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आइएएस पैटर्न पर हो पीसीएस परीक्षा, सेमिनार में पैटर्न व सिलेबस में बदलाव और निरंतर अपग्रेडेशन पर जोर

इलाहाबाद : आइएएस चयन में जहां कभी यूपी और इलाहाबाद का डंका बजता था। वहां अब सूनापन छाने लगा है। क्योंकि संघ लोक सेवा आयोग अपने परीक्षा पैटर्न और सिलेबस को लगातार अपडेट करता रहा। जबकि उप्र लोक सेवा आयोग ने 27 साल से अपना सिलेबस अपडेट नहीं किया।
ऐसे में पीसीएस की तैयारी करने वाले आइएएस में पिछड़ जाते हैं। इस हालात को बदलने, परीक्षा का पैटर्न और सिलेबस में बदलाव करने को लेकर आयोग अब बेहद गंभीर है। मंगलवार को आयोग में हुए सेमिनार में इस पर गहन किया गया।1कार्यशाला में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रतनलाल हांगलू, इलाहाबाद राज्य विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मंडलायुक्त राजन शुक्ला, मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. एसपी सिंह, एडीजी डीएल र}म, पुलिस मुख्यालय में तैनाज आइजी नवीन अरोड़ा, पूर्व आइएएस शशिप्रकाश आदि शामिल हुए। बैठक में पीसीएस परीक्षा के पैटर्न और सिलेबस में बदलाव की जरूरत सभी ने महसूस की। साथ ही यह भी तय किया गया कि अन्य राज्यों की तरह प्रदेश के इतिहास, भूगोल और संस्कृति आदि पर भी एक पेपर होना चाहिए। जैसा कि छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश में है। या फिर कुछ अन्य राज्यों की तरह जनरल स्टडीज में राज्य पर आधारित 25 से 50 अंक के प्रश्न होने चाहिए। ताकि राज्य सेवा में आने वाले अभ्यर्थी यहां के बारे में पर्याप्त जानकारी रखें।1बैठक में कहा गया कि बदलाव अब बेहद जरूरी है। 1990 से सिलेबस में परिवर्तन नहीं किया गया है। इसलिए सभी विषय विशेषज्ञों की एक वर्कशॉप करवाकर परिवर्तन तय किया जाए। सिलेबस और पैटर्न का मॉडल आइएएस की तर्ज पर रखा जाए ताकि पीसीएस की तैयारी करने वालों को वहां भी सफलता मिलने के अवसर ज्यादा हों। बैठक में आयोग के सचिव अटल राय, परीक्षा नियंत्रक प्रभुनाथ और संयुक्त सचिव डॉ. बिपिन मिश्र भी मौजूद रहे।
मेडिकल साइंस का भी हो एक पेपर : आइएएस में मेडिकल साइंस का एक पेपर होता है, जबकि यूपी पीसीएस में ऐसा नहीं है। इसलिए यहां पर मेडिकल बैकग्राउंड के अभ्यर्थी राज्य की सेवा में कम आ पाते हैं। इसलिए यह एक पेपर भी सिलेबस में शामिल किया जाना चाहिए। मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. एसपी सिंह ने भी इसकी जरूरत पर बल दिया।
2014 में भी हुई थी कवायद : पीसीएस का पैटर्न और सिलेबस बदलने की कवायद वर्ष 2014 में भी हुई थी, लेकिन यह योजना सिरे नहीं चढ़ पाई। अफसरों के लगातार तबादलों से इस पर गहरा असर पड़ा। अब पिछले दो साल से तैनात रहने के कारण परीक्षा नियंत्रक प्रभुनाथ इस विषय पर बेहद गंभीरता से काम कर रहे हैं।

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