मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले के जरिए राज्य का पदोन्नति
आरक्षण नियम अवैध करार दे दिया। इससे 2002 से अब तक आरक्षण के लाभ के जरिए
पदोन्नति पाने वाले 25 हजार से अधिक
अधिकारियों-कर्मचारियों को जोर का झटका लगा है।
इस फैसले का असर यह होगा कि वे पदावनत होकर पूर्ववत पदनाम के तहत काम करने को विवश होंगे। ऐसा इसलिए भी क्योंकि हाई कोर्ट ने फैसले में इस बात पर विशेष जोर दिया है कि राज्य शासन 2002 में पदोन्नति में आरक्षण का नियम लागू किए जाने के पूर्व की स्थिति बहाल करे। इससे साफ है कि कई सीनियर आने वाले दिनों में पहले जैसे जूनियर हो जाएंगे। 1मुख्य न्यायाधीश अजय माणिकराव खानविलकर और जस्टिस संजय यादव की डिवीजन बेंच ने पिछले दिनों इस मामले की अंतिम सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था। शनिवार को फैसला सुनाया गया, जिसके तहत मध्य प्रदेश लोकसेवा पदोन्नति नियम-2002 को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया। आरक्षित वर्ग के लोकसेवकों को इसी नियम के तहत प्रमोशन का लाभ दिया गया था। चूंकि अब नियम ही अवैध हो गया है, इसलिए पूर्व में हुई पदोन्नतियां भी खटाई में पड़ गई हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला : हाई कोर्ट ने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ द्वारा साल 2006 में सुनाए गए एम. नागराज, सूरजभान मीणा, उत्तर प्रदेश पॉवर कॉपरेरेशन के आदेशों का हवाला दिया, जिनमें पदोन्नति प्रक्रिया में आरक्षण को अनुचित माना गया है।
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सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला : हाई कोर्ट ने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ द्वारा साल 2006 में सुनाए गए एम. नागराज, सूरजभान मीणा, उत्तर प्रदेश पॉवर कॉपरेरेशन के आदेशों का हवाला दिया, जिनमें पदोन्नति प्रक्रिया में आरक्षण को अनुचित माना गया है।
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