उत्तर प्रदेश में 3000 से भी ज्यादा लोगों को फर्जी मार्कशीट बेची गई हैं। यह मार्कशीट संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के नाम से जारी हुई हैं। इस प्रकरण की जांच करने वाली एजेंसी एसआईटी ने प्रदेश के सभी
बीएसए को पत्र भेजकर मध्यमा, शास्त्री और शिक्षा शास्त्री की डिग्रियों की जांच को कहा है।
प्रदेश के अधिकांश जिलों में संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के नाम से बनीं शास्त्री और मध्यमा की फर्जी डिग्रियां पकड़ी जा चुकी हैं। जब बड़ा नेटवर्क सामने आया तो शासन ने 2015 में एसआईटी को इसकी जांच सौंप दी थी। विभिन्न जिलों की पुलिस ने जो मार्कशीट प्राप्त कीं उनका मिलान संस्कृत विश्वविद्यालय के रिकार्ड से कराया तो सभी जाली निकलीं। लिहाजा जांच का दायरा बढ़ा दिया गया। सबसे ज्यादा इन मार्कशीट का प्रयोग 2004 से 2014 के बीच में होने वाली शिक्षक भर्ती में किया गया। जब जांच शुरू हुई तो तमाम शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई की गई। मुकदमे दर्ज कराए गए।
जिले में भी डिग्रियों की जांच की जा रही है। बेसिक शिक्षा अधिकारी मनोज कुमार मिश्रा ने बताया कि यहां भी 12 शिक्षकों पर अब तक फर्जी डिग्रियां पकड़ी जा चुकी हैं। कई मामलों की जांच की जा रही है। वहीं अमीन की भर्ती में भी संस्कृत विश्वविद्यालय की डिग्रियां लगाई गई हैं। प्रशासन इन सभी की जांच करा रहा है। अभी तक तीन मामलों की जांच की जा रही है।
अब एसआईटी ने प्रदेश के सभी बेसिक शिक्षा अधिकारियों से संपूर्णानंद विश्वविद्यालय के नाम से जारी होने वाली सभी मार्कशीट की जांच करने को कहा है। कहा गया है कि यदि कहीं भी यह मार्कशीट दिखती हैं तो तत्काल सूचना दी जाए। इनका सबसे बड़ा इस्तेमाल इलाहाबाद, वाराणसी, आजमगढ़, झांसी, गोरखपुर और कानपुर मंडल में किया गया है। इन मंडलों के बेसिक शिक्षा अधिकारियों ने जो रिपोर्ट अभी तक दी है इससे खुलासा हो रहा है। अफसरों का कहना है कि अभी कोई सही फिगर तो सामने नहीं आया है, लेकिन शास्त्री की ही तीन हजार से ज्यादा डिग्रियां लोगों के पास पहुंच गई हैं। पश्चिम के जिलों से जो रिपोर्ट आ रही है उसमें गाजियाबाद में दो शिक्षकों ने शास्त्री की डिग्री लगाई थी जो सही पाई गई है। मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बुलंदशहर, मुरादाबाद, बरेली, कानपुर और आगरा से जो रिपोर्ट गई है उसका सत्यापन कराया जा रहा है। एसआईटी के एडीजी महेंद्र मोदी ने बताया कि जांच चल रही है, बड़े रैकेट का खुलासा होगा। अब तक की जांच में जो पता चल रहा है उसके मुताबिक बड़ी जालसाजी की गई है।
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बीएसए को पत्र भेजकर मध्यमा, शास्त्री और शिक्षा शास्त्री की डिग्रियों की जांच को कहा है।
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प्रदेश के अधिकांश जिलों में संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के नाम से बनीं शास्त्री और मध्यमा की फर्जी डिग्रियां पकड़ी जा चुकी हैं। जब बड़ा नेटवर्क सामने आया तो शासन ने 2015 में एसआईटी को इसकी जांच सौंप दी थी। विभिन्न जिलों की पुलिस ने जो मार्कशीट प्राप्त कीं उनका मिलान संस्कृत विश्वविद्यालय के रिकार्ड से कराया तो सभी जाली निकलीं। लिहाजा जांच का दायरा बढ़ा दिया गया। सबसे ज्यादा इन मार्कशीट का प्रयोग 2004 से 2014 के बीच में होने वाली शिक्षक भर्ती में किया गया। जब जांच शुरू हुई तो तमाम शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई की गई। मुकदमे दर्ज कराए गए।
जिले में भी डिग्रियों की जांच की जा रही है। बेसिक शिक्षा अधिकारी मनोज कुमार मिश्रा ने बताया कि यहां भी 12 शिक्षकों पर अब तक फर्जी डिग्रियां पकड़ी जा चुकी हैं। कई मामलों की जांच की जा रही है। वहीं अमीन की भर्ती में भी संस्कृत विश्वविद्यालय की डिग्रियां लगाई गई हैं। प्रशासन इन सभी की जांच करा रहा है। अभी तक तीन मामलों की जांच की जा रही है।
अब एसआईटी ने प्रदेश के सभी बेसिक शिक्षा अधिकारियों से संपूर्णानंद विश्वविद्यालय के नाम से जारी होने वाली सभी मार्कशीट की जांच करने को कहा है। कहा गया है कि यदि कहीं भी यह मार्कशीट दिखती हैं तो तत्काल सूचना दी जाए। इनका सबसे बड़ा इस्तेमाल इलाहाबाद, वाराणसी, आजमगढ़, झांसी, गोरखपुर और कानपुर मंडल में किया गया है। इन मंडलों के बेसिक शिक्षा अधिकारियों ने जो रिपोर्ट अभी तक दी है इससे खुलासा हो रहा है। अफसरों का कहना है कि अभी कोई सही फिगर तो सामने नहीं आया है, लेकिन शास्त्री की ही तीन हजार से ज्यादा डिग्रियां लोगों के पास पहुंच गई हैं। पश्चिम के जिलों से जो रिपोर्ट आ रही है उसमें गाजियाबाद में दो शिक्षकों ने शास्त्री की डिग्री लगाई थी जो सही पाई गई है। मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बुलंदशहर, मुरादाबाद, बरेली, कानपुर और आगरा से जो रिपोर्ट गई है उसका सत्यापन कराया जा रहा है। एसआईटी के एडीजी महेंद्र मोदी ने बताया कि जांच चल रही है, बड़े रैकेट का खुलासा होगा। अब तक की जांच में जो पता चल रहा है उसके मुताबिक बड़ी जालसाजी की गई है।
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