पिछले 10 वर्ष से संविदा पर इस विभाग में कार्य कर रहे हैं परन्तु हमें अभी तक स्थायी होने का सुख प्राप्त नहीं हुआ है। आप आधी कोर्ट हैं, आप माई बाप हैं, कृपया सरकार को आदेशित करें कि वह हम गरीबों को नियमित करे।'
ट्रिब्यूनल ने केस की विस्तृत सुनवाई करने के उपरान्त निर्णय दिया कि ऐसे संविदा कर्मियों के पास स्थायी होने का कोई कानूनी हक नहीं है और उनकी याचिका खारिज कर दी। क्षुब्ध होकर फिर याची लोग हाई कोर्ट पहुँचे तथा ट्रिब्यूनल के निर्णय को चुनौती दे डाली। हाई कोर्ट ने Dharwad Distt. P.W.D. Literate Daily Wage Employees Association & ors. Vs. State of Karnataka & Ors. के केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा ही दिए गए निर्णय के आधार पर संविदा कर्मियों के पक्ष में निर्णय सुनाया और कहा कि यह संविदा कर्मी बेचारे गरीब लोग हैं, सालों से कार्य कर रहे हैं अतः इनकी तनख्वाह भी स्थायी कर्मियों के बराबर होनी चाहिए। हाई कोर्ट उन कर्मचारियों के प्रेम में इतनी मग्न हो गई कि सरकार को 4 माह के अंदर अंदर उनका समायोजन व साथ ही उनको उनकी जॉइनिंग की तारीख से ही स्थायी कर्मचारियों के बराबर वेतन देने का आदेश दे डाला, जिसका असर यह हुआ कि सरकार को पिछले 12 सालों का वेतन देने का आदेश हुआ, दरअसल सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट जाने की मुख्य वजह यह ही रही।
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10 अप्रैल 2006 के बाद किसी भी संविदा कर्मी को नियमित केवल इस ही केस के आदेश में दिए गए दिशानिर्देशों के तहत किया जा सकता है। 12 सितम्बर 2015 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ से समायोजन केवल टीईटी फेल शिक्षा मित्रों का ही रद्द नहीं हुआ था बल्कि उन शिक्षा मित्रों का भी रद्द हुआ था जो टीईटी पास थे, इसकी मुख्य वजह सम्पूर्ण समायोजन की प्रक्रिया का ही अवैध होना था न कि केवल टीईटी फेल का समायोजन। उमा देवी केस इसकी मुख्य वजह रहा।
इस केस का केंद्र बिंदु संविधान के अनुच्छेद 14 व 16(1) के तहत सरकारी सेवा में आने के रास्ते को स्पष्ट रूप से जाहिर करना है। अनुच्छेद 14 समानता के अधिकार की बात करता है तो अनुच्छेद 16 सरकारी पदों पर नियुक्ति हेतु समान अवसर दिए जाने के अधिकार की बात करता है। इस केस का आदेश काफी बड़ा है व कुल 49 पैराग्राफों में फैला हुआ है। पूरा विश्लेषण बहुत लम्बा है, जिस कारण लिखने में काफी समय लग गया। बेंचमार्किंग के नजरिये से यह विश्लेषण करीब 24 पेज का है। यदि आपमें धैर्य तथा इस मुद्दे में रूचि है और मुद्दे को विस्तार से समझना चाहते हैं तब शुरू से पूरा पढ़ें, आलसी लोग केवल पॉइंट 8, 9,10 व 11 पढ़ें। इन पॉइंट्स में भी आपको पूरी फ़िल्म का आनन्द आएगा।
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कोर्ट ने निर्णय को एक प्रवाह में लिखा है जिस कारण मुद्दे आगे आगे पीछे हो गए हैं, परन्तु मैंने कोशिश की है कि समस्त आर्डर को अलग अलग खण्डों में व्यवस्थित कर सकूँ ताकि सम्पूर्ण निर्णय को एक सूत्र में पिरोया जा सके व एक चेन बनाई जा सके।
आर्डर को मैंने 11 भागों में बांटा है :
1) केस के तथ्य
2) Dharwad केस की संक्षिप्त व्याख्या
3) Dharwad केस पर 5 जजों की पीठ की टिप्पणी
4) कोर्ट द्वारा की गई समीक्षा
5) विभिन्न सुप्रीम कोर्ट नजीरें व उन पर टिप्पणियाँ
6) कोर्ट द्वारा निकाले गए निष्कर्ष
7) अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग व आदेश
8) आदेश का सार
9) आदेश का महा सार
10) शिक्षा मित्र केस से लिंक
11) Pro Tip
1⃣ #केस_के_तथ्य : केस में दो तरह के मुद्दे थे -
🚩 पहला मुद्दा यह था कि कुछ लोग कई वर्षों से कर्नाटक के वाणिज्य कर विभाग में संविदा पर कार्यरत थे। इनकी प्रथम नियुक्ति 1985-86 में हुई थी। उन्हें ऐसे ही कार्य करते करते 10 वर्ष से अधिक समय बीत गया तब अचानक से एक दिन उनके मन में स्थायी कर्मचारी होने की इच्छा जाग उठी। जिसको लेकर उन्होंने विभाग के निदेशक को पटा लिया, इसी क्रम में वाणिज्य कर विभाग के निदेशक महोदय ने कर्नाटक सरकार को सुझाव दिया कि उक्त कर्मचारियों को स्थायी कर दिया जाए। हालाँकि सरकार ने निदेशक महोदय के सुझाव पर कोई ध्यान नहीं दिया तथा ऐसे संविदा कर्मियों को स्थायी करने को लेकर कोई कदम नहीं उठाया जिस से पीड़ित होकर ऐसे संविदा कर्मियों ने एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल में अर्जी लगाई तथा कहा, 'हे महान ट्रिब्यूनल, हम पिछले 10 वर्ष से संविदा पर इस विभाग में कार्य कर रहे हैं परन्तु हमें अभी तक स्थायी होने का सुख प्राप्त नहीं हुआ है। आप आधी कोर्ट हैं, आप माई बाप हैं, कृपया सरकार को आदेशित करें कि वह हम गरीबों को नियमित करे।'
ट्रिब्यूनल ने केस की विस्तृत सुनवाई करने के उपरान्त निर्णय दिया कि ऐसे संविदा कर्मियों के पास स्थायी होने का कोई कानूनी हक नहीं है और उनकी याचिका खारिज कर दी। क्षुब्ध होकर फिर याची लोग हाई कोर्ट पहुँचे तथा ट्रिब्यूनल के निर्णय को चुनौती दे डाली। हाई कोर्ट ने Dharwad Distt. P.W.D. Literate Daily Wage Employees Association & ors. Vs. State of Karnataka & Ors. के केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा ही दिए गए निर्णय के आधार पर संविदा कर्मियों के पक्ष में निर्णय सुनाया और कहा कि यह संविदा कर्मी बेचारे गरीब लोग हैं, सालों से कार्य कर रहे हैं अतः इनकी तनख्वाह भी स्थायी कर्मियों के बराबर होनी चाहिए। हाई कोर्ट उन कर्मचारियों के प्रेम में इतनी मग्न हो गई कि सरकार को 4 माह के अंदर अंदर उनका समायोजन व साथ ही उनको उनकी जॉइनिंग की तारीख से ही स्थायी कर्मचारियों के बराबर वेतन देने का आदेश दे डाला, जिसका असर यह हुआ कि सरकार को पिछले 12 सालों का वेतन देने का आदेश हुआ, दरअसल सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट जाने की मुख्य वजह यह ही रही।
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