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शिक्षा माफियाओं का बढ़ता वर्चस्व: शिक्षा विभाग को खोखला करने का प्रयास

शिक्षा माफियाओं का बढ़ता वर्चस्व कहीं न कहीं शिक्षा विभाग को खोखला करने का प्रयास है लेकिन यहां पर सबसे बड़ा सवाल ये है कि लोगो के द्वारा खोले जा रहे स्कूल का मतलब भावी पीढ़ी को शिक्षित करना है,या फिर शिक्षा से धनोपार्जन करना, आज के समय मे स्कूलो की संख्या में बेतहासा...............

पहले के समय में स्कूल को शिक्षा के मन्दिर के रूप में भी जाना जाता था। उस समय लोगो का मकसद सिर्फ शिक्षा ग्रहण करना था,और जो लोग स्कूल खोलते भी थे तो उनका मकसद सिर्फ और सिर्फ शिक्षा देना था,लेकिन समय बदला,आदमी की आवश्यकता बढ़ गयी, लालच मनुष्य के शरीर के अंदर अपना दायरा बढ़ाता गया, परिणामस्वरूप मनुष्य भी इस शिक्षा के मन्दिर मे लालच और पैसे की भूख को बढ़ाता चला जा रहा है।
 जैसे-जैसे आदमी की पैसे की भूख बढ़ती गयी,वह इस शिक्षा के मन्दिर को भी नही छोड़ा और अब हालत ये हो गया है कि शिक्षा भी अब माफियाओ के चंगुल में फ़स कर रह गया है। आज के समय मे शिक्षा का पूर्णरूप से व्यसायीकरण कर दिया गया है, आज की तारीख मे शिक्षा के मन्दिर को समय के हिसाब से परिवर्तित कर दिया गया है और अब ये मन्दिर न होकर एक पैसा उगलने की मशीन बन गया है। आज के समय में बेरोजगारी के कारण लोगों को नौकरी के लिए काफी परिश्रम करना पड़ रहा है, लिहाजा लोगों का झुकाव स्कूल खोलने के तरफ बढ़ता जा रहा है।

लेकिन यहां पर सबसे बड़ा सवाल ये है कि लोगो के द्वारा खोले जा रहे स्कूल का मतलब भावी पीढ़ी को शिक्षित करना है,या फिर शिक्षा से धनोपार्जन करना।आज के समय मे स्कूलो की संख्या मे बेतहासा बृद्धि हो रही है,जहां भी देखा जाय वही पर स्कूल खोले जा रहे है। चाहे स्कूल के पास पर्याप्त जमीन हो या नही।

अक्सर देखा जाता है जिसके पास दो भी कमरे है वह स्कूल खोल कर अपना धंधा शुरू कर देता है। स्कूल के पास कम से कम इतना तो संसाधन होना चाहिए कि बच्चे आराम से पढ़ सके, बच्चों का मन करे तो वह मन से खेल सके,वहाँ पर खुली हवा हो जिससे कि हर बच्चा खुल कर जी सके। अक्सर पता लगता है कि स्कूल के पास मैदान है ही नही और स्कूल खुल गया। ये भी माफियाओं का अपना बर्चस्व होता है कि अगर कोई भी आदमी स्कूल खोलना चाहे तो शिक्षा माफिया प्रशासन से गठजोड़ करके उसको अनुमोदन दिला देते है।ये माफिया प्रशासन से सही गठजोड़ करके अपना काम निकाल ही लेते है।
शिक्षा में आज के हिसाब से कमाई बहुत है, जिसका कारण है सरकार द्वारा दिए जाने वाली तमाम सुविधाएं। बच्चों को दी जाने वाली तमाम तरह की सुविधाओ में विशेष रूप से छात्रबृत्ति होती है जो बच्चों को दी जानी रहती है। बहुत से स्कूल,कालेज के प्रबंधक इस छात्रवृति को गरीब बच्चों को न बाँट कर अपनी जेब भरने पर ध्यान देते है। शिक्षा में भी माफियाओं के बढ़ने से शिक्षा का गुणवत्ता में भी काफी गिरावट आ चुकी है,क्योंकि अब पढ़ाई पर ध्यान न तो अभिभावक देते है और न ही छात्र। माफिया लोगों के वजह से अभिभावक और छात्र दोनों चैन की बंशी बजाते मिल जाएंगे। कारण ये रहता है कि लोग इस बात से संतुष्ट रहते है कि पैसे से नकल तो हो ही जायेगी, बहुत से स्कूलों मे तो बकायदे एक हजार से पाँच हजार तक रुपये देने पर कॉपी लिख दी जाती है। अब अगर बच्चों की कॉपी पैसे लेकर लिख जा रही है तो फिर पढ़ने की क्या ज़रूरत होगी। इसी भ्रष्टाचार के कारण बच्चों पढ़ने की प्रवृत्ति खत्म होती जा रही है। अब बच्चे पढ़ेंगे नही तो फिर शिक्षा का स्तर भी गिरता जायेगा,लेकिन माफियाओं का राजस्व बढ़ता ही जा रहा है। माफियाओं को शिक्षा के गुणवत्ता से कोई मतलब नही होता उनको तो सिर्फ पैसे से प्यार होता है। अगर पैसे मिलते रहे तो उनकी काली कमाई की खेती चलती रहेगी। जो भी लोग इस शिक्षा के मंदिर में गैर कानूनी तरीके से लगे है उनको समाज के गिरते स्तर से क्या लेना है ।

लेकिन एक बात तो समाज को स्वीकार करना पड़ेगा कि अगर शिक्षा कस्तर गिर रहा है तो इसमें शिक्षा माफियाओं का बहुत बड़ा योगदान है,ये अपने फायदे के लिए बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे है। इसलिए ऐसे शिक्षा माफियाओं को अपने स्वार्थ के सिद्धि के लिए ही काम नही करना चाहिए बल्कि भारत के भविष्य को भी ध्यान में रखना चाहिए।
- द्वारा नीरज कुमार नोएडा
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